सच्चिदानन्द सद्गुरुतत्त्व - भाग ३

सद्‍गुरुश्री अनिरुद्धजी ने ०७ अक्टूबर २०१० के पितृवचनम् में ‘सच्चिदानन्द सद्‍गुरुतत्त्व(Satchidanand Sadgurutattva)’ इस बारे में बताया।

तो ये सद्‍गुरुतत्त्व क्या है? सच्चिदानंद स्वरुप है। क्योंकि उसके पास कोई एक्सपेक्टेशन नहीं है, सिर्फ एक इच्छा रखता है, जो मेरा नाम ले, जो मुझसे प्रेम करे, जो मेरी आज्ञा का पालन करे, वो मेरे अपने हैं और उनकी जिंदगी में कैसे ज्यादा से ज्यादा आनंद से भरपूर कर दूँ। कुछ नहीं चाहता वो, कुछ लेता भी हैं तुमसे, तो समझ लीजिए कि ये दस गुना करके देने के लिए। इसी लिए उसे क्या कहते हैं? वो विश्व का उपभोगशून्य स्वामी। वो भोग लेनेवाला स्वामी नहीं है, वो उपभोगशून्य स्वामी है। वो खुद भोगता नहीं, वो भोग देता है।

सच्चिदानन्द, सच्चिदानन्द सद्गुरुतत्त्व

इसी लिए क्या कहा है साईचरित्र में बार बार, भोगप्रदाता, ईश्वर एक भोगप्रदाता। भोग यानी दुख नहीं, तो भोग यानी सुख यहाँ अर्थ है। सुखप्रदाता, ईश्वर एक ही क्या है, सद्‌गुरु एक ही कौन है? सुखप्रदाता। इतर देव सारे मायिक, ग्यारहवें चॅप्टर में हेमाडपंतजी क्या कहते हैं इसी ग्रंथ के? ‘इतर देव सारे मायिक। गुरुचि शाश्वत देव एक। चरणी ठेवितां विश्वास देख। ‘रेखेवर मेख मारी’ तो।’ इतर देव सारे मायिक, सारे देव हैं, लेकिन माया के अधीन रहते हैं। ये मायातत्त्व को अपने साथ लेकर, यानी अपनी माँ को साथ लेकर। ये सद्‍गुरु जो हैं, ये क्या होते हैं? मायिक नहीं होते हैं, वो माया से साथ, माया के पुत्र। महामाया जो है, आदिमाया जो है उसका पुत्र होने के कारण वो तुम्हें माया से मुक्ति दिला सकता है। माया आपको बाधित नहीं कर सकती, डिफिकल्टीज नहीं ला सकती। लाती भी नहीं क्योंकि वो श्रीविद्या है। इतर देव जो होते हैं, वो मायिक होते हैं, माया के अधीन होते हैं। लेकिन उनका अधिकारक्षेत्र सीमित होता है, लिमीटेड। They have got limited force, limited powers, सीमित क्षमता होती है उनकी।

‘इतर देव सारे मायिक। गुरुचि शाश्वत देव एक।’ सिर्फ सद्‍गुरु जो है वो शाश्वत है, यानी त्रिकालाबाधित है। त्रिकाल से अबाधित रहता है, त्रि-अवस्था से अबाधित रहता है राईट। गुरु, उसी चीज को हम शाश्वत कहते हैं। जो नाश नहीं होती, जिसका नाश नहीं होता काल के अनुसार या स्थिति के अनुसार वो त्रिकालाबाधित है यानी शाश्वत है। ‘गुरुचि शाश्वत देव एक। चरणी ठेवितां विश्वास देख।’ देखिए, यहाँ भी क्या आता है? चरण आते हैं। उसके चरणों में, ‘चरणी ठेवितां विश्वास देख।’ देख यानी देख, पहा हिंदी में जो अर्थ है, वो ही मराठी में है, देख यानी देख, यानी see। ‘चरणी ठेवितां विश्वास देख’, एक बार उसके चरणों पर विश्वास रखकर, ‘रेखे वर मेख मारी तो।’ जो यहाँ रेखा लिखी हुई है प्रारब्ध की, हमें लगता हैं ना प्रारब्ध की रेखा लिखी हुई है, यहाँ भाल पर। ‘रेखे वर मेख मारी तो’ ‘तो’ यानी सद्‍गुरु, तो यानी वही, रेखे वरी मेख मारी तो।

‘मेख’ यानी क्या? ऐसा इन्स्ट्रयुमेन्ट, मेख इज इन्स्ट्रयुमेन्ट। जो किसी भी चीज़ को मनचाहा आकार दे सकता है, आकृति दे सकता है उसे ‘मेख’ कहते हैं। बढ़ते हुए को रोख सकता है, जिसकी गती रोखी गयी है, उसे बढ़ा सकता है उसे ‘मेख’ कहते हैं। ‘रेखे वर मेख मारी तो।’ यानी अपनी प्रारब्ध में जो भी लिखकर आये हुए हो आप, उसपर वो क्या करता है? वो ही एक है, वो क्या करता है? मेख मार सकता है यानी उसे टोटली चेन्ज कर सकता है। क्योंकि उसका उद्दिष्ट एक ही है आनंद, प्रेमस्वरूप होता है। प्रेम ही करना जानता है, बस्स कुछ भी नहीं और बदले में तुमसे प्रेम की भी एक्सपेक्टेशन नहीं रखता, दॅट इज व्हेरी इम्पॉर्टंट। ये तो मुझसे सिर्फ दस ग्रॅम प्रेम करता है, उसका प्रेम बाँटा हुआ है, अपनी माँ से, बाप से, बहन से, भाई से, औरत से, बच्चों से, पैसे से, गाड़ी से, पोझिशन से, ये बदल नहीं लाता है। बस्स, सभी, बाकी सब लोगों के नंबर सौ हैं और सद्‍गुरु का नंबर एक सौ एक है, फिर भी सद्‍गुरु सोचता है, कम से कम एक सौ एक नंबर तो मेरा है, बस्स। वो भी, उसे वो, उसको भी वो कबुल करता है, कबुल कर देता है, मान्यता देता है, मानता है और अपना मानता है। यानी उसके मन में प्रेम की भी अपेक्षा नहीं है, ओ.के। नो एक्सपेक्टेशन ऑफ लव, ही वन, इतना वो अपेक्षाशून्य है। इसी लिए वही हमारी जिंदगी में संयम ला सकता है, बरकरार रख सकता है। ‘द डिसीप्लीन’ भी वो ही लाएगा, संयम भी उसके चरण ही लायेंगे।

‘सच्चिदानन्द सद्गुरुतत्त्व' इस बारे में हमारे सद्गुरु श्री अनिरुद्ध ने पितृवचनम् में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।

ll हरि: ॐ ll ll श्रीराम ll ll अंबज्ञ ll