सद्‍गुरु महिमा - भाग ३

सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धने १५ अप्रैल २०१० के पितृवचनम् में ‘सद्‍गुरु महिमा’ इस बारे में बताया।

 

जब भी चान्स मिले उसकी फोटो है, वो प्रत्यक्ष रूप में है या मूर्ती रूप में है, तब उसके चरणों पर जब हम मस्तक रखते हैं, उसकी चरणधूलि में जो हम हमारा मस्तक रखते हैं। हेमाडपंतजी की पहली भेंट कैसी है? हेमाडपंत उनके (साईनाथजी) चरणों को स्पर्श नहीं कर सके, साईबाबा रास्ते से जा रहे थे। दीक्षितजी के घर में, बंगलों में हेमाडपंतजी बैठे हुए थे और तब यहां आके लोग उन्हें बताते हैं कि भाई चलो, दादासाहेब नूलकर आके बताते हैं कि चलो भाई, साईबाबा लेंडीबाग जा रहे हैं तो दौड़ते-दौड़ते हेमाडपंत आते हैं और जहाँ से साईबाबा चल रहे थे, उस रास्ते की धूलि में खुद को झोंक देते हैं। लोटांगण, धूलभेट, उन्होंने वर्णन किया है।

अभिवंदन यानी क्या? उसके चरणों की जो धूल है, जिस रास्ते पर वो चलता है, उस रास्ते पर खुद का मस्तक रखना, पूर्ण भाव से। ये तसबीर है, ये फोटोग्राफ है, ये चरणों की फोटोग्राफ है, नहीं, गलत, ये उसके चरण ही हैं, उसकी पादुका है, पादुका है तो उसमें उसके चरण होंगे ही और मैं उसकी पादुका कह रहा हूँ तो उसमें उसके चरण नहीं हैं, ऐसे कैसे होगा? हो ही नहीं सकता। पूर्ण भाव से आप अभिवंदना करो तो अपने आप क्या हो जायेगा? तुम्हारे सर पे उसके चरण रहेंगे ही। लेकिन हम लोग क्या करते हैं? नहीं, मैंने मस्तक रखा सद्‍गुरु के चरणों में, मैंने प्रणाम किया सद्‍गुरु के चरणों में, नहीं। भाई अगर वो नहीं चाहता तुम उसके पड़ोस में रहते होंगे फिर भी आपको चान्स नहीं मिलेगा और अगर उसकी कृपा हो गई है तुमपर कुछ कारण वश, कुछ पूर्वजन्म के प्रारब्ध के कारण तो आप किधर दूर के देश में रहते होंगे, फिर भी आपको उसके दर्शन भी होंगे और चरणस्पर्श भी मिलेगा।

तो कहते हैं भाई, सिर्फ वंदना करना छोड़ दो। हेमाडपंतजी कहते हैं क्या करो? अभिवंदना करो। अभिवंदना, पूर्ण रूप से कि जहाँ भी उसके चरण देखें, दस बार देखें दिन में तो दस बार मेरा भाव यही रहना चाहिए, मुझे डायरेक्ट स्पर्श करने का चान्स नहीं मिले सो क्या हुआ, चरणों को मैं देख तो सकता हूँ और देखना यह भी वंदना ही है। क्योंकि देखते समय जो हम पलकें ऐसे, ऐसे करते हैं, यह भी नमस्कार है। भारतीय संस्कृति ने इसे भी एक उत्तम उत्कृष्ट नमस्कार कहा है, राईट! जो पंचशील प्रॅक्टीकल कर चुके हैं, वो जानते हैं। तो ये जो पलकों से प्रणाम किया जाता है यह भी बहुत सुंदर होगा। लेकिन ऐसे पलक झपकते झपकते उसके सामने बैठ जायें इस से कुछ नहीं होगा। उसके चरणों को देखते ही रहना चाहिये।

‘सद्‍गुरु महिमा’ इस बारे में हमारे सद्गुरु श्री अनिरुद्ध ने पितृवचनम् में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।

ll हरि: ॐ ll ll श्रीराम ll ll अंबज्ञ ll