चण्डिका

गत ५ वर्षों से श्रद्धावान महिलाएँ परमपूज्य सद्गुरु श्री (अनिरुद्ध) बापू के मार्गदर्शन में हर्षोल्लास के साथ  ‘श्रीमंगलचण्डिका प्रपत्ती’ कर रही हैं। ‘प्रपत्ती’ यानी आपत्तिनिवारण करनेवाली शरणागति। जैसा कि बापू ने कहा है, ‘श्रीचण्डिका उपासना’ यह रामराज्य के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। बापू के कहेनुसार, माँ जगदम्बा की, महिषासुरमर्दिनी की उपासना करने पर ही अशुभ का नाश हो जाता है, अशुभ दूर हो जाता है और यश एवं पराक्रम की प्राप्ति होती है और वे अबाधित रहते हैं। ‘श्रीमंगलचण्डिका प्रपत्ती’ यह माता चण्डिका (दुर्गामाता) की उपासना ही है। यह प्रपत्ती करते समय, बापू के बतायेनुसार पूजन की रचना की जाती है। रचना के उपर, थाली में महादुर्गा के यानी ‘मोठी आई’ के पदचिन्ह हल्दी और कुंकुम से आरेखित किये जाते हैं। उसकी चारों ओर से ही श्रद्धावान महिलाएँ पूजन, आरती तथा गजर करती हैं।

प्रपत्तीपरिसर के माहौल को अधिक ही मंगलमय एवं आल्हाददायी बनाती है, वे परमपूज्य सद्गुरु की तसवीर की चहुँ ओर बनाये गयी फूलों की सुंदर सजावट तथा विभिन्न प्रकार की रंगोलियाँ। श्रद्धावान महिलाएँ उपासना केन्द्रों में बड़ी तादात में एकत्रित होकर हर्षोल्लास के साथ प्रपत्ती मनाती हैं। विदेश में रहनेवालीं कुछ श्रद्धावान महिलाएँ तो ४ डिग्री टेंपरेचर में भी हर साल आनंद एवं उत्साह के साथ प्रपत्ती मनाती हैं।

‘माँ चण्डिका यानी ‘मोठी आई’ हमें ‘श्रद्धावान सैनिक’ के रूप में तैयार कर ही रही है’ इस दृढ़ विश्वास के साथ हर साल श्रद्धावान महिलाएँ प्रपत्ती की तैय्यारियाँ करती हैं।

सद्गुरु अनिरुद्ध बापू

परमपूज्य सद्‍गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने १८ फरवरी २०१६ के पितृवचनम् में परीक्षार्थियों को शुभकामनाएँ दीं। सद्गुरु अनिरुद्ध बापू ने कहा कि सभी परीक्षार्थियों को मेरी शुभकामनाएँ। बिनधास माँ (आदिमाता चण्डिका) का नाम लेकर परीक्षा में पेपर लिखने बैठ जाइए और आराम से लिखिए। शांत चित्त्त से लिखिए। जो भी माँ का नाम लेता है, उसे कभी भी किसी से भी डरने की आवश्यकता नहीं होती है। OK! All the

‘मैं हूँ’ यह त्रिविक्रम का मूल नाम है - भाग २ (‘ I Am ’ Is Trivikram's Original Name - Part 2) - Aniruddha Bapu‬ Hindi‬ Discourse 01 Jan 2015

‘मैं हूँ’ यह त्रिविक्रम का मूल नाम है – भाग २ (‘ I Am ’ Is Trivikram’s Original Name – Part 2) मानव को स्वयं के बारे में कभी भी नकारात्मक रूप में नहीं सोचना चाहिए। भगवान से कुछ मांगते समय भी सकात्मक सोच ही होनी चाहिए। ‘भगवान आप मेरे पिता हो और मैं आपका पुत्र हूं। आप ऐश्वर्यसंपन्न हो, ऐश्वर्यदाता हो इसलिए मेरे पास भी ऐश्वर्य है, आप उसे

‘मैं हूँ’ यह त्रिविक्रम का मूल नाम है (‘I Am’ Is Trivikram's Original Name) - Aniruddha Bapu‬ Hindi‬ Discourse 01 Jan 2015

‘मैं हूँ’ यह त्रिविक्रम का मूल नाम है (‘I Am’ Is Trivikram’s Original Name) आदिमाता चण्डिका और उनके पुत्र त्रिविक्रम (Trivikram) से कुछ मांगते समय श्रद्धावान को सकारात्मक (पॉझिटिव्ह) रूप से मांगना चाहिए। वेदों के महावाक्य यही बताते हैं कि हर एक मानव में परमेश्वर का अंश है। यदि मानव में परमेश्वर का अंश है तो उसे नकारात्मक रूप से मांगने की आवश्यकता ही नहीं है। ‘मैं हूँ’ यह त्रिविक्रम

श्रीसूक्ताच्या पहिल्या ऋचेचा अर्थ - भाग १५  (The Meaning Of The First Rucha Of Shree Suktam - Part 15) - Aniruddha Bapu‬ ‪Marathi‬ Discourse 18 June 2015

श्रीसूक्ताच्या पहिल्या ऋचेचा अर्थ- भाग १५ (The Meaning Of The First Rucha Of Shree Suktam – Part 15) लहान मूल ज्याप्रमाणे आपल्या आईवडिलांकडे, आजीआजोबांकडे हट्ट करते, अन्य कुणा तिर्‍हाइकाकडे हट्ट करत नाही; त्याप्रमाणे श्रद्धावानाने आपल्या पित्याकडे म्हणजेच त्रिविक्रमाकडे हट्ट करावा, त्रिविक्रमाच्या मातेकडे म्हणजेच आपल्या आजीकडे अर्थात श्रीमातेकडे हट्ट करावा. त्रिविक्रमच उचित ते सर्वकाही देणारा आहे. या जगात जे जे काही शुभ, कल्याणकारी, मंगल आहे ते निर्माण करणारा ‘जातवेद’ त्रिविक्रम आहे.

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श्रीसूक्ताच्या पहिल्या ऋचेचा अर्थ – भाग १४ (The Meaning Of The First Rucha Of Shree Suktam – Part 14) सर्व प्रकारच्या प्रगतीची देवता लक्ष्मीमाता (Laxmi) आहे. ‘हे जातवेदा, लक्ष्मीमातेला माझ्याकडे घेऊन ये’, अशी प्रार्थना ब्रह्मवादिनी लोपामुद्रा श्रीसूक्ताच्या पहिल्या ऋचेत करते. मानवाकडे असणारी सर्वांत मोठी क्षमता आहे- प्रार्थना (prayers) करण्याची क्षमता. प्रार्थना म्हणजे प्रेमाने, विश्वासाने भगवंताला साद घालणे, मनोगत सांगणे. श्रद्धावानाने प्रेमाने, विश्वासाने केलेली प्रार्थना भगवंताने ऐकली नाही असे कधी होऊच

त्रिविक्रम तुमसे प्रेम करते हैं (Trivikram Loves You) - Aniruddha Bapu‬ Hindi‬ Discourse 25 Dec 2014

त्रिविक्रम तुमसे प्रेम करते हैं (Trivikram Loves You) श्रद्धावान को दुष्प्रारब्ध से डरना नहीं चाहिए, किसी भी मुसीबत से हार नहीं माननी चाहिए। आदिमाता चण्डिका और उनके पुत्र त्रिविक्रम से श्रद्धावान को सहायता अवश्य मिलती है। वे श्रद्धावान की हर प्रकार से सहायता करते ही हैं। त्रिविक्रम क्यों हमारे लिए इतना करते हैं? क्योंकि वे प्रेममय हैं। त्रिविक्रम तुमसे निरपेक्ष प्रेम करते हैं, इस बारे में परमपूज्य सद्गुरू श्री अनिरुद्ध

श्रीसूक्ताच्या पहिल्या ऋचेचा अर्थ - भाग १३ (The Meaning Of The First Rucha Of Shree Suktam - Part 13) - Aniruddha Bapu‬ ‪Marathi‬ Discourse 16 April 2015

श्रीसूक्ताच्या पहिल्या ऋचेचा अर्थ – भाग १३ (The Meaning Of The First Rucha Of Shree Suktam-Part 13) भारतवासीयांच्या जीवनात सुवर्ण (gold) आणि रौप्य (silver) यांचे स्थान प्राचीन काळापासून अबाधित आहे आणि ऋषिसंस्थेने भारतीय समाजजीवन सुन्दर रित्या घडवले आहे. (Ramayan) रामायणकाळातील ऋषि हे राजसत्तेसमोर लाचार झालेले नाहीत, हे आम्ही पाहतो. या ऋषिसंस्थेने भारतीय समाजास प्रपंच-परमार्थ दोन्ही सुन्दर रित्या करण्यासंबंधी मार्गदर्शन केले. जातवेद हा मूळ ऋषि आहे आणि पुरोहितही. श्रीसूक्ताच्या पहिल्या ऋचेत

श्रीसूक्ताच्या पहिल्या ऋचेचा अर्थ- भाग १२ (The Meaning Of The First Rucha Of Shree suktam - Part 12) - Aniruddha Bapu‬ ‪Marathi‬ Discourse 16 April 2015

श्रीसूक्ताच्या पहिल्या ऋचेचा अर्थ- भाग १२ (The Meaning Of The First Rucha Of Shree suktam-Part 12) विविध प्रकारचे सुवर्ण (सोने)(gold) आणि रजत (चांदी)(silver) ‘माझ्या जातवेदा! माझ्या श्रीमातेला माझ्यासाठी माझ्या जीवनात, माझ्या क्षेत्रात घेऊन ये’, असे आवाहन जातवेदास म्हणजेच त्रिविक्रमास करण्याबाबत माता लोपामुद्रा श्रीसूक्ताच्या पहिल्या ऋचेद्वारे आम्हाला सांगत आहे. माझ्यासाठी, माझ्या आयुष्यातील प्रश्न सोडवण्यासाठी, संकटाचे रूपान्तर संधीत करण्यासाठी, हित करण्यासाठी जे मूलभूत सामर्थ्य लागते, ते सामर्थ्य सुवर्ण-रजत या मूलभूत तत्त्वांमध्ये आहे.

श्रीश्वासम्‌ उत्सवाच्या सुखद स्मृति सदैव स्मरणात (Shreeshwasam Utsav Memories)

४ मे २०१५ ते १० मे २०१५ या कालावधीत आपण श्रीश्वासम्‌ उत्सव आनंदात साजरा केला. या उत्सवादरम्यान अनुभवलेल्या सर्वच अध्यात्मिक कार्यक्रमांची मजा काही औरच होती. या उत्सवातील प्रत्येक गोष्ट मग ती परिक्रमा, पूजन, प्रसाद अर्पण, मुषक (mouse) काढणे, झालीच्या खालून जाऊन दर्शन घेणे, गुह्यसुक्तम्‌ (Guhyasooktam), उषा पुष्करणी वा जलकुंभ असो त्याची स्मृति सदैव आपल्या श्रद्धावानांच्या स्मरणात रहाणारच आहे. या उत्सवानंतर अनेक श्रद्धावानांकडून श्रीश्वासम्‌ उत्सवाचे व्हिडिओ DVDच्या स्वरूपात मिळतील का याबाबत

Shreeshwasam Utsav Memories forever...

Shreeshwasam, which all we Shraddhavaans had so eagerly looked forward to, was held between 4th & 10th of May 2015. After Parampoojya Bapu had emphasized its unimaginable importance, Shreeshwasam had become the most awaited thing for all of us. Every one of the Shraddhavaan who could participate in the festivities will, I am sure, be carrying with them a treasure trove of memories that will last far beyond this lifetime.