प्रवचन

गुरुवार, 6 मार्च 2014 को परमपूज्य बापू ने ‘ त्रिविक्रम जल ’ इस विषय पर प्रवचन किया। हिन्दी प्रवचन में भी बापू ने इस सन्दर्भ में संक्षेप में जानकारी दी। इस ‘त्रिविक्रम जल’ विषय पर आधारित मराठी प्रवचन का हिन्दी भाषान्तर यहाँ पर संक्षेप में दे रहा हूँ, जिससे कि सभी बहुभाषिक श्रद्धावानों के लिए इस विषय को समझने में आसानी होगी।

‘हरि ॐ’। ‘श्रीगुरुक्षेत्रम् मंत्र’ यह हम सब लोगों का, हमारे जीवात्मा का मंत्र है । ॐ मानव-जीवात्मा-उद्धारक श्रीरामचंद्राय नमः।’ ॐ मानव-प्राणरक्षक श्रीहनुमंताय नमः। हर एक श्रद्धावान के लिए अपने जीवन को सोने की तरह सुंदर बना लेने का सुनहरा अवसर है, यह मंत्र ! हम ‘ॐ मंत्राय नमः’ में श्रीगुरुक्षेत्रम् मंत्र के बारे में जानकारी प्राप्त कर रहे हैं । उसमें ‘ॐ रामनामतनु श्रीअनिरुद्धाय नमः’ इस मंत्र में उच्चारित किए गए अनिरुद्ध यानी वे ‘त्रिविक्रम’ । उपनिषद् में जो त्रिविक्रम हैं, उन्हीं के नेतृत्व में उस संपूर्ण तीर्थयात्रा का आरंभ होता है । अठारह प्रभाव केंद्रों का आदर सत्कार करते हुए, वहाँ पर प्रणाम करके आदिमाता से मुलाकात कर (मिलकर) उनके शब्द (बोल) सुनकर उनके रूप को निहारकर उत्तम एवं मध्यम को ही नहीं, बल्कि विगत को भी, जिसने अनेक पाप किए हैं, गलतियाँ की हैं, उस विगत को भी ये त्रिविक्रम छोडते नहीं हैं। अर्थात उसे तीर्थयात्रा का कष्ट भी कम और पूरा का पूरा लाभ भी मिलता ही है । ऐसी हैं वे ‘आदिमाता’ और उनके ये ‘त्रिविक्रम’। एक ही समय में जो तीन कदम चलता है वह है ‘त्रिविक्रम’ ।

पिछली बार हमने देखा कि ये जो हैं, वे एक ही हैं । गणित में भी हमने देखा 1 x 1 = 1, 11 x 11 = 121, 111 x 111 = 12321, यह दाहिनी ओर का आकड़ा कितना भी बढते गया, फिर भी यहाँ बायीं ओर केवल एक ही है । यह केवल गुणाकार है, क्योंकि त्रिविक्रम कभी भी भागाकार नहीं करते, अ‍ॅडिशन नहीं करते, वे गुणाकार ही करते हैं । और इसीलिए उस आदिमाता की कृपा से वे एक ही (अकेले ही) सभी लोगों का भला करने वाले होते हैं । यह अद्भुतता है ‘1’ इस अंक की । वे अकेले ही विविध रूप तैयार करते हैं । कौन से व्हायब्रेशन्स, कौन से स्पंदन, कौन सी आकृति, कौन-सा रूप वे निर्माण नहीं कर सकते, ऐसा नहीं है…और वह भी केवल आँखों को दिखाई देनेवाले ही नहीं, बल्कि आँखों को न दिखाई देने वाले भी ।

Shivapanchakshari Stotra_Aniruddha Bapu

परमपूज्य सद्‍गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने ०२ मार्च जनवरी २०१७ के पितृवचनम् में शिवपंचाक्षरी स्तोत्र यह ‘ॐ नमः शिवाय’ इस मंत्र का ही स्पष्टीकरण है’, इस बारे में बताया। ये शिवपंचाक्षरी स्तोत्र क्या करता है, ‘ॐ नमः शिवाय’ इस मंत्र का ही explanation देता है, स्पष्टीकरण करता है। हमें जानना चाहिये कि ये हमें ये तत्व भी सिखाता है कि भाई, प्रार्थना करनी है तो कैसी कि भगवान ही सब

Shivapanchakshari Stotra_Aniruddha Bapu

परमपूज्य सद्‍गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने ०२ मार्च २०१७ के पितृवचनम् में ‘भय का निर्मूलन करने के लिए शिवपंचाक्षरी स्तोत्र यह बहुत ही प्रभावी स्तोत्र है’, इस बारे में बताया।   भय निर्मूलन के लिये शिवपंचाक्षरी स्तोत्र सबसे श्रेष्ठ माना जाता है, इतना छोटा होके भी। किसी भी तरीके का भय। अगर हमारे मन में भय उत्पन्न होता है, तो क्या बापू हम इस स्तोत्र का पठन कर सकते है?

Aniruddha Bapu told in his Pitruvachanam dated 14 Jan 2016 that, Jivatma is an integral part of Paramatma.

परमपूज्य सद्‍गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने १४ जनवरी २०१६ के पितृवचनम् में ‘जीवात्मा यह परमात्मा का ही अभिन्न अंश होता है’, इस बारे में बताया। और मैं क्या हूँ, every human being क्या है? तुम एक शरीर नहीं हो कि जिसमें आत्मा है। जान लो भाई, हम लोग क्या सोचते हैं कि, मेरा शरीर है और मेरे शरीर में मेरी आत्मा है, नहीं, तुम आत्मा हो, जिसके पास एक शरीर

परमपूज्य सद्‍गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने ५ फरवरी २००४ के हिंदी प्रवचन में ‘इस विश्व की मूल शक्ति सद्‍गुरुतत्त्व है’ इस बारे में बताया।

परमपूज्य सद्‍गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने ५ फरवरी २००४ के हिंदी प्रवचन में ‘इस विश्व की मूल शक्ति सद्‍गुरुतत्व है’ इस बारे में बताया। हमारे मन में प्रश्न उठता होगा कि मैं रामनाम लूं या एक बार रामनाम लेकर १०७ बार राधानाम लूं या गुरू का नाम लूं या जो भी कोई नाम लूं, कितनी भी बार लूं तब भी कोई प्रॉब्लेम नहीं है। एक साथ नामों की खिचडी

परमपूज्य सद्‍गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने ५ फरवरी २०१५ के हिंदी प्रवचन में ‘भक्ति हमारा शुद्ध भाव बढाती है’ इस बारे में बताया।

परमपूज्य सद्‍गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने ५ फरवरी २००४ के हिंदी प्रवचन में ‘भक्ति हमारा शुद्ध भाव बढाती है’ इस बारे में बताया। हिरन और शेर का उदाहरण देते हुए अनिरुद्ध बापू ने भय और निर्भयता ये शुद्धता और अशुद्धता से ही आते हैं, यह समझाया। हिरन के पास भय है और यह भय (डर, Fear) यह सब से बुरी अशुद्धता है। यहॉ अशुद्धता के बारे में नही सोच

परमपूज्य सद्‍गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने ५ फरवरी २००४ के हिंदी प्रवचन में ‘शुद्धता यह सामर्थ्य है’ इस बारे में बताया।

परमपूज्य सद्‍गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने ५ फरवरी २००४ के हिंदी प्रवचन में ‘ शुद्धता यह सामर्थ्य है ’ इस बारे में बताया। कृष्ण भगवान और राधाजी का हमारे जिंदगी के साथ क्या रिश्ता है, यह बात समझाने के लिए अनिरुद्ध बापू ने पानी और साबुन का उदाहरण देकर समझाया। उन्होंने कहा- ‘हम देखते हैं कि जब हम स्नान करते हैं। जिस पानी से हम स्नान करते हैं वह पानी

परमपूज्य सद्‍गुरू श्री अनिरुद्ध बापूंनी त्यांच्या २८ मे २०१५ च्या मराठी प्रवचनात ‘आदिमाता शक्ति पुरवायला समर्थ आहे’ याबाबत सांगितले.

परमपूज्य सद्‍गुरू श्री अनिरुद्ध बापूंनी त्यांच्या २८ मे २०१५ च्या मराठी प्रवचनात ‘ आदिमाता शक्ति पुरवायला समर्थ आहे ’ याबाबत सांगितले. आदिमातेकडे तिच्या बाळांसाठी भेदभाव नाहीव. सर्व तिची बालकंच आहेत. तिच्यासाठी छोटे बालक, आणि वृद्ध ही बालकंच आहे. वयाची अडचण आदिमातेला आड येत नाही. आपण प्रथम आपला भाव तपासून पहायला हवा. त्यात तसूभरही फरक वाटला तर ती चूक सुधारायला हवी. त्यासाठी ती आदिमाता आणि तिचा पुत्र त्रिविक्रम आपल्या हातात शंभरपट

परमपूज्य सद्‍गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने ५ फरवरी २००४ के हिंदी प्रवचन में ‘राधाजी शुद्ध भाव हैं (Radhaji is shuddha bhaav)’ इस बारे में बताया।

राधाजी शुद्ध भाव हैं (Radhaji is shuddha bhaav) – Aniruddha Bapu‬ परमपूज्य सद्‍गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने ५ फरवरी २००४ के हिंदी प्रवचन में ‘राधाजी शुद्ध भाव हैं’ इस बारे में बताया। हम उपासना करते हैं, साधना करते रहते हैं, आराधना करते रहते हैं, पूजन करते हैं, अर्चन करते हैं। अपने अपने धर्म, पंथ, प्रदेश, रीतिरिवाज के अनुसार अलग अलग तरीके से कर सकते हैं। कोई प्रॉब्लेम नहीं। लेकिन

राधा सहस्त्रनाम

सहस्र रामनामतुल्य राधा नाम (Sahastra Ramnaam-Tulya Radha Naam) – Aniruddha Bapu‬ परमपूज्य सद्‍गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने ५ फरवरी २००४ के ‘राधासहस्रनाम’ हिंदी प्रवचन में ‘सहस्र-रामनाम-तुल्य राधा नाम’ इस बारे में बताया। जब वेदव्यासजी ने गुरु नारदजी से यह पूछा कि मैं तो बस ‘राम’ नाम रटते ही आ रहा था, क्योंकि आपने ही मुझे बताया था कि एक राम नाम ही सहस्र नामों के बराबर है। तब नारदजी

लक्ष्मी अनपगामिनी असते Aniruddha Bapu

क्रमशील विकासाचा मार्ग (The Path of sequential development) – Aniruddha Bapu‬ परमपूज्य सद्‍गुरू श्री अनिरुद्ध बापूंनी त्यांच्या ४ जून २०१५ च्या मराठी प्रवचनात ‘ लक्ष्मी क्रमशीलतेच्या मार्गाने येते ’ याबाबत सांगितले. श्रेष्ठ ब्रह्मवादिनी लोपामुद्रेने लक्ष्मी मातेला आवाहन करण्यास जातवेदाला (त्रिविक्रमाला) सांगितले आहे कारण फक्त तोच लक्ष्मी मातेला किंवा महालक्ष्मीला आणू शकतो. तो या लक्ष्मी मातेला आणणार आहे, पण आम्हाला माहीत पाहिजे की लक्ष्मी कोणत्या मार्गाने येते? तर ती क्रमशीलतेच्या मार्गाने