स्वयंभगवान त्रिविक्रम के अठारह वचन

कल गुरुवार २ अगस्त २०१८ के दिन श्रीहरिगुरुग्राम में बापू ने, अत्यधिक महत्त्वपूर्ण ‘स्वयंभगवान त्रिविक्रम के अठारह वचनों’ के बारे में बताया। हम इन वचनों का लाभ गुरुवार १६/०८/२०१८ को बापू के साथ ले पायेंगे। इसी के साथ बापू ने ‘स्वयंभगवान त्रिविक्रम’ का गजर शारण्य तथा आनंद भाव से कैसे करना है इसके बारे मे भी बताया है।

इसकी वीड़ियो क्लिप मैं blog तथा WhatsApp और YouTube पर अपलोड़ कर रहा हूँ।

इस व्हिडीओ का शब्दांकन निचे दिया गया है -

"मैंने पहिले बात की है, दो घंटे पहले भी बात की मेरे बच्चों के साथ। आप को भी बताता हूँ जो नहीं थे। ये जो भाव है ये हिलने का, हाथ उपर करने का, ये शरणागती का भाव है, ‘Hey Lord Trivikram, we are your eternal servitors...not servant...'Servitor'. Servant यानी नौकर, Servitors यानी दास। वो दास्य है, जो प्रेमस्वरूप है, वो दास होता है, ओके। ये दास्यभावना से, शरणागत भावना से जब करना है, तब हाथ ऊपर करना। आनंद से करना है तो हिल-डूलकर के करना और किसी भी पोझिशन में करो, प्रेम से करो। इस भाव के साथ करो, दास्य से, दास्य भक्ती जो होती है सबसे महान होती है। दास्यभक्त कौन है सबसे श्रेष्ठ - हनुमानजी। हनुमान जैसी भक्ती किसी में नहीं हो सकती। इसी लिए दास्यभाव की जो भक्ती होती है, right the servitorship, I am eternal server of God, I want to serve you always in every birth. हर जनम में मैं आपकी सेवा करना चाहता हूँ, आपका ही दास रहना चाहता हूँ। कैसे भी करे, कुछ भी करूँ लेकिन आपकी सेवा में रहूँ, आपके नामसुमिरन में रहूँ, आपके पूजन में रहूँ, ओके। और ये सेवा क्या होती है? ये शरणागती क्या होती है? अनुसंधान क्या होता है? अनुसंधान यानी सतत संपर्क, नित्य संपर्क कैसे हो सकता है? ये सभी अभी आहिस्ते-आहिस्ते करके खुलनेवाला है हमारे सामने। अग्रलेख जो है, जो अल्टरनेट डे आते हैं प्रत्यक्ष में, त्रिविक्रम की कथा उनके साथ ही आ रही है । अब थोडे दिन में गुणवर्णन शुरु होगा। actually शुरु हो गया है, मैने अभी लिखके रखे हुए हैं तो आयेगा अभी दो-एक हफ्ते में। लेकिन यहाँ भी हम सिखते जायेंगे। १६ तारीख को गुरुवार के दिन यहां यानी अभी इतने देर से नहीं। जो प्रॉपर टाईम हमारा उपासना का होता है, उपासने के बाद।  भगवान त्रिविक्रम के - स्वयं भगवान त्रिविक्रम के अठारह वचन हैं, प्रॉमिसेस हैं अपने भक्तों के लिए वो सादर किए जायेंगे और वो वचन जो हैं, शब्दांकित किए हैं, खुद ये डॉक्टर अनिरुद्ध धैर्यधर जोशी ने। ये अठारह वचन हैं, वो हम लोग सुनेंगे, अपनायेंगे। मराठी हिंदी दोनों में अभी उपलब्ध हैं, आहिस्ते करके सभी भाषाओं में भी आ जायेंगे। इसके साथ साथ हम सीख लेंगे की मैंने जो बताया कि ये इटर्नल सर्व्हिटारशिप (eternal servitorship) क्या होती है। ये नित्य दास्यभाव कैसा होता है, ये नित्यानुसंधान कैसे रख सकते हैं? ओके, इसके लिए कुछ योजनाएँ बनायी गयी हैं। योजनाएँ यानी working plans नहीं, भाव के प्लॅन्स। मन से कैसे करें? सेवा यानी सिर्फ झाडू मारना नहीं, झाडू मारना भी सेवा है, मैला साफ करना भी सेवा है, कुछ भी काम करना सेवा है, लेकिन इसके साथ-साथ उसमें प्यार रखना, उसके नाम पर प्यार रखना, उसके शब्द का आदर करना, ये जो है, ये भी सेवा है। रामनाम बही लिखना ये भी सेवा है, जप करना ये भी सेवा है, गोधडी सिलाना ये भी सेवा है, ओ.के.। प्रवचन सुनना ये भी सेवा है, अनुभव कथन करना भी सेवा है, अनुभव सुनना भी सेवा है, ये ध्यान में रखिये। ये सभी बताया जायेगा, हमें सिखाया जायेगा कि कैसे हम हमारा पूरा लाईफ, हमारी पूरी जिंदगी इस भगवान के साथ, जो स्वयं-भगवान एकमेव हैं - त्रिविक्रम, उसके, उसकी छाया में, उसके प्रेमछाया में, उसके प्रेमछत्र के नीचे ये जिंदगी ही नहीं हर जिंदगी, क्या करेंगे? समर्थता से जियेंगे। अशक्त होकर नहीं, दु:खी होकर नहीं, दरिद्री होकर नहीं, दुर्बल होकर नहीं। अपनी जो मान है, नेक है, मान जो है वो कैसे रखे ? ऐसे ओके। एक बार हम लोग उसके दास हो गये तो हमें दूसरे किसी के सामने झुकना नहीं पड़ेगा, ओके। सो, १६ तारीख को, ये त्रिविक्रमजी के अठारह वचन जैसे मुझे लगा मैंने लिखे हुए हैं। कृपया आप मीठा मान लीजिए। तो सुनेंगे? उपासना के बाद करेंगे, ओके। और सब लोग सीखने को तैयार हैं? कि अनुसंधान त्रिविक्रमजी के साथ कैसे रखना है? नक्की? ओके। तो मैं इसलिये एक बताता हूँ कि ये जो अनुसंधान है, ये नित्य सुमिरन हैं, ये नित्य दास्यत्व है, इसके लिए एक ऐसा कुछ बनाया जा रहा है, एक domain जैसा बनाया जा रहा है, कि जो निरंतर हर एक श्रद्धावान को रास्ता दिखाता रहेगा, ताकद देता रहेगा, सहायता देता रहेगा, मदत करता रहेगा, उसके साथ-साथ रहेगा। और मुख्य है जीना सिखायेगा, नहीं तो हमें इतनी जीवनीय शक्ती देगा की हम हमारा पूरा जीवन उस भगवान के चरणों के सहारे बस सूख से, समृद्धी से, बल से, गर्व से नहीं, स्वाभिमान से, ओके। जियेंगे, जिके दिखायेंगे और बार-बार उसी के साथ आते रहेंगे, ओके।"

॥ हरि ॐ ॥ ॥ श्रीराम ॥ ॥ अंबज्ञ ॥