मूलाधार चक्र

मूलाधार चक्र – गुरुवार, दि. २१ जानेवारी २०१६ रोजी आपल्या पितृवचनामध्ये सद्‌गुरु बापूंनी अकारण कारुण्याची पुन्हा एकदा प्रचिती देत, श्रद्धावानांकरिता ही उपासना अधिक सुलभ केली. श्रीहरिगुरुग्राम येथे ही उपासना करतेवेळी तसेच घरीसुद्धा सप्तचक्रांच्या प्रतिमांकडे पाहत उपासना करत असताना, त्या त्या चक्राचा फक्त बीजमंत्र ॐ सहित उच्चारल्यासही ते फलदायी ठरेल असे बापूंनी नमूद केले. प्रत्येक चक्राच्या प्रतिमेच्या केंद्रस्थानी असणारे जे अक्षर आहे ते अक्षर म्हणजे त्या त्या चक्राचा बीजमंत्र आहे. उदाहरणार्थ मूलाधार चक्राच्या प्रतिमेच्या केंद्रस्थानी “लं” हे अक्षर आहे. घरी उपासना करताना, सर्वप्रथम पुस्तिकेत दिलेल्या मूलाधार चक्राच्या प्रतिमेकडे पाहत, “ॐ लं”, “ॐ लं” असे फक्त पाच वेळा म्हणून मग गायत्री मंत्र व स्वस्तिवाक्य उच्चारण केल्यास ते अधिक फलदायी ठरेल असे बापूंनी सांगितले. अशा तर्‍हेने खाली दिलेल्या तख्त्याप्रमाणे, प्रत्येक चक्राच्या प्रतिमेकडे पाहत, प्रतिमेच्या केंद्रस्थानी असणारा बीजमंत्र “ॐ” सहित पाच वेळा उच्चारून मग त्या चक्राचा गायत्री मंत्र व स्वस्तिवाक्य म्हणावे.

१) मूलाधार चक्र – ५ वेळा “ॐ लं”

२) स्वाधिष्ठान चक्र – ५ वेळा “ॐ वं”

३) मणिपुर चक्र – ५ वेळा “ॐ रं”

४) अनाहत चक्र – ५ वेळा “ॐ यं”

५) विशुद्ध चक्र – ५ वेळा “ॐ हं”

६) आज्ञा चक्र – ५ वेळा “ॐ उं”

७) सहस्रार चक्र – ५ वेळा “ॐ”

त्याचप्रमाणे बापूंनी सांगितले की श्रीहरिगुरुग्राम येथे “श्रीशब्दध्यानयोग” उपासनेच्या वेळी जेव्हा प्रत्येक चक्राचे मंत्रोच्चार (सूक्त) चालू असतात, तेव्हा सुद्धा त्या त्या चक्राचे सूक्त सुरु झाल्यापासून पूर्ण होईपर्यंत श्रद्धावान वरीलप्रमाणे संबंधित चक्राच्या बीजमंत्राचा अखंड जप करू शकतात.

वरील माहितीच्या अनुषंगाने सप्तचक्रांच्या प्रतिमा, सप्तचक्र दैवतांचे गायत्री मंत्र, सप्तचक्रांची स्वस्तिवाक्ये आणि मातृवाक्य मी श्रद्धावानांच्या सोयीकरिता खाली देत आहे.

सप्त चक्रप्रतिमा, सप्त चक्र दैवतांचे गायत्री मन्त्र, सप्त चक्रांची स्वस्तिवाक्ये आणि मातृवाक्य

1) मूलाधार चक्र

मूलाधार चक्र प्रतिमा :

सप्तचक्र - मूलाधार चक्र

मूलाधार चक्र गायत्री मन्त्र :

ॐ भू: भुव: स्व:

ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि।

तन्नो दन्ति: प्रचोदयात्॥

मूलाधार चक्र स्वस्तिवाक्य :

मूलाधारगणेशाच्या कृपेमुळे मी संपूर्णपणे सुरक्षित आहे.

मूलाधारगणेश की कृपा से मैं संपूर्ण रूप से सुरक्षित हूँ।

By the grace of the MuladharGanesh, I am completely safe and secure.

मूलाधारगणेशस्य कृपया अहं संपूर्णत: सुरक्षित:

Aniruddha Bapu told in his Pitruvachanam dated 28 Apr 2016 that Walk barefoot on the Earth, Chant Lam

परमपूज्य सद्‍गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने २८ एप्रिल २०१६ के पितृवचनम् में  ‘ॐ लं’ का जाप करते हुए जमीन पर नंगे पाव चलना चाहिए, इस बारे में बताया। जो गलत ions, ions यानी क्या बोलते हैं पोटॅशियम (K+), क्लोराईड (Cl-), ये जो ions हैं, फ़्री ions, हमारी बॉडी में जो रहते हैं, वो बहुत हार्म करते हैं, हमारे शरीर को बहुत तकलीफ पहुँचा सकते हैं। लेकिन जब हम जमीन पर

Aniruddha Bapu told in Pitruvachanam 28 Apr 2016 that The presiding deity for the Muladhara Chakra is ‘Ekadant’ Ganesha

परमपूज्य सद्‍गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने २८ एप्रिल २०१६ के पितृवचनम् में  ‘मूलाधार चक्र के स्वामी एकदन्त गणेश हैं’, इस बारे में बताया। यह उच्चारण की क्लॅरिटी (clarity) देनेवाला शस्त्र क्या है? दन्त। दिखानेवाला दाँत है। यही क्लॅरिटी का बेसिक है। क्या हम जो मन में होता है, वही उच्चार करते हैं? नहीं, हमारे खाने के दाँत अलग, दिखाने के दाँत अलग। ये कहता है, दिखाने के दाँत भी एक

मूलाधार चक्र की चार पंखुडियाँ (The four petals of Mooladhara Chakra) - Aniruddha Bapu

परमपूज्य सद्‍गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने ७ एप्रिल २०१६ के पितृवचनम् में ‘मूलाधार चक्र की चार पंखुडियाँ’ इस बारे में बताया। स्वाधिष्ठान चक्र को देखते समय ध्यान में रखिये की मूलाधार गणपति जो हैं, मूलाधार गणेश जो हैं, उनका जो ‘ॐ लं’ ये बीज है, इंद्र का भी बीज है, जो वसुंधरा का बीज है, ये जानते हैं कि इस वसुंधरा पर सारे विघ्नों का नाश करनेवाले जो मंगलमूर्ति गणेश

`ॐ लं ’ का जप करे (Chant `Om Lam') - Aniruddha Bapu

परमपूज्य सद्‍गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने ७ एप्रिल २०१६ के पितृवचनम् में  ‘ॐ लं का जप करें’, इस बारे में बताया।  शमनं, दमनं नहीं, destruction नहीं, दमन नहीं है, suppression भी नहीं, नॉर्मल करना। जो हमारे विकार या वासनाएँ हैं, जो भी हमारे षड्‌रिपु हैं, वे सारे षड्‌रिपु कहां से काम करते हैं? तो मूलाधार चक्र से काम करते हैं। और ये जो ‘शं बीज’ है, ये ‘लं बीज’ के

‘ ॐ लं ’ यह कहना ही काफी है - भाग २ (Chanting Om Lam is sufficient - Part 2) - Aniruddha Bapu

परमपूज्य सद्‍गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने ७ एप्रिल २०१६ के पितृवचनम् में ‘ ॐ लं यह कहना ही काफी है’ इस बारे में बताया। ये जो ‘शं’ बीज है, ये रुद्र का भी है और भद्र का भी है। हमें हमारी जिंदगी में दोनो चाहिए, लेकिन ये स्वरुप किसके लिये हैं? आवश्यकता क्या है? हम कोशिश करते हैं, मैं किसी को ना फसाऊं और मैं अध्यात्म मार्ग पर रहूं, भगवान

Chanting Om Lam is sufficient

परमपूज्य सद्‍गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने ७ एप्रिल २०१६ के पितृवचनम् में ‘ ॐ लं यह कहना ही काफी है’ इस बारे में बताया। अभी हम लोग यह चक्रों के बीजमंत्र को देख रहे हैं, right? तो यह मूलाधार चक्र हैं । मूलाधार चक्र के ‘ लं ’ बीज को हम देखते हैं। क्या है मूलाधार चक्र? उसके साथ हमें अब देखना हैं, ये जो चार दल हैं इस चक्र

सप्तचक्र उपासना - अधिक सुलभतेने कशी करावी?

गुरुवार, दि. १५ ऑक्टोबर २०१५ रोजी परमपूज्य सद्‌गुरु बापूंनी “श्रीशब्दध्यानयोग” ही, श्रद्धावानांचा अभ्युदय (सर्वांगीण विकास) घडवून आणणारी सप्तचक्रांची उपासना श्रीहरिगुरुग्राम येथे सुरु केली. त्यानंतर संस्थेतर्फे ह्या उपासनेची माहिती देणारी पुस्तिकाही श्रद्धावानांकरिता उपलब्ध करण्यात आली. पुस्तिकेत दिलेल्या माहितीनुसार, श्रद्धावान पुस्तिकेतील चक्रांच्या प्रतिमेकडे पाहता पाहता त्या संबंधित चक्राचा गायत्री मंत्र आणि स्वस्तिवाक्य म्हणत घरी उपासना करू शकतात. गुरुवार, दि. २१ जानेवारी २०१६ रोजी आपल्या पितृवचनामध्ये सद्‌गुरु बापूंनी अकारण कारुण्याची पुन्हा एकदा प्रचिती

सप्तचक्र उपासना - अधिक सुलभतासे कैसे करे?

गुरुवार, दि. १५ अक्तूबर २०१५ को परमपूज्य सद्‌गुरु बापू ने “श्रीशब्दध्यानयोग” यह, श्रद्धावानों का अभ्युदय (सर्वांगीण विकास) करानेवाली सप्तचक्रों की उपासना श्रीहरिगुरुग्राम में शुरू की। उसके बाद, इस उपासना की जानकारी देनेवाली पुस्तिका भी संस्था की ओर से श्रद्धावानों के लिए उपलब्ध करायी गयी। पुस्तिका में दी गयी जानकारी के अनुसार, श्रद्धावान पुस्तिका में दी गयीं चक्रों की प्रतिमाओं की ओर देखते हुए उस संबंधित चक्र का गायत्री मंत्र और

Everyone can easily understand the meaning of Swastivakyam

परमपूज्य सद्‍गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने २२ अक्तूबर २०१५ के पितृवचनम् में ‘ स्वस्तिवाक्यम्‌ का अर्थ हर एक की समझ में आसानी से आ सकता है ’ इस बारे में बताया।     जो सेंटेन्स है, जो वाक्य है, जो स्वस्तिवाक्यम्‌ है, वह मराठी, हिंदवी, अंग्रेजी और संस्कृत में है। सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि इन शब्दों का अर्थ हम easily, आसानी से जान सकते हैं। ये हमने प्रतिमा

श्रीशब्दध्यानयोग-विधि

परमपूज्य सद्‍गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने १५ अक्तूबर २०१५ के पितृवचनम् में ‘सप्तचक्रों (sapta chakras) में सन्तुलन रहने की आवश्यकता’ के बारे में बताया।   अनिरुद्ध बापू ने पितृवचन के दौरान यह बताया कि अब देखिए जिस पृथ्वी पर हम मानव बनकर आये हैं, उस वसुंधरा के भी सप्तचक्र हैं। वह भी पिंड है ना! तो उसके भी सप्तचक्र होते हैं। वसुंधरा के भी सप्तचक्र होते हैं। ब्रम्हांड के