श्रीगुरु चरन सरोज रज

सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी ने २४ फरवरी २००५ के पितृवचनम् में हनुमान चलिसा के ‘श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि’ इस चौपाई के बारे में बताया। 

पहले सौ बीघा जमिन थी, लेकर आया था सौ बीघा, जाते समय बेचके कुछ भी नहीं रहा, ऐसा नहीं होना चाहिए। सौ बीघा लेके आये थे, दस हजार बीघा करके चले गये, ये मेरे जीवन का एम्स ऍण्ड ऑब्जेक्टीव होना चाहिए। तब जिंदगी में सुख ही सु्ख रहता हैं भाई। लेकिन उसके लिए कष्ट करने पड़ते है।

‘होत न आज्ञा बिनु पैसारे।, होत न आज्ञा बिनु पैसारे। ‘पैसा’ यानी प्रयास, प्रयास के बिना रामजी की आज्ञा नहीं होती हनुमानजी को, कि जाओ काम करो। ‘को नहीं जानत हैं जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो।’ संकटमोचन हनुमानजी हमें चाहिए, लेकिन कब? ‘श्रीगुरु चरन सरोज रज, श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि।, श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि। बरनऊँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि॥ बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवनकुमार।, बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवनकुमार। बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार॥’ क्या तुलसीदासजी की बानी हैं, जितना वर्णन करूँ, उतना कम हैं।

‘बुद्धिहीन तनु जानिके’ कि मैं जानता हूँ कि मैं बुद्धिहीन हूँ, नहीं है मेरे पास इतनी जागरुक प्रज्ञा। बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवनकुमार।, भाई पहले जानलो की मैं बुद्धिहीन हूँ, इतनी ताकत मेरी बुद्धि में नहीं है। तो इसी लिए पहले उस हनुमानजी का पहले स्मरण करूँ। ‘बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवनकुमार। बल बुधि बिद्या देहु मोहिं’, यहाँ विद्या यानी कोई सायन्स की विद्या नहीं। विद्या यानी शुद्ध विद्या, यानी शुद्ध धर्माचरण, शुद्ध स्वधर्माचरण।

‘कुमति निवार सुमति के संगी।’ ये कुमति, निवारण होता है उसका और सुमति संग लेके आते हैं हनुमानजी। तब मैं इसे, मेरी जिंदगी में, मेरे मन के चित्त में, चित्त के उस विमल पार्ट में मेरा मंथन आरंभ हो जाता है। क्षीरसागर मेरे चित्त का बढ़ने लगता है और मंथन करने के लिए बल बुधि विद्या देहु मोहिं। बल चाहिए, यह बल भी कौन देता है? हनुमानजी देते हैं, ये भगवान देते हैं। देव लोग अगर सोचते कि भाई आज नहीं पचास साल के बाद अमृत मिलेगा तो भी चलेगा, हम लोग तपश्चर्या करके बल प्राप्त करेंगे, जितना कि चाहिए मंथन के लिए। अरे पचास साल क्या, भगवान पाँच मिनटों में लाकर दे देता सबको ताकत। इसी लिए तुलसीदासजी आकर कहते हैं, बल बुधि बिद्या देहु मोहिं। बल भी वो ही देगा अमृतमंथन का, ‘बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कसेल बिकार।’

लेकिन कब? श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि। पहली मेरी प्रार्थना ये होनी चाहिए। ‘श्रीगुरु चरन सरोज रज’, सद्‍गुरु के चरणों की जो धूलि का कण है, ‘रज’ यानी धूलिकण, श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि। उसके चरणों का एक धूलिकण भी मेरे संपूर्ण मन को शुद्ध करने के लिए, सुधारने के लिए काफी है। ये मेरी प्रार्थना होनी चाहिए, ये मेरी धारणा होनी चाहिए।

हनुमान चलिसा के ‘श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि’ इस चौपाई के बारे में हमारे सद्गुरु श्री अनिरुद्ध ने पितृवचनम् में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।  

ll हरि: ॐ ll ll श्रीराम ll ll अंबज्ञ ll