श्रीशब्दध्यानयोग - ०१

सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी ने १५ अक्टूबर २०१५ के पितृवचनम् में ‘श्रीशब्दध्यानयोग- ०१’ इस बारे में बताया।

तो हमारा मूल निवास कहाँ था, हम लोग नहीं जान सकते, ओ.के., ये एक बात है। दूसरी बात क्या होती है, बहुत बार हम लोगों का कुलदैवत कौनसा है, यह भी हमें मालूम नहीं होता। हमारा ग्रामदैवत कौन सा है, हमें मालूम नहीं रहता। ये वास्तुदेवता भी होती है डेफिनेटली। ये सब क्या है? कुलदेवता भी है, गृहदेवता भी है, वास्तुदेवता भी है डेफिनेटली है। ये सारे चण्डिकाकुल के अंदर ही आते हैं।

आज कल हम लोग अपना यह कुलाचार जो है, कुल के आचार, जितने पहले लोग कर सकते थे, सौ साल पहले, उतने आसानी से नहीं कर सकते। कुलदेवता कहीं ग्राम की बहोत दूर होती है, ग्रामदेवता दूर होती है, वहाँ जाकर, दस साल में एक बार आए तो भी बहुत हो गया। उसके साथ-साथ क्या होता है? ये हमारी जन्मशृंखला का एक दैवत होता है। ये हमारे जिन दो जन्मों को लेकर हम लोग आए हैं, दो जन्मों के पापों को और पुण्य लेकर, उन जन्मों में किस देवता अर्चन-पूजन हम लोगों ने किया था, उस देवता का वो स्वरूप भी हमारे साथ जुड़ा हुआ होता है ऑब्व्हियसली, राईट, तुम वो भी नहीं जानते। इतना ही नहीं, हमारा जो उपेक्षित दैवत होता है कभी-कभी, आप लोग कहेंगे ‘बापु, उपेक्षित दैवत क्या होता है?’ जब कुछ काम हम लोग करते हैं, चलो ‘ए भवानी माँ, चलो मैं ऐसा हो जाए, फिर मैं तुम्हें दस किलो शक्कर दे दूँगी’ और भूल जाते हैं। दस किलो क्या, दस दाना भी नहीं देते और ये सब पुरखों चला आया हुआ होता है।

साईचरित्र में हम लोग कथा देखते हैं, साईबाबा की, माधव देशपांडे के माँ की, शामरावजी की माँ ने एक मन्नत माँगी हुई होती है, जो ‘नवस’ बोलते हैं मराठी में। उसे पचास साल के बाद पूरा किया जाता है, राईट। उसे ‘उपेक्षित दैवत’ कहते हैं।

तो ये सारे जो हैं, ये सारी की सारी चीज़ें एक इन्सान को आज के युग में, इस फास्ट युग में सँभालना बहुत कठिन है। अगर आपके हाथ से कुलाचार छूटे हैं, कोई उपेक्षित दैवत है, कोई मन्नत भूल चुके हैं तो उसका भी निराकरण इस सप्तचक्र पूजन में, इस ‘श्रीशब्दध्यानयोग’ में अपने आप हो जाएगा। हम निर्धास्त हो जाएँगे कि मेरे हाथ कुछ रह गया है, तो नहीं, मेरी माँ चण्डिका है, वो सबकी माँ है, उसी के कारण सारे देवताओं का जन्म हुआ है, तो वो सब कुछ जरूर सँभालेगी।

‘श्रीशब्दध्यानयोग - ०१’ इस बारे में हमारे सद्गुरु श्री अनिरुद्ध ने पितृवचनम् में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।   

|| हरि: ॐ || ||श्रीराम || || अंबज्ञ ||

॥ नाथसंविध् ॥