चरणसंवाहन (Serving the Lord’s feet)

सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी ने १५ अप्रैल २०१० के पितृवचनम् में ‘चरणसंवाहन’ के बारे में बताया।

बस्‌, उसके चरणों में सर रखेंगे ही, उसके पैर दबायेंगे। जहाँ मिले चान्स तो, उसके चरणधूली में खुद को पूरा का पूरा स्नान करायेंगे ही। लेकिन उसकी आज्ञा का पालन करने की कोशिश, पूरी की पूरी कोशिश करते रहेंगे। ये हुई -

‘तैसेचि चरणसंवाहन।’ ‘तैसेचि हस्ते चरणसंवाहन। हस्तांही चरणसंवाहन।’ 

अब यहाँ कह रहे हैं कि हाथ से, मस्तक का भी उल्लेख किया गया है या हस्त का, वो भी­­ दो हस्त - ‘हस्तांही’ अनुस्वार लगा। दोनों हाथों से यानी ये तो, ठीक है भाई स्थूल भूमिका में कि दोनों हाथों से उसके पैर दबाइए या प्रणाम कीजिए, वैसे नहीं है। दो हाथ यानी यहाँ पर है कि हमारा ब्रेन जिसे हम सेरिब्रम कहते हैं, ब्रेन के जो पार्टस्‌ हैं, सबसे बड़ा मोस्ट इम्पॉर्टन्ट है, वो सेरिब्रम है। उसके दो हेवी स्फिअर्स हैं, दो हाफ हैं - एक राईट और लेफ्ट। और राईट हेवी स्फिअर जो है यानी ब्रेन का राईट हिस्सा जो है, हमारे लेफ्ट साईट को कन्ट्रोल करता है और लेफ्ट साईट का सेरिब्रम का हिस्सा है, वो हमारे राईट साईड को कन्ट्रोल करता है।

यानी कि राईटवाला ब्रेन लेफ्ट बॉडी को और लेफ्टवाला ब्रेन राईट बॉडी को कन्ट्रोल करता है। यानी क्रॉस कनेक्शन हो गया। लेकिन हम जो क्रॉस कनेक्शन बोलते है वैसे नहीं। लेफ्ट से राईट तक, यहाँ लेफ्ट से राईट तक, राईट समझे। और यहाँ बात कैसी है कि इस सेरेब्रम में हर के पार्ट का हमारे शरीर के रिप्रेझेन्टेशन है। देअर इज अ एरिआ फॉर एवरी पार्ट ऑफ अवर बॉडी। हमारी जुबान जो है, जीभ जो है, टंग जो है, वो इतनी छोटी है नं? वैसे इट कम्पॅरिझन विथ अवर लेग, हमारा पैर कितना बड़ा है। लेकिन जो टंग है, हमारी जीभ है, उसका रिप्रेझन्टेशन पैर से बड़ा है। 

हम लोग, सिर्फ इन्सान में, बकवाज़ ही करते रहते हैं, बक्‌-बक्‌-बक्‌। तो, लेकिन इसके लिए नहीं ये जगह बड़ी है। हम उसका ग़लत इस्तेमाल कर रहे हैं। इसका उपयोग क्या है कि इन्सान को प्राणि से, जानवर से अलग करनेवाली दो चीज़ें हैं - बुद्धि और वाणी यानी भाषा, बोलने की क्षमता, बोलने की ताक़त। प्राणि बोल नहीं सकते। तो बुद्धि का उपयोग यानी कर्मस्वातंत्र्य और बोलने की ताक़त ये भगवान की देन है हमें। ये भगवान की देन जो है हमें, अभी बुद्धि जो है, किससे काम करती है, वाणी से ही काम करती है नं। पढ़ते हैं यानी क्या, पढ़ना, लिखना ये भी वाणी का ही काम है। सिर्फ बोलना नहीं, पढ़ना, लिखना ये भी वाणी का काम है, राईट। ये पूरी की पूरी वाणी है, स्पिच है। तो ये टंग है और उसके जो पार्ट्स हैं, उनका रिप्रेझेन्टेटिव सबसे ज्यादा है।

वैसे ही जो हमारे हाथ हैं, सबसे ज्यादा काम कौन करता है? हाथ और जबान ना! कोई दिन में दो बार भी चलता नहीं होगा, एक बार भी चलता नहीं होगा लेकिन ये तो ऍक्शन चालू है, राईट, इसे कभी कोई भूलता नहीं है, राईट। पानी पीना है या खाना है। तो हेमाडपंतजी कह रहे हैं कि और ये हाथ जो हैं, ये हाथ पर ऐसे कुछ पॉईन्टस्‌ हैं, इस पॉइन्टस्‌ के ताल्लुक्कात हमारे ब्रेन से हैं। दोज्‌ हु नो अबायुट ऍक्यूपंक्चर ऍक्यूप्रेशर। तो हाथ में ऐसे पॉईन्ट्स हैं कि जो पॉईन्ट डायरेक्टली हमारे स्पीच सेन्टर से कनेक्टेड हैं, ओ.के. और यहाँ प्रॉब्लेम क्या है कि स्पीच सेन्टर जो है वो लेफ्ट ब्रेन में है, लेकिन उसी का जो बॅलन्स करनेवाला दूसरा सेन्टर है, जो सारे अनुभवों को इकठ्ठा करता है वो कहाँ है? राईट में।

यानी दोनों हाथों से जब हम सद्‌गुरु के चरण पकड़ते हैं, संवाहन करते, ऍक्च्युअली व्हॉट आर वी डुईंग? वी आर क्लिंजिंग अवर ब्रेन्स इम्पॉर्टन्ट पार्टस्‌। हम ब्रेन के - सेरिब्रम के इम्पॉर्टन्ट पार्टस्‌ को जो हाथ रिप्रेझेन्ट करते हैं, जो स्पीच को यानी रिटन स्पीच और स्पोकन स्पीच, लिखनेवाली भाषा और बोलने की भाषा, वैसे सुनने की भाषा और पढ़ने की भाषा ये चारों प्रकार का रेप्रेझेन्टेड है, ऐसे ब्रेन के पार्ट को हम क्या कर रहे हैं? शुद्ध कर रहे हैं, सामर्थ्यवान बना रहे हैं और उपयुक्त बना रहे हैं।

हमें जानना चाहिए क्यों कह रहे हैं - हस्त - हाथ से नहीं कह रहे हैं - ‘हस्तांही। ‘स्तां’ पर अनुस्वार क्यों हैं? ‘हस्तांही’ - हमारे दोनों हाथों से। अगर एक हाथ से करेंगे तो दॅट इज इन्क्म्पलिट, इट इन्क्म्पलिट। यानी कैसे? कि आज आपको पीने के लिए पानी दिया तो खाना नहीं, कल खाना दिया तो पानी नहीं। खाना और पीना पानी साथ में होना चाहिए, राईट। आज श्वास ले लो सिर्फ, उच्छवास नहीं छोड़ने का। कल सिर्फ उच्छवास छोड़ने का, श्वास नहीं। कैसे होगा ये? इम्पॉसिबल, दे आर विथ इच अदर ओ.के., दे हॅव टू बी विथ इच अदर उनका एकसाथ होना आवश्यक है। वैसे ही ये जो ब्रेन के दो सेन्टर्स हैं, सेरेब्रम हेमिस्पिअर्स के वो, उनका सामर्थ्य, उनकी सुसंगतता एकसाथ ही हो सकती है। इसी लिए कहते हैं, अपने दोनों हाथों से, अपने दोनों हाथों से भगवान के, सद्‌गुरु के चरणसंवाहना करो।

‘चरणसंवाहन’ के बारे में हमारे सद्गुरु श्री अनिरुद्ध ने पितृवचनम् में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।

ll हरि: ॐ ll ll श्रीराम ll ll अंबज्ञ ll