परमपूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने २२ अक्तूबर २०१५ के पितृवचनम् में ध्यान के दो प्रकारों के बारे में बताया। ध्यान के दो प्रकार होते हैं – एक है चिंतनात्मक और दूसरा है एकाग्रता, ऐसा बापू ने कहा।
ध्यान के चिंतनात्मक (contemplative) और एकाग्रता (concentrative) इन दो प्रकारों की जानकारी देकर बापू ने बताया कि हम यहॉ पर concentrative के मार्ग से नहीं जा रहे हैं। एक सामन्य मनुष्य को इतना ध्यान लगाना, कोई विचार न आने देना its very difficult। हजारों विचार आते रहते हैं दिन भर में, हजार चिंताओं का सामना करना पडता है। इसलिए best way, जो वेदों में (ऋगवेद और यजुर्वेद दोनों में) कहा गया है, वह है यह चिंतनात्मक योग। लेकिन चिंतन क्या है? ‘गुरुचिंतन त्या गुरु दिधल्या’ (मन के सामने जो विशय आप ले आते हो उसका चिन्तन मन करता रहता है, इसलिए उसके सामने सद्गुरु का रूप ले आते रहना चाहिए ताकि वह सद्गुरु का चिन्तन करता रहे ) यह श्रीसाईसच्चरित में कहा गया है।
हम उन प्रतिमाओं को देखते रहेंगे। वहॉ जो भी प्रतिमा होगी उसे हमे सिर्फ देखते रहना है और मंत्र कहे जायेंगे उन्हें सुनना हैं। और हमें चिंतन किस बात का करना है? पहिले दिन थोडा डिफिकल्ट लगेगा इ्सीलिए पहिला दिन सिर्फ demonstration का होगा, प्रात्याक्षिक का होगा, समीरदादा खुद दिखायेंगे। हर चक्र यहाँ पर होगा। मूलाधार से लेकर सहस्रार चक्र तक सातों चक्रों का पूजन करेंगे। २४ वैदिक ऋचाएँ कही जायेंगी। योगीन्द्रसिंह जोशी की आवाज में होंगी, जो हमारे महाधर्मवर्मन हैं। उसके बाद मेरी आवाज में हर एक चक्र के देवता का गायत्री मंत्र होगा। इन गायत्री मंत्रों का उच्चारण एक बार मै खुद करूंगा। आप भी मेरे साथ कर सकते हैं। उसके बाद हर एक चक्र का स्वस्तिवाक्य होगा।
स्वस्तिवाक्य समीरदादा मराठी में, बाद में हिन्दी में, उसके बाद अंग्रेजी में और फिर संस्कृत में बोलेंगे। यह स्वस्तिवाक्य बाद में हर भाषा में आयेगा। पहिले दिन तो मालूम नहीं होगा। पहले दिन तो हम सिर्फ demonstration करेंगे, सिर्फ प्रात्यक्षिक है।
पहले दिन सुनने के बाद मालूम हो जाएगा। हम लिखकर ले सकते हैं, दूसरे किसी से ले सकते हैं, दादा अपने ब्लॉग पर डालेंगे, मोस्ट्ली हम पुस्तिका भी देने की कोशिश कर रहे हैं। इस तरह हमारे सद्गुरु अनिरुद्ध बापू ने पितृवचनम् में जो बताया, वह आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।
॥ हरि ॐ ॥ ॥ श्रीराम ॥ ॥ अंबज्ञ ॥