Sadguru Shree Aniruddha’s Pitruvachan (Part 1) – 04th April 2019
हरि ॐ, श्रीराम, अंबज्ञ, नाथसंविध्, नाथसंविध्, नाथसंविध्. हम यह जो मंत्रगजर करते हैं – ‘रामा रामा आत्मारामा….’, वह कहाँ जाकर पहुँचता हैं? क्या हवा में घूमता रहता है इधर कहाँ? या पूरे ब्रह्मांड में या हवा में जाकर पहुँचता है? कहाँ जाता होगा? There is a definite place, where it goes….where it reaches….where it is absorbed….where it is pulled. Only one place. कौनसी जगह हैं वह? त्रिविक्रमनिलयम श्रीगुरुक्षेत्रम्॥ हम लोग
Hari Om | Sriram | Ambadnya Naathsamvidh | Naathsamvidh | Naathsamvidh So…for last many years, the young generation has been telling me, ‘Bapu, you’ve started speaking in Hindi, why don’t you (speak in) English?’ I said, ‘I am Indian, okay? I know only Indian languages. I learned in vernacular medium school. As per [that], I don’t know English, so I will not be (speaking in English)’; but then, people are
हरी ॐ. श्रीराम. अंबज्ञ. नाथसंविध्. नाथसंविध्. नाथसंविध्. So, होली खेलकर आये हुए हैं बहुत लोग। खेले कि नहीं खेले? खेले…नहीं खेले…क्यों? [आपके साथ खेलना था] अरे भाई, मैं तो बुढ्ढा हो चुका हूँ, कहाँ होली खेलनी हैं। रंग नहीं खेलते आप लोग? क्यों? जो नहीं खेला होगा, वो हात ऊपर करें। जिन्होंने रंग खेला, वो लोग हाथ ऊपर करें। Very good, ऍब्सोल्युटली, मस्त, क्लास। बाकी लोग क्यों नहीं खेले? हमारी
हरि ॐ. श्रीराम. अंबज्ञ. नाथसंविध्, नाथसंविध्, नाथसंविध्। अभी जो मंत्रगजर हम लोग कर रहे थे – भक्तिभावचैतन्य की परिपूर्ण स्थिती, right? लेकिन है क्या यह मंत्रगजर? सबको सबकी परिभाषा चाहिए, definition चाहिए। Few things are very difficult to define, you have to understand! उनकी परिभाषा करना, व्याख्या करना, definition देना बहुत कठिन होता है, समझना बहुत मुश्किल होता है। लेकिन जानना बहोत आसान होता है। देखिए, आजकल कितने लोग स्मार्ट
॥ हरि: ॐ ॥ श्रीराम ॥ अंबज्ञ ॥ ॥ नाथसंविध् ॥ नाथसंविध् ॥ नाथसंविध् ॥ हररोज कई बार हमारे मन में एक सवाल उठता है – ‘क्यों?’ यह ‘क्यों’ हुआ? ऐसा ‘क्यों’ हुआ? ऐसा ‘क्यों’ नहीं हुआ? ‘Why?’ ‘Why?’ ‘Why?’ Whole life we are facing this problem – ‘Why’? पूरी ज़िन्दगी हम लोग इस सवाल के साथ जूझते रहते हैं – ‘Why’; and we never get answer. हमें कभी जवाब
हरि ॐ २१-०२-२०१९ हरि ॐ. श्रीराम. अंबज्ञ. नाथसंविध् नाथसंविध् नाथसंविध्. ‘रामा रामा आत्मारामा त्रिविक्रमा सद्गुरुसमर्था, सद्गुरुसमर्था त्रिविक्रमा आत्मारामा रामा रामा’ जो कोई भी यह जप करता है, मंत्रगजर करता है, (वह) भक्तिभावचैतन्य में रहने लगता है। कुछ लोगों के मन में प्रश्न उठा है। सही प्रश्न है – ‘बापू, यह मंत्रगजर तो सर्वश्रेष्ठ है, आपने बताया, मान्य है हमें Definitely। लेकिन ‘माँ’ का नाम नहीं है इसमें?’ यह मैंने पहले
हरि ॐ, श्रीराम, अंबज्ञ, नाथसंविध्, नाथसंविध्, नाथसंविध्. कितनी बार हम लोग इन शब्दों का प्रयोग करते हैं? ‘बहुत देर हुई’….राईट? क्या कहते हैं? ‘बहुत देर हुई’। कहाँ जाना है, कहाँ से निकलना है, कहाँ जा पहुँचना है, कुछ हासील करना है, कुछ पाना है। हमें सब चीज़ों में ऐसा लगता है, सब बातों में ऐसा लगता है, कि जो टाईम है, उसके पहले सब कुछ हो जाये, तो बहुत अच्छा!
हरि ॐ. श्रीराम. अंबज्ञ. नाथसंविध्, नाथसंविध्, नाथसंविध् आज 10th और 12th के बहुत स्टुडंट्स आये हुए हैं….मस्त। Exam मे कोई फिक्र नहीं करना, Exams तो आती रहती हैं, जाती रहती हैं। कितने लोग क्रिकेट खेले हुए हैं यहाँ? कितने लोगों ने क्रिकेट देखा हुआ है? व्हेरी गुड….एक्सलन्ट। यह हमारी ज़िंदगी भी एक क्रिकेट का खेल है। क्रिकेट जैसी ही चलती है। लेकिन यहाँ प्रॉब्लेम क्या है ना….Routine cricket
हरि ॐ, श्रीराम, अंबज्ञ, नाथसंविध्, नाथसंविध्, नाथसंविध्. कष्ट के बिना फल नहीं, ओ.के? और बाकी सारी चीज़ों के लिए तो हमलोग कष्ट करते रहते हैं। We go on putting our all efforts in everything….whatever we desire for. जो हमे चाहिए, उसके लिए हम लोग बहुत प्रयास करते रहते हैं…. मन से, तन से, धन से; लेकिन ये सब चीज़ें जो देता है, उसके लिए हम कितने श्रम करते हैं? ये