Sadguru Shree Aniruddha's Pitruvachan (Part 1) - 31st January 2019

हरि ॐ. श्रीराम. अंबज्ञ. नाथसंविध्‌, नाथसंविध्‌, नाथसंविध्‌ 
 
आज 10th और 12th के बहुत स्टुडंट्स आये हुए हैं....मस्त। Exam मे कोई फिक्र नहीं करना, Exams तो आती रहती हैं, जाती रहती हैं। 
 
कितने लोग क्रिकेट खेले हुए हैं यहाँ? कितने लोगों ने क्रिकेट देखा हुआ है? व्हेरी गुड....एक्सलन्ट। यह हमारी ज़िंदगी भी एक क्रिकेट का खेल है। क्रिकेट जैसी ही चलती है। लेकिन यहाँ प्रॉब्लेम क्या है ना....Routine cricket मे दो टीम्स होती हैं; यहाँ भी दो टीम्स हैं। लेकिन (उनमें से) एक टीम मे एक ही खिलाड़ी होता है। वह होता है हर एक इन्सान! वह पॅव्हेलिअन से बाहर आता है, अपने हाथ में एक बॅट लेकर। Routine cricket में तो दो-दो बॅट्समेन रहते हैं, यहाँ एक ही बॅट्समन रहता है । Routine cricket मे दूसरी टीम के ग्यारह खिलाडी खेलते रहते हैं, एक बॉलिंग करता है। यहाँ बहुत सारे बॉलर्स रहते हैं। हमारे माँ-बाप, हमारे भाई-बहन, बाद में बीवी, स्कूल में अपने Colleagues. It's called Peer Pressure, right? फिर कंपनी मे जो अपने सहकर्मी हैं, ऑफिस में सहकर्मी हैं, बिझनेस में जो ग्राहक हैं, जो भी हैं, मित्र हैं, शत्रु हैं, रिश्तेदार हैं, सगे हैं....ये सभी जो हैं, ये बॉलिंग ही करते रहते हैं और हम अकेले बॅटींग करते रहते हैं और बॉल्स आते रहते हैं। बॉल कहाँ से आयेगा....मालूम नहीं। Routine cricket में तो एक ही बॉलर होता है एक बॅट्स्मन के लिए, बस्स। यहाँ एक बॅटसमन के लिए पूरी ज़िंदगी मे बॉल्स तो आते ही रहते हैं। कहाँ से कैसा आयेगा (पता नहीं); 
 
और सबसे खतरनाक बॉलिंग करता है तो हमारा खुद का मन! वह तो हमेशा गुगली और चायनामन डालता रहता है। फास्ट बॉलिंग करते करते गुगली डालता है और स्पिन कभी कभी उसका इतना फास्ट रहता है कि बस्स, क्या चल रहा है समझ में नहीं आता है। हम कभी कभी हमारी बुद्धि जो है, वही विकेटकीपर बन जाती है। बस्स देखती है - ‘कहाँ इसका पैर फिसल गया आगे, इसको आऊट कर दिया’....ओ.के.? So behind the wicket बुद्धि खड़ी रहती है। मन सारे बाजू से रहता है, बाकी के सारे लोग बॉलिंग करते रहते हैं। Exam मे देखो, Orals में जब examiner question पूछने लगता है, तो ऐसा ही लगता है कि अरे बोल....बोल.... बोल! अरे कितना बॉलिंग करेगा भाई? बहुत तेज़ बॉलिंग है....fast बॉलिंग है, राईट? और किसी गुगली पर आऊट हो जाता है। 
 
ज़िंदगी मे हमारा ऐसा ही चलता है। हर रोज़ हम एक बॅट लेकर उतरते हैं जीवन में और बॉल्स आते रहते हैं, आते रहते हैं, आते रहते हैं और हम आऊट होते रहते हैं। Routine cricket में एकबार आऊट होते हैं तो पॅव्हेलिअन में वापस लौटना पड़ता है। लेकिन यहाँ तो वह भी छूट नहीं मिलती। कितनी भी बार आऊट हो जाओ, ग्राऊंड पर रहना ही पड़ता है। Exit एक ही बार होती है....‘तब’, राईट? और तब वह जो हो गयी, तो हो गयी....वापस फिर चान्स नहीं। 
 
ये हम जो बॅटींग करते हैं और इतने सारे लोग जो बॉलिंग करते हैं....हमारा मन भी बॉलिंग करता है, हमारी बुद्धि विकेटकीपिंग करती है। वह हमारे पीछे खड़ी रहती है और Ready रहती है कभी आऊट करूँ, ओ.के.? और हम आऊट होते रहते हैं। देखिए हमारे मन को पूछकर देखिए - कितनी बार ऐसा हुआ कि हमने जो सोचा नहीं था, वह हो गया; जो नहीं करना था, वह हो गया, जो करना चाहते थे, बिलकुल नहीं कर सके। कितनी मूर्खता से हम लोग पेश आते हैं और बाद में सोचते हैं, ‘अरे! कितना मूर्ख था मैं, यह कैसे किया मैंने? यह नहीं करना चाहिए था।’ लेकिन बाद मे पछतावा करने से कुछ नहीं होता। क्योंकि यह बॉलिंग हमारा मन ही करता रहता है। बाकी के सारे लोग जो बॉंलिंग करते हैं, उनके हात मे जो बॉल है, वह बॉल हमारा मन ही है। हमारा खुद का मन ही बॉलिंग करता रहता है। यह विचार आ गया, वह विचार आ गया, यह विचार, वह विचार। एक विचार क्या किया मन ने, सौ विचार उसके विरोध में आकर खडे रहते हैं। दूसरे लोगों के हाथ मे भी कौनसा बॉल है? तुम्हारे मन का बॉल ही लोगों के हाथ में रहता है। क्यों? क्योंकि हमारा मन ही उन्हें रिऍक्ट करता है, मन ही प्रतिक्रिया देता है, मन ही प्रतिसाद देता है। उनके हाथ में जो बॉल है, वह आपके मन से बनाया हुआ बॉल ही होता है - बड़ा सीझन बॉल है। जब लगता है, तब ज़ोर से लगता है। 
 
फिर इसके लिए क्या करना चाहिये? 
 
अभी पिछ्ले दो-तीन महीनों से बहुत बार मैं सुनता हूँ - “बापू, मैं हररोज़ सुबह दस मिनट भक्तिभावचैतन्य करता हूँ।” अरे! भक्तिभावचैतन्य यह करने की चीज़ नहीं है। “सुबह दस मिनट भक्तिभावचैतन्य करता हूँ। शाम को आधा घंटा भक्तिभावचैतन्य करता हूँ।” अरे, क्या समझते क्या हो खुद को? भक्तिभावचैतन्य कर नहीं सकते तुम, भक्तिभावचैतन्य में तुम रह सकते हो सिर्फ़! समझे? भक्तिभावचैतन्य है उसका अस्तित्व, उसका प्रेम, उसकी Grace, उसका Unlimited Favour, उसका Unlimited-Unmeritted Favour। हमारी लायकात न होने के बावजूद भी जो हमपर कृपा करता है, वह कृपा यानी ‘भक्तिभावचैतन्य’ है। भक्तिभावचैतन्य यह करने की बात नहीं है, भक्तिभावचैतन्य यह रहने की चीज़ है। ‘सुबह दस मिनिट भक्तिभावचैतन्य किया, शाम को आधा घंटा भक्तिभावचैतन्य किया’....किसको सुना रहे हो भाई? ये गलतियाँ मत करना मेरे बच्चों।
भक्तिभावचैतन्य करना नहीं, भक्तिभावचैतन्य में रहना है। भक्तिभावचैतन्य कहाँ नहीं है? उसने अपना खजाना खोल दिया है, सब जगह है। जहाँ जहाँ श्रद्धावान है, वहाँ वहाँ उसके इर्द-गिर्द भक्तिभावचैतन्य रहता ही है। आप लोग एक्झॅम हॉल में बैठो, भक्तिभावचैतन्य तुम्हारे यहाँ आकर खड़ा रहेगा। जहाँ जहाँ आकाश पहुँचता है, वहाँ वहाँ भक्तिभावचैतन्य है ही....ओ.के.? भक्तिभावचैतन्य करना नहीं है, भक्तिभावचैतन्य में रहना है। यानी उसकी याद रखनी है, उससे प्यार करना है, उसके प्यार को स्वीकारना है, मंत्रगजर करना है, भजन करना है, सबकुछ करना है। लेकिन भक्तिभावचैतन्य ‘करनेवाली’ बात नहीं है, वह तो है ही। आपसे कोई कहेगा, ‘मैं आकाश बनाऊँगा’। Is it possible? Impossible। ‘मैं पृथ्वी बनाऊँगा’....नहीं। मुझे पृथ्वी पर रहना है, आकाश से साँस लेनी है, बस्स। वैसे ही मुझे भक्तिभावचैतन्य में रहना है; और जब हम भक्तिभावचैतन्य में रहने लगते हैं, तब हमारे हाथ में एक अलग तरीके की बॅट आती है। बहोत ही अलग बॅट! किसकी बॅट है वो? कैसी बॅट है? कहाँ से आती है? भक्तिभावचैतन्य से ही आती है। बॅट किसकी होती है? यानी किस चीज की होती है? किस मटेरिअल की होती है? यहाँ (routine cricket में) तो लकड़े की होती है, राईट? यह बॅट किसकी होती है? अरे, guess तो कीजिए। [नाम की?] नाम की नहीं, [भक्ति की?] भक्ति की भी नहीं - (यह बॅट होती है) उसके ‘सामर्थ्य’ की! 
सर्वसमर्थम् सर्वार्थसमर्थम्‌ श्रीगुरुक्षेत्रम्‌। ‘समर्थ’ शब्द का अर्थ ही क्या है? जो सब कुछ करने के लिए काबिल है, जो सबकुछ कर सकता है, सबकुछ जिसने निर्माण किया है, वही ‘समर्थ’ कहलाता है। तो उसके सामर्थ्य की बॅट हमारे हाथ में आ जाती है। हमारी एक की ताकत कितनी है? चाहे हमारे हाथ कितने भी कमज़ोर क्यों न हों, जब हमारे हाथों में उसके सामर्थ्य की बॅट आ जाती है, तब पूरा जग भी हमारे खिलाफ खड़ा हो जायें बॉलिंग करने के लिए, क्या फ़र्क़ होगा? हमारा मन कितना भी बॉलिंग करें, क्या होगा? 
और जब हम भक्तिभावचैतन्य में रहते हैं, तो पहली चीज क्या होती है? मन से, हमारे खुद के मन से आनेवाले बॉल्स जो हैं, वे कम हो जाते हैं; और लोगों के हाथ में जो हमारे मन के हिस्से जाते हैं बॉल्स बनकर, वे भी कम हो जाते हैं। और जब पूरा का पूरा मन भक्तिभावचैतन्य में रहने लगता है, तो लोगों के हाथ में जो बॉल जाएगा, वह कौनसा है? ‘भक्तिभावचैतन्य’ का बॉल है! अब भक्तिभावचैतन्य के बॉल्स आने लगेंगे, तो आपके out होने का कोई चान्स ही नहीं। आप को फास्ट बॉलिंग से....क्या कहते हैं उस बॉल को? ‘बम्पर’....‘बाऊन्सर’....ओ.के.....बाऊन्सर्स या बम्पर्स का कोई डर, कोई fear नहीं रहेगा। क्योंकि भक्तिभावचैतन्य का बॉल किसी को harm नहीं करता, किसी को तकलीफ़ नहीं पहुँचाता, किसी को ज़ख़्म नहीं देता। राईट? तो आज से जानना है -  ‘भक्तिभावचैतन्य’ एक उत्सव है, एक लीला है, एक प्यार का सागर है, प्यार का आकाश है, प्यार की पृथ्वी है। Let us celebrate our life. हमारे जिंदगी को उत्सव में बदलना है।
मरे हुए चेहरे लेकर हम लोग घूमते रहते हैं। अब exams आ गये तो आप लोगों के चेहरे देखो कैसे हो गए हैं! जैसे कोई क़ातिल खड़ा है आपके सामने; और आपको काटनेवाला है। क्यों भाई? Exam important है, लेकिन ज़िंदगी से बढ़कर कुछ भी नहीं। जिंदगी में एक छोटीसी exam का क्या महत्त्व रहता है? उतना ही जितना होना चाहिए। अभ्यास जोर से करना है, studies भरपूर करनी है, मजबूत करनी है, लेकिन डरना नहीं है। ओ.के.? So चाहे 10th या 12th की exam हो, चाहे ज़िंदगी की कोई दूसरी exam हो, कोई interview हो, कोई संकट हो, कोई problem हो या routine जिंदगी हो; ध्यान में रखना चाहिए, हम अकेले बॅट्समन हैं। देखिए, routine cricket में भी बॅट्समन की सहायता कौन कर सकता है? अकेले को ही खेलना पडता है ना? लेकिन उसके खिलाफ़ कितने लोक होते हैं? ग्यारह लोक होते हैं। वैसे हमारी ज़िंदगी में भी, हमारे खिलाफ़ हमारे दस इंद्रिय और ग्यारहवाँ मन हमारे खिलाफ़ रहता है। So कम से कम ग्यारह हमारे खिलाफ होते ही हैं। इसके लिए भक्तिभावचैतन्य में रहना है। तभी उसके सामर्थ्य की बॅट हमारे हाथ में आयेगी और बॉल्स भी किस चीज के होंगे? भक्तिभावचैतन्य के बने होंगे। 
भक्तिभावचैतन्य में सब कुछ आता है। हम जो कुछ करते हैं पूरे दिन में, गलत बात भी की, तो भी पूरे प्रेम के साथ उसके चरणों में अर्पण कर दी, तो वह भी भक्तिभावचैतन्य है। डरना नहीं चाहिए, कितना गलत काम किया, उसके चरणों में कैसे अर्पण करूँ? अरे, करते समय शर्म नहीं आयी, तो अर्पण करते समय काहेको? राईट? जो सब कुछ देखता है, उसे ही तो देना हैं ना। अगर तुम्हें ऐसा लगता है कि ‘यह कैसे गलत काम किया, उसके चरणों में कैसे अर्पण करूँ?’, तो समझना तुम्हारा विश्वास झूठा है। जब हमें पूरा विश्वास होता है कि यह सब कुछ जानता है....बोलेगा नहीं शायद कुछ भी, लेकिन जानता सबकुछ है। हमें लगता है, कुछ करेगा नहीं, करता रहता है। बोलता नहीं ज़्यादा वो, करता ज़्यादा है। बोलता बहुत कम है, इसीलिए सज्जनों, साधुओं और साध्वियों! मेरा एक ही कहना है - भक्तिभावचैतन्य यह ‘करने की’ बात नहीं है। यह ‘रहने की’ बात है, यह क्रीड़ा की बात है, यह खेलने की बात है, यह उत्सव मनाने की बात है, यह आनंद करने की बात है। यदि करना है तो आनंद करना है; भक्तिभावचैतन्य नहीं करना है। वह तो है। शाश्वत है। ‘वह’ है, स्वयंभगवान है, तो भक्तिभावचैतन्य है ही। और ‘उस’पर हमारी श्रद्धा है या नहीं है, फिर भी भक्तिभावचैतन्य हमारे इर्द-गिर्द रहता है। सिर्फ, (जो उस पर विश्वास नहीं करता) वह भक्तिभावचैतन्य अंदर ले नहीं सकता। तुम्हारी जितनी श्रद्धा होगी, जितना तुम भक्तिभावचैतन्य में रहना चाहोगे, उतनी तुम्हारी नाक बड़ी होगी, उतना ज़्यादा श्वास तुम अंदर ले सकोगे। ओ.के.? So आज से जान लो, भक्तिभावचैतन्य में रहना है। 
वह गाना है ना, ‘रहना है, रहना है’ [तेरे चरणों में रहना है] गाना भी नहीं आता आप लोगों को। So, रहना है। उसकी भक्ति में रहना है, उसके भक्तिभाव में रहना है, उसके भक्तिभावचैतन्य में रहना है। उसके लिए कोई शर्त उसने नहीं रखी है। यह भक्तिभावचैतन्य ‘करने’ की बात छोड़ दो, ‘रहने’ की बात अपनालो। वह सबसे ज़रूरी है। यह क्रिकेट का खेल जीतकर जाना है, हारकर नहीं। मुझे मेरा कोई भी बच्चा हारा हुआ अच्छा नहीं लगता....कभी भी। ओ.के.? क्योंकि....बात ऐसी होती है देखो, यहाँ भी मैं ही हूँ और वहाँ भी मैं ही हूँ। तुम हारकर वापस आते हो, तो क्या होगा? दुख मुझे ही होता है कि यह हारकर आया, इसे और सिखाना पड़ेगा; और प्रॅक्टीस करानी पड़ेगी, फिर से भेजना पड़ेगा। So, कहाँ भी जाओ, मुझसे छुटकारा पाना difficult है। ना किसी ने पाया है, ना पा सकेगा! 
लव्ह यू ऑल! लव्ह यू ऑल! लव्ह यू ऑल!