चरणसंवाहन - भाग ३ (Serving the Lord’s feet - Part 3)

सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी ने १५ अप्रैल २०१० के पितृवचनम् में ‘चरणसंवाहन’ के बारे में बताया।

सो, ‘करावे मस्तकी अभिवंदन। तैसेचि हस्तांही चरणसंवाहन।’ जान गये हेमाडपंतजी क्या हमें कह रहे हैं, हमें बता रहे हैं? सबसे बेस्ट चीज़ बता रहे हैं की भाई, उसकी ये फोटो हो, उसकी तसबीर हो, उसकी मूर्ती हो, उसकी चरणधूली, उसके प्रत्यक्ष चरण हो उनकी सेवा करते रहो। अपनी जितनी ताक़द है, स्वशक्ति अनुसार, अपनी ताक़द से, उसके शब्दों का पालन करते रहो और वो भी जितना करो, उसके लिये ताक़द कहाँ से पाओगे? उसकी तसबीर में जो उसके चरण हैं उनकी सेवा करके, राईट। उन चरणों पर प्यार करके, उन चरणों से लगन होनी चाहिये मुझे। बस इन चरणों के सिवाय मेरा कोई सहारा नहीं हैं, बाकी के सारे सहारे झूठे हैं। ये दृढ़निश्चय ही अभिसंवाहना हैं। क्या काम के होते हैं?

चरणसंवाहन - भाग ३, सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी, पितृवचनम्

अरे भाई, बताओ तुम्हारे दो हजार रिश्तेदार हैं। सभी तुमसे बहोत प्यार करते हैं मान लिया। पैसे के लिये करते हो, या ऐसे भी करते हों कैसे भी करते हों, करते हैं, तुम्हारे बीस हजार वर्कर्स हैं तुम्हारी फॅक्टरी में, तुम्हें पहचाननेवाले बीस लाख लोग हैं। तुम्हारी, यहाँ मैं तुम्हारी नहीं बोलता हूँ, क्योंकि, उस इंसान की, नहीं तो आप डर जाओगे, उस इंसान की अंतयात्रा में बीस लाख लोग आये, फोटो छप के आया। इतने राष्ट्र के अध्यक्ष, पंतप्रधान आये चले गये, राईट। इनकी प्रेतयात्रा में कितने लोग आते-जाते हैं क्या फ़र्क पड़ता है? उसमें से कोई भी तुम्हारे साथ आता है? नहीं।

जब तुम, देह छोड़के इंसान जाता है तब उसको अकेले को ही जाना होता है, जब उसका जन्म होता है तब कौन आता है, अकेले ही आता है ना? और जिंदगी भर वैसे ही कितनी बार आप खुद सोचो कि मन में ऐसी कितनी बातें हैं जो आपने किसीको भी नहीं बतायी हुई हैं। कहा गया है, वसिष्ठ ऋषि ने कहा है कि ‘कलियुग में हर एक इंसान के मन में कम से कम ऐसे एक हजार आठ विचार होते हैं, जो वो किसी को भी नहीं बताता है।’ अपने पति को भी नहीं, अपनी पत्नी को भी नहीं, अपने माँ-बाप को नहीं, बेटों को नहीं, किसी को भी नहीं, दोस्त को भी नहीं। तो क्या हैं, यानी उस एक हजार आठ विचारों के लिये कम से कम आप अकेले हैं।

इस विचार के लिये सहायता आपको कोई नहीं कर सकता। वो कौन कर सकता है? वो भगवान, वो सद्‌गुरु। क्या अगर आपने बताया भी नहीं है, उस विचार को जानता कौन है? सद्‍गुरु जानता है। इसलिये जहाँ आप अकेले हैं जिंदगी में यानी जो, जिस विचारों को आपने किसी को भी नहीं बताया हैं उन विचारों को भी जाननेवाला सद्‍गुरु ही आपकी हमेशा साथ दे सकता हैं। कभी-कभी तो हमारे कुछ विचार हमें भी खुद मालूम नहीं होते। लेकिन देखो किसी आदमी को हम लोग देखते हैं पहली बार मिले फिर भी कैसे क्या इरिटेटींग पर्सन है, हमें अच्छा नहीं लगता, ये इंसान अच्छा नहीं है, या ये इंसान बहोत अच्छा है ये भी लगता है, क्यों लगता है? क्यों ये विचार आए मन में हमें मालूम नहीं है। तो ये क्यों आया मन में विचार ये कौन जानता है? ये सद्‍गुरु जानता है। यानी thinks - विचार not known to as you as well जिसे तुम भी खुद नहीं जानते ऐसे तुम्हारे मन के जो विचार हैं, उन्हें भी वो सद्‍गुरु जानता है। 

यानी की आप जागे हैं, जग रहे हैं या आप सोए हुए हैं, आप सो रहे हैं यानी आप खुद के विचारों को नहीं जान रहे हैं और आप जग रहे हैं यानी You are knowing yours thoughts, आप अपने विचारों को जान रहे हैं। लेकिन किसी को बता नहीं रहे हैं इन दोनों अवस्थाओं में सद्‍गुरु आप के साथ रहता हैं।

‘चरणसंवाहन’ के बारे में हमारे सद्गुरु श्री अनिरुद्ध ने पितृवचनम् में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।

ll हरि: ॐ ll ll श्रीराम ll ll अंबज्ञ ll