हरि ॐ,
आज की भीषण जागतिक परिस्थिति के लिए कई देश चीन को ज़िम्मेदार मान रहे हैं।
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फिर ऐसे में याद आती है, मार्च २००६ से डॉ. अनिरुद्ध धैर्यधर जोशी ने दैनिक प्रत्यक्ष में चालू की हुई ’तिसरे महायुद्ध’ (तृतीय विश्वयुद्ध) इस लेखमाला की, जो बाद में दिसम्बर २००६ की दत्तजयंती के दिन ’तिसरे महायुद्ध’ इस नाम से पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुई।
इस पुस्तक की प्रस्तावना में डॉ. अनिरुद्धजी कहते हैं, “आनेवाले समय में, आज के समीकरण का कल तक बने रहना मुश्किल है। सुबह सात बजे के समीकरण सात बजकर पाँच मिनट पर, मूल हेतु के साध्य होते ही उखाड़कर फ़ेंक दिया जाएगा।”
नाटो का सदस्य होनेवाला टर्की (Turkey) यह देश, रशिया का लड़ाक़ू विमान गिराने के बावजूद भी कुछ समय तक रशिया का मित्र था और आज फिर उनके संबंध ख़राब ही हैं; और साथ ही, यह देश अब अमरीका से दूर जा चुका है। इस एक ही उदाहरण से उपरोक्त वाक्य की यथार्थता स्पष्ट होती है। इस तृतीय विश्वयुद्ध के बारे में बताते समय डॉ. अनिरुद्धजी कहते हैं, “दो राष्ट्रों के बीच का युद्ध उस-उस राष्ट्र के हर एक घर के आँगन तक जा पहुँचता है तथा उसके कारण सिर्फ़ दो राष्ट्रों की ही सेना नहीं लड़ती है, बल्कि उन दो राष्ट्रों का हर एक नागरिक उस लड़ाई में सहभागी होता ही है। उसी प्रकार विषैली गैस (वायु), जैविक बम (रोगजंतुओं का प्रसार) तथा प्रचंड रूप से कृत्रिम बरसात आदि के द्वारा दलदल एवं चारों ओर कीचड़ आदि का निर्माण करने की क्षमता (अमरीका ने व्हिएतनाम में जो किया), इत्यादि के कारण संपूर्ण राष्ट्र के प्रतिदिन व्यवहार में थोड़ी-सी भी सुरक्षितता नहीं रह पाती है।”
इस पुस्तक की प्रस्तावना में डॉ. अनिरुद्धजी कहते हैं, “भारत की ही नहीं, बल्कि विश्व के हर एक देश की नब्बे प्रतिशत से अधिक जनता युद्ध, युद्ध के राजनीतिक कारण एवं उनकी परिपूर्ति इनके बारे में केवल मामूली जानकारी से ही युद्धविषयक विचार कर सकती है। परन्तु युद्ध के परिणाम तो शत-प्रतिशत इसी सामान्य जनता को भुगतने भी पड़ते हैं और झेलने भी पड़ते हैं।”
उसी प्रकार, अपने एक अगले आर्टिकल में डॉ. अनिरुद्धजी इस बात को स्पष्ट करते हुए कहते हैं, “युद्ध जब अधिक समय तक चलता है, तो उस समय राष्ट्रीय नेतृत्व की और जनता की सही कसौटी होती है। साधारण तौर पर किसी भी राष्ट्र की सर्वसामान्य जनता, एक विशिष्ट समयमर्यादा से अधिक युद्धजन्य स्थिति का असर नहीं सह सकती। जिस राष्ट्र की जनता में ऐसे कड़े परिश्रम और दुर्धर तक़लीफ़ों को पचाने की ताकत प्रचण्ड प्रमाण में होती है, वही राष्ट्र वास्तव में बलवान होता है।”
इस पुस्तक का एक विशेष चॅप्टर ’आधुनिक शस्त्रास्त्र और प्रभाव – ५’ यह, ‘जैविक युद्ध’ इसी विषय पर आधारित है। इसके बारे में डॉ. अनिरुद्धजी कहते हैं, “…इसी कारण, यदि एक बार भी यह जैविक हमला हुआ, तो एक जगह से दूसरी जगह यह बीमारी फ़ैलते ही रहती है और अॅटमबम की अपेक्षा भी अधिक विघातक परिणाम कर सकती है। परिणामस्वरूप करोड़ों की तादाद में जनता बीमारी से पीड़ित हो सकती है और इसी कारण राष्ट्र की सामाजिक और आर्थिक नींव ध्वस्त हो सकती है।”
प्रस्तावना में डॉ. अनिरुद्धजी कहते हैं, “हर वर्ष कॅलेंडर (दिनदर्शिका) प्रकाशित होती है, क्योंकि उसके पीछे एक निश्चित स्वरूप का गणितीय सूत्र एवं रचना होती है; लेकिन इस आगामी ’तृतीय महायुद्ध’ का कॅलेंडर हररोज़ नया होगा।” सन २००६ के एक अर्टिकल में डॉ. अनिरुद्धजी ऐसा भी कहते हैं, “आज जिस महायुद्ध के ढ़ोल बजते हुए सुनायी दे रहे हैं, उस महायुद्ध में विश्व के कम से कम ९० राष्ट्र प्रत्यक्ष युद्ध करेंगे और बाक़ी के सभी राष्ट्र भी कम या अधिक प्रमाण में इस युद्ध से निश्चित जुड़े होंगे।”
सन २००६ में जब यह पुस्तक लिखी गयी, तब कइयों के मन में यह सवाल उठा था कि ‘क्या वाक़ई ऐसा कुछ घटित होगा?’ इसके बारे में डॉ. अनिरुद्धजी ने कहा था कि “यह अध्ययन है इतिहास का तथा सद्य:स्थिति का और यह संशोधन है, जागतिक रंगमंच के विविध पात्रों के मनसूबों का। आगामी बीस वर्षों में सैंकड़ों स्थानों पर हज़ारों घटनाएँ घटित होनेवालीं हैं, इस बात को हर एक सुबुद्ध एवं अध्ययनशील विचारवन्त महसूस कर रहा है।”
आज भीषण जागतिक विद्यमान परिस्थिति में सभी देश चीन की ओर शक़ की नज़र से देख रहे हैं और फिलहाल घटित होनेवाली सारीं बातों को तृतीय विश्वयुद्ध का भाग मानकर चीन को सर्वस्वी ज़िम्मेदार क़रार दे रहे हैं।
इस पुस्तक में डॉ. अनिरुद्धजी स्पष्ट रूप में कहते हैं कि “सम्पूर्ण जगत् के लिए भी (विशेषत: अमरीका के लिए) कष्टप्रद साबित होनेवाले एक भयप्रद ‘त्रिकूट’ का जन्म हो चुका है। चीन, पाकिस्तान एवं नॉर्थ कोरिया। यह अभद्र त्रिकूट, उसे चौथे भागीदार के मिलते ही सम्पूर्ण विश्व को युद्ध की खाई में धकेलनेवाला है। यह चौथा भागीदार इरान, जर्मनी अथवा सिरीया हो सकता है।”
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