हनुमान

समीरदादा के ब्लॉग पर से मैं पुन: एक बार वह प्रकाशित करने वाला हूँ, श्रीपंचमुख-हनुमत्-कवच….. लेकिन हम उन पंचमुखी हनुमान जी का चेहरा या एकमुखी हनुमानजी का चेहरा भी दिल से हमारी आँखों के सामने लायेंगे….. आँखें बंद करके, आँखें खुली रखकर, उनकी फोटो (तसबीर) की तरफ देखकर या श्रीचण्डिकाकुल की तसबीर की तरफ देखकर….. हमें श्रीपंचमुख-हनुमत्-कवच कहना है….. कहते रहना है। इस वर्ष के लिए सिर्फ इस एक ही बात को हमें आत्मसात करना है….. कि ये जो हनुमानजी ….. उनका यह पंचमुख स्वरूप तुम्हारे पंच ज्ञानेन्द्रियों को सुरक्षा देता है, उनका विकास करता है, इतना ही नहीं, तुम्हारे पंचप्राण हैं, उन पंचप्राणों का संवर्धन करता है। पंचमहाभूतों एवं पंचतन्मात्रों पर, इन पर भी, इन पंचमुखहनुमानजी का स्वामित्व एवं प्रभुत्व है….. और ऐसे ये पंचमुखी हनुमानजी श्रद्धावानों की सुरक्षा के लिए आज मध्यरात्रि के १२ बजे…. आज मध्यरात्रि के १२ बजे से सिद्ध होने वाले हैं, हर एक के आप्त बनकर, उसके घर में रहने के लिए, उसके साथ उसकी ऑफिस (कचहरी) में, दुकान में आने के लिए….. उसके साथ निरंतर विचरण करने के लिए। फिर हमें अभागापन नहीं करना चाहिए। हम स्वीकार करेंगे इन हनुमानजी का प्रेम। ये पंचमुखी हनुमानजी श्रेष्ठ या एकमुखी हनुमानजी श्रेष्ठ ऐसा कुछ भी नहीं है। हनुमानजी एक ही हैं। श्रीदत्तात्रेयजी यानी ही श्रीहनुमानजी, यह हमने पढा ही है, हम जानते ही हैं। मगर फिर भी इन हनुमानजी का जो स्वरूप है और उसमें भी पंचमुखी हनुमानजी का जो स्वरूप है, वह श्रद्धावानों के लिए अत्यन्त ममता से, प्रेम से उनका ध्यान रखने वाला है….. उनकी हर एक भावना पर ध्यान देने वाला है। उनकी किसी भी भावना को वे कुचलने नहीं देते। उनके मन की हर एक बात पंचमुखी हनुमानजी जानते हैं, जान लेते हैं और उसके अनुसार जो कुछ भी करना आवश्यक होता है, वह स्थूल, सूक्ष्म और तरल इस तरह तीनों स्तरों पर वे करते रहते हैं….. और आज रात १२ बजे से वे पूरी तरह सिद्ध हुए हैं….. इस चण्डिकाकुल के हर एक श्रद्धावान के लिए, कुछ भी यानी बिलकुल कुछ भी करने के लिए, यह उनका वचन है। मैं सिर्फ वह वचन तुम तक पहुंचा रहा हूँ। लेकिन दिल से कहता हूँ कि यह कवच बहुत ही अद्भुत है। इसका अनेक अनुभव कर भी चुके होंगे। लेकिन अब इस १२ बजे के बाद के अगले ७ वर्ष यह श्रीपंचमुख-हनुमत्-कवच और आदिमाता चण्डिका की उपासना ही तुम्हें तारने वाली है। लेकिन इस वर्ष श्रीपंचमुख-हनुमत्-कवच जितनी अधिक बार कह सकोगे, उतनी बार कहने की कोशिश करना। हनुमानजी का चेहरा हमेशा स्मरण में रहे इसके लिए प्रयत्नों की पराकाष्ठा करना।

अनेक गलतियां होती हैं…. होंगी….. अनेक पाप भी होंगे, मायूस मत हो जाना। यह महिषासुरमर्दिनी, ये दुर्गा, हमें क्षमा नाम से क्षमा करने के लिए सदैव सिद्ध है, यह ध्यान में रखना। श्रीसाईसच्चरित की ओवी मैंने तुम्हें बार बार बतायी है। ‘मैं पापी अभागा दैवहीन, इस वृत्ति की खान अविद्या।’ इसलिए स्वयं को इस तरह दोष देने का….. मैं कोई फालतू हूँ, मैं गलत ही हूँ, मैं पापी ही हूँ, मैं बुरा ही हूँ, यह सब अब छोड दो। मैंने गलती की होगी, थक चुका रहूँगा, ऊब चुका रहूँगा, राह से भटक गया रहूँगा….. मगर फिर भी मैं इस चण्डिकाकुल के चरणों में आता हूँ, इसका अर्थ निश्चित रूप से मेरी दादी चण्डिका और मेरा बाप समर्थ रूप से मेरा खयाल रखने के लिए उत्सुक हैं….. और मैंने स्वयं भी ऑलरेडी पंचमुख-हनुमत्-कवच की उपासना पहले ही शुरू कर दी है….. मेरी माँ के आदेश के अनुसार….. और मेरे सारे बच्चे भी इसी तरह की शुरुआत करें और जो बल दूसरों को कभी भी मिल ही नहीं सकता, वह सारा बल, सब प्रकार का बल प्राप्त करते रहें….. और तुम ये ऐसा कर सकते हो इसका मुझे यकीन है और इसके लिए तुम्हारी हर बात की सहायता, मैं तुम्हारा बाप, जो मुझे पिता मानते हैं, बाप मानते हैं, डॅड कहते हैं, उस हर एक के लिए सर्वार्थ से, सब प्रकार से और सभी दिशाओं से करने के लिए मेरी माँ की ही कृपा से समर्थ हूँ।

श्री पंचमुख-हनुमत्-कवच - हिन्दी अर्थ

॥ हरि: ॐ ॥ ॥ श्री पंचमुख-हनुमत्-कवच ॥ (संस्कृत आणि मराठीत अर्थ) ॥ अथ श्रीपञ्चमुखहनुमत्कवचम् ॥   श्रीगणेशाय नम:| ॐ अस्य श्रीपञ्चमुखहनुमत्कवचमन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषि:| गायत्री छंद:| पञ्चमुख-विराट् हनुमान् देवता| ह्रीम् बीजम्| श्रीम् शक्ति:| क्रौम् कीलकम्| क्रूम् कवचम्| क्रैम् अस्त्राय फट् | इति दिग्बन्ध:| या स्तोत्राचा ऋषि ब्रह्मा असून छंद गायत्री, ह्या स्तोत्राची देवता पंचमुख-विराट-हनुमान आहे, ह्रीम् बीज आहे, श्रीम् शक्ति आहे, क्रौम् कीलक आहे, क्रूम् कवच आहे आणि ‘क्रैम् अस्त्राय

श्री पंचमुख-हनुमत्-कवच - हिन्दी अर्थ

।। हरि: ॐ ।।   ॥ श्रीपञ्चमुख-हनुमत्-कवच ॥   (मूल संस्कृत और हिन्दी अर्थ)  ॥ अथ श्रीपञ्चमुखहनुमत्कवचम् ॥   श्रीगणेशाय नम:। ॐ अस्य श्रीपञ्चमुखहनुमत्कवचमन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषि:। गायत्री छंद:। पञ्चमुख-विराट् हनुमान् देवता। ह्रीम् बीजम्। श्रीम् शक्ति:। क्रौम् कीलकम्। क्रूम् कवचम्। क्रैम् अस्त्राय फट् । इति दिग्बन्ध:। इस स्तोत्र के ऋषि ब्रह्मा हैं, छंद गायत्री है, देवता पञ्चमुख-विराट-हनुमानजी हैं, ह्रीम् बीज है, श्रीम् शक्ति है, क्रौम् कीलक है, क्रूम् कवच है और

अनिरुद्ध बापु

हरि ॐ, श्रीराम, अंबज्ञ। जय जगदंब जय दुर्गे। श्रीराम। मेरे सारे श्रद्धावान मित्रों को नूतन वर्ष की शुभकामनाएँ, अनंत शुभकामनाएँ। मेरे प्यारों, इस २०१७ से २०२४ तक के ७ से ८ वर्ष ….. ये इस समाजजीवन में…… भारतीय समाजजीवन में….. जागतिक समाजजीवन में….. राजनीति में….. अनेक प्रकार से, अनेकविध पद्धतियों से….. अनेकविध कारणों से…. निरंतर बदलते रहने वाले हैं। निरंतर बदलाव….. अनेक दिशाओं से परिवर्तन। ये बदलाव हम हर एक

सुंदरकांड पठन उत्सव - पहला दिन

सभी श्रद्धावान जिसकी अत्यधिक प्रतीक्षा कर रहे थे, उस ‘ सुंदरकांड पठन उत्सव ’ की, मंगलवार १७ मई २०१६ से शुरुआत हुई। हनुमानजी तो पहले से ही सभी श्रद्धावानों के लाड़ले देवता हैं; ऊपर से ‘सुंदरकांड’ जैसे, ‘तुलसीरामायण’ के बहुत ही मधुर भाग का पठन, इस तरह यह मानो ‘सोने पे सुहागा’ ही रहनेवाला कार्यक्रम होने के कारण, सुबह से ही श्रद्धावान बड़ी संख्या में पठन में सम्मिलित होने के

सुंदरकांड पठण उत्सव - १७ मई से २१ मई २०१६

संतश्रेष्ठ श्री तुलसीदास जी विरचित ‘श्रीरामचरितमानस’ यह ग्रंथ भारत भर के श्रद्धावान-जगत् में बड़ी श्रद्धा के साथ पढ़ा जाता है। इस ग्रन्थ के ‘सुंदरकांड’ का श्रद्धावानों के जीवन में बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। सद्गुरु श्री अनिरुद्ध जी को भी ‘सुंदरकांड’ अत्यधिक प्रिय है।  सीतामैया की खोज करने हनुमान जी के साथ निकला वानरसमूह सागरतट तक पहुँच जाता है, यहाँ से सुन्दरकांड का प्रारंभ होता है। उसके बाद हनुमान जी

सुंदरकांड पठण उत्सव - १७ मे ते २१ मे २०१६

संतश्रेष्ठ श्रीतुलसीदासजी विरचित ‘श्रीरामचरितमानस’ हा ग्रंथ सर्व भारतभर श्रद्धावानजगतात अत्यंत जिव्हाळ्याचा आहे आणि त्यातील ‘सुंदरकांड’ ह्या भागाला श्रद्धावानांच्या जीवनात आगळंवेगळं स्थान आहे. सद्गुरु बापूंसाठीही ‘सुंदरकांड’ ही अतिशय प्रिय गोष्ट आहे. सीतामाईच्या शोधाकरिता हनुमंताबरोबर निघालेल्या वानरांचा समूह समुद्रकाठी पोहोचतो इथपासून सुंदरकांडाची सुरुवात होते. त्यानंतर हनुमंत समुद्रावरून उड्डाण करून लंकेत प्रवेश करून सीतेचा शोध घेतो?व लंका जाळून पुन्हा श्रीरामांच्या चरणांशी येऊन त्यांना वृत्तांत निवेदन करतो. मग बिभीषणही श्रीरामांकडे येतो व श्रीराम वानरसैनिकांसह

गुरुकुल, जुईनगर येथील ‘श्रीअश्वत्थ मारुती पूजन’ (Shree Ashwattha Maruti Poojan)

परमपूज्य सद्‍गुरु बापू नेहमीच आपल्या बोलण्यातून श्रीहनुमंताचा (Shree Hanumant) उल्लेख “माझा रक्षकगुरु” असा करतात व बापूंनी तसे स्पष्टपणे आपल्या श्रीमद्‍पुरुषार्थ ग्रंथराजात लिहीलेही आहे. त्यांच्याच बोलण्यानुसार प्रत्येक भक्ताची भक्तीमार्गाची सुरुवात हनुमंतापासूनच होते. श्रीहरिगुरुग्राम येथे दर गुरुवारी होणा-या सांघिक उपासनेमध्येसुद्धा “ॐ श्रीरामदूताय हनुमंताय महाप्राणाय महाबलाय नमो नम:” ह्या जपाचा समावेश आहे आणि स्टेजवरील मांडणीमध्ये बापूंच्या बैठकीच्या मागे आपण रक्षकगुरु श्रीहनुमंताची मोठी तसबीरही बघतो. एवढेच नव्हे तर श्रीअनिरुध्द गुरुक्षेत्रम्‌मधील श्रीमद्‌पुरुषार्थ पुरुषोत्तम यंत्र (क्षमायंत्र)

श्रीअनिरुद्ध गुरुक्षेत्रम्‌ मधील हनुमान चलिसा पठण (Hanuman Chalisa)

श्रद्धावानांसाठी सर्वोच्च तिर्थक्षेत्र असणार्‍या श्रीअनिरुद्ध गुरूक्षेत्रम्‌ येथे दर वर्षी ‘हनुमान चलिसा पठण’ सप्ताह आयोजित केला जातो. यात सलग सात दिवस कमीतकमी १०८ श्रद्धावान प्रेमाने व श्रद्धेने १०८ वेळा (सकाळी ८ ते रात्रौ ८ या दरम्यान) हनुमान चलिसाचे पठण करतात. यावर्षी मंगळवार दिनांक २१ एप्रिल २०१५ (अक्षय तृतिया) पासून सोमवार २७ एप्रिल २०१५ (वैशाख शुद्ध दशमी) पर्यंत ‘हनुमान चलिसा पठण’ होणार आहे. या हनुमान चलिसा पठणात इतर श्रद्धावान येथे येऊन या

स्वार्थ (Swaarth)

शोकविनाशक हनुमानजी | ShokVinashak Hanumanji हनुमानजी जिस तरह सीताशोकविनाशक हैं, उसी तरह रामशोकविनाशक एवं भरतशोकविनाशक भी हैं। मानव को यह सोचना चाहिए कि जो सीता और श्रीराम के शोक हो दूर कर सकते हैं, वे हनुमानजी क्या मेरे शोक को दूर नहीं कर सकते? अवश्य कर सकते हैं। हनुमानजी के शोकविनाशक सामर्थ्य के बारे में परम पूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू  ने अपने १८ सितंबर २०१४ के हिंदी प्रवचन में बताया,