'तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा: - २' (Ten Tyakten Bhunjeethah - 2)

सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी ने ०३ मार्च २००५ के प्रवचन में ‘तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा: - २’ इस बारे में बताया।

जब वो, देखिये भाई, जब तक एकरूप थी, है अद्‍वैतता, दो नहीं थे, एक ही था। तो कौन किसकी भक्ति करेगा, कौन किससे प्यार करेगा? प्यार करने के लिए तो द्वैत तो होना चाहिए। दो लोग चाहिए एक-दूसरे से प्यार करते हैं। तो विभक्त होके ही, तो उसने प्यार करना शुरू कर दिया भाई।

तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा: - २

यानी ‘तेन तक्तेन भुंजीथा:’ इस प्रमाण का, इस उपनिषद्‌ के वाक्य का अर्थ भी कौन बतलाती है हमें? राधाजी बतलाती हैं, ‘तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा:।’ उस से विभक्त हुई यानी उसका त्याग भी किया और त्याग करके उपभोग कर रही हैं, उसे प्यार कर रही है, ‘तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा:।’

यानी क्या? किशन से अलग तो हो गई, लेकिन अलग होने के बाद, यानी उसका त्याग करने के बाद ही उसके प्यार का उपभोग कर रही हैं। ‘तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा:।’, यही वो राधा है, वो जननी है।

इसीलिए हमें भी ये ‘तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा:।’ हमारी जीवन की सूत्री बनाना आवश्यक है, कि जिसने, जो हमारी जननी हैं उसका ही बेसिक गुणधर्म, बेसिक क्वॉलिटी इस ‘तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा:।’ त्याग करके विकास करना, त्याग करके उपभोग करना, तो हमें भी इसीलिए त्याग करना सीखना चाहिए। पहले अपने अधिकार का त्याग करो, उसके साथ-साथ मैं घर में बैठके दस रोटियाँ खाऊँ, उसके बदले नौ रोटी खाऊँ और एक रोटी किस गरीब को दे दूँ, भिखारी को नहीं। मेरे पास महिने सौ रुपये बच जाते हैं, तो उसमें से बीस-पचीस मैं किसी को देने की कोशिश करूँ, किसी अपाहिज को, किसी को, त्याग करने की कोशिश करो। अपना समय जो है, जो ऐसे टाईमपास कर देता हूँ, किसी की सेवा में लगा दूँ, अच्छे के लिए त्याग करूँ। अहंकार का त्याग करूँ, दुर्गुणों का त्याग करूँ।

आप सोचोंगे बापू, अभी आपने कहा त्याग करके उपभोग करना। अब दुर्गुणों का त्याग करके उपभोग करने वाली बात आ गयी तो प्रॉब्लेम आ जायेगी। नहीं, मैं मेरे बात से कभी भी वापस नहीं हटता, बड़ा अहंकारी जीव हूँ मैं। दुर्गुणों का त्याग करके आप उपभोग कर सकते हो। जब तक दुर्गुणों का आप त्याग नहीं करते, तब तक वो आपका उपभोग लेते हैं। जब तक दुर्गुणों का आप त्याग नहीं करते, तब तक वो आपका उपभोग करते हैं। क्रोध है, दुर्गुण हैं, जब तक आपने उसे त्यागा नहीं, तब तक वो आप पर सवार है। जब आपने उसका त्याग, उसे त्याग कर दिया, तब आप उस पर सवार हो गये। तब आप उसे जब चाहे इस्तेमाल कर सकते हो। जहाँ जरुरत है क्रोध की सिर्फ वहाँ ही क्रोध आ जायेगा, जहाँ जरुरत नहीं गलत है वहाँ आयेगा ही नहीं।

‘तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा: - २’ इस बारे में हमारे सद्गुरु श्री अनिरुद्ध ने पितृवचनम् में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।

|| हरि: ॐ || ||श्रीराम || || अंबज्ञ ||

॥ नाथसंविध् ॥