चण्डिकाकुल

८ दिसंबर २०१५ को अस्पताल से नवजात शिशु का आगमन बापू और सुचितदादा के आवासस्थल हॅपी होम में हुआ। सर्वप्रथम सारे परिवार ने श्रीगुरुक्षेत्रम् में चण्डिकाकुल के दर्शन कर शिशु के लिए आदिमाता चण्डिका से आशीर्वाद-प्रार्थना की। घर में प्रवेश करने से पहले वैदिक प्रार्थना तथा नवमन्त्रमाला स्तोत्र का पाठ करते हुए शिशु का औक्षण किया गया।

Saptamatruka pujan at Residance of Aniruddha bapu

सुचितदादा ने बापू को मिठाई खिलाते हुए |

परिजनों एवं आप्तमित्रों ने बॅंडबाजे के साथ जमकर नाचते हुए नये मेहमान के घर आने की खुशी मनायी। बापू, नन्दाई और सुचितदादा भी  हर्ष-उल्लास के साथ इसमें सम्मिलित हुए। इस शुभ अवसर पर सुचितदादा ने बापू को मिठाई खिलायी।

बालक का आगमन होते ही उसी दिन शाम को घर में श्री सप्तमातृकापूजन का आयोजन किया गया। आदिमाता की कृपा से बच्चे को निरामय दीर्घायु प्राप्त हो, इस उद्देश्य से श्रद्धावान श्री सप्तमातृकापूजन करते हैं। इस पूजन का उद्देश्य, महत्व और पूजनपद्धति के बारे में बापूजी ने २४ अक्तूबर २०१३ के प्रवचन में मार्गदर्शन किया है।

‘श्री मातृवात्सल्यविंदानम्’ ग्रन्थ में हम पढते हैं कि शुंभ-निशुंभ नाम के राक्षसों से लड़ते समय महासरस्वती की सहायता के लिए सभी देव अपनी अपनी शक्ति भेजते हैं। वे सात शक्तियां ही सप्तमातृकाएं हैं और उनकी सेनापति है आह्लादिनी काली।

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श्रीसूक्त परिचय (Introduction Of Shree Sooktam) श्रीसूक्त (Shree Sooktam) हे अत्यंत सुन्दर सूक्त आहे. श्रीविद्येची पंधरा अक्षरे, पंधरा कला मानल्या जातात. श्रीसूक्त हे पंधरा ऋचांचे सूक्त साक्षात श्रीविद्याच आहे, असेही म्हणतात. अत्यंत सोप्या शब्दांत या सुन्दर सूक्तात श्रीमातेसंबंधी, चण्डिकाकुलासंबंधी सर्वकाही सांगितले आहे. श्रीसूक्ताबद्द्ल माहिती देताना सद्गुरु श्रीअनिरुद्धांनी त्यांच्या १६ एप्रिल २०१५ रोजीच्या प्रवचनात जे सांगितले, ते आपण या व्हिडियोत पाहू शकता. ॥ हरि ॐ ॥ ॥ श्रीराम ॥ ॥ अंबज्ञ

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आदिमाता चण्डिकेवरील आणि तिच्या पुत्रावरील म्हणजेच त्रिविक्रमावरील प्रेम वाढवत रहा (Increase The love For Aadimata Chandika And Her Son Trivikram) प्रेम वाढवत नेण्याचा संकल्प या वर्षी (२०१५) प्रत्येक श्रद्धावानाने करावा. या संकल्पात ज्याप्रमाणे स्वत:चे आप्तस्वकीय, मित्रमंडळी यांच्यावर प्रेम वाढवत राहणे अभिप्रेत आहे, त्याचप्रमाणे आदिमाता चण्डिकेवर आणि तिच्या पुत्रावर म्हणजेच त्रिविक्रमावर(Trivikram) अधिकाधिक प्रेम करणेसुद्धा अभिप्रेत आहे. आदिमाता चण्डिका आणि तिचा पुत्र त्रिविक्रम(Trivikram) स्वत:च प्रेमस्वरूप असल्यामुळे त्यांच्यावरील प्रेम आपोआप वाढत राहते, असे