My Sadguru Aniruddha Bapu protected me amid my illness

 
 

मुझे होने वाली तकलीफ में सद्गुरु अनिरुद्ध बापू ने मुझे सँवारा और उनकी की कृपा से मैं सेवा कर पाया

 
- परमानंद चव्हाण, कोपरखैराणे
 

 

मैं सद्गुरु बापू का एक श्रद्धावान भक्त । मुझे कोई सेवा या भक्ति करना आता नहीं । इस अनुभव कथन द्वारा सद्गुरु संकीर्तन की प्रेरणा भी मुझे बापू ने ही दी है । सन 2008 में लिया हुआ यह अनुभव मैं बापूकृपा से लिखने का प्रयास कर रहा हूँ ।

मुझे गर्दन में, रीढ की हड्डी और हाथ में कोहनी पर सूजन आ गई थी । (स्पॉडीलायटिस व टेनिस एल्बो )। मेरा हाथ सुन पड जाता था । पूरा एक महीना मैं बहुत परेशान था । हॉस्पिटल में जाकर ‘लाईट’ लेना शुरु किया । वहाँ के डॉक्टरों ने गर्दन पर और कोहनी में पट्टा लगाने की सलाह दी । 2 किलो से ज्यादा वजन न उठाने और 4 वे 5 महीनों तक पट्टा लगाने को कहा । यदि ज्यादा वजन उठाया व पुनः तकलीफ हुई तो ऑपरेशन के सिवा कोई अन्य इलाज नहीं, ऐसा भी बताया ।

पट्टा लगाने के बावजूद भी मुझे आराम न था । इसी परिस्थिती में मुझे एक महीने में अनिरुद्धाज बँक ऑफ रामनाम’ से पालखी व आरती सेवा तथा श्रीमद्पुरुषार्थ ग्रंथराज पर चवरी चलाने की सेवा प्राप्त हुई । मुझे बहुत आनंद हुआ, परंतु इस कष्टमय स्वाथ्य की चिंता में मैं मन ही मन दुःखी भी हुआ । क्या करूँ, कुछ समझ नहीं पा रहा था । आखिर में निश्चय किया कि चाहे जो भी हो, इस बार सेवा का यह सुअवसर जो प्राप्त हुआ है इसे नहीं गंवाना है । मंगलवार को अचानक ही दर्द बहुत बढ़ गया । दिनांक 2 अक्तूबर गुरुवार को घर से निकलते समय ‘जो भी ये बापू, देख लेगें ऐसा सोचकर मैं बेटे को साथ लेकर श्री हरिगुरुग्राम’ पहुँचा । मेरा दायाँ हाथ सुन्न था । हाथ जरा हिलने से भयंकर वेदना हो रही थी । कंधा भी बहुत दर्द कर रहा था । मैंने अपने बेटे के पास आरती के सामान की थैली दे दी थी । गर्दन व कोहनी का पट्टा भी निकालकर थैली में रख दिया । मन में सोचा,‘‘मैं जैसा भी हूँ, उसी हालत में बापू मुझसे सेवा करवा लें।’’ उस वक्त मैं मन ही मन में ‘श्रीसाईसच्चरित’ की एक पंक्ति बार-बार मन में दोहरा रहा था ।

जो वरी या देही श्वास, निजकार्यास साधून घ्या।
(जब तक इस देह में साँस है, तब तक अपने कार्यों को पूर्ण करा लो )

मैंने अपने पासबुक में सेवा प्राप्त होने की नोंद करवा ली । मुझे गेट नं.2 पर जाने को कहा गया । वहाँ गया तब तक कार्यकर्ताओं द्वारा पालखी के बारे में सूचना दी जा चुकी थी । मुझे बताया गया कि आप कंधा मन दीजिये, आगे आगे चलिये । मन ही मन मैं खुश हुआ ।क्योंकि पालखी कंधे पर उठाना मेरे लिये संभव न था । वेदना/पीड़ा बहुत ज्यादा थी ।

हम सब हॉल की तरफ बढने लगे । सीढियाँ चढने के बाद अचानक एक कार्यकर्ता ने अगले एक एक भक्त को हटा कर मेरे कंधे पर अचानक पालखी रखी दी । अचानक से ऐसा होने पर मैं उस कार्यमकर्ता को कुछ कह भी न पाया । मैं डर गया । उसी तरह चलते चलते चुपचाप हॉल में प्रवेश हुआ । मुझे पालखी बहुत भारी प्रतीत हो रही थी । मुझे लग रहा था कि मानो मेरा कंधा टूट जाएगा । मैं घबराकर पसीना-पसीना हो गया । मेरे सारे कपडे पसीने से भीग गये । मैं काँप रहा था । गला सूखने लगा , पैर भारी हो गये मानो मैं मीलों से चलता आ रहा हूँ । किसी तरह मैं स्टेज तक पहुँचा । कार्यकर्ताओं ने पालखी को कंधों से उतारा और मेरी हालत देखते ही मुझे पानी देकर पंखे के नीचे बिठाया । थोडी देर में मुझे आराम महसूस हुआ । इसी दौरान कंधे का दर्द कब बंद हुआ, ये मुझे भी पता न चला । मेरा कंधा सही सलामत है, इसी बात का मुझे आश्चर्य हो रहा था । परंतु हाथ उठा न पा रहा था, वहाँ बधिरता थी ।

मैं शांत बै ठा था , थोडी ही देर में परमपूज्य बापू का आगमन हुआ । प्रवचन हुआ और गजर शुरु हो गया । गजर के होने से थोडी देर में मेरे बापू पाडुंरंग नाचने लगे । मैं भी सारा दुःख दर्द भूल कर नाचने लगा । सब मानों अद्भुत घटना घट रही थी । मेरा दर्द भी बंद हो चुका था, मेरा हाथ भी उठ रहा था । फिर आरती की तैयारी शुरु हो गई। । तब महसूस हुआ कि हाथ की उँगलियाँ सुन्न हो चली थी । कहीं मेरे हाथ से आरती की प्लेट (थाली) गिर न जाये ऐसा सोचकर डर-डर कर मैं आरती के लिये खडा हो गया । बापू से प्रार्थना की,‘‘बापू, तुम ही मुझसे आरती करवा लो । मुझसे कुछ गलत न हो, मैं अब कभी भी आज के बाद पट्टा नहीं लगाऊँगा । क्या करना है वो करो !! ’’ तक बापू ने स्मित हास्य किया ।

आरती की कतार में मेरा तीसरा नंबर था । आरती होते ही मुझे मेरा हात पकडकर श्री महेशसिंह झांट्ये ने प.पू. बापू के सामने खड़ा कर दिया । मैं एकदम गड़बडा गया । मुझे कुछ भी न सूझा ! मेरे प्रभू ने ‘‘हरि ॐ’’ कहकर आँखें मिचकाई और भोंहें ऊपर कर मुझे एक मुस्कुराहट प्रदान की । मैं ‘हरि ॐ’ कहने की हालत में भी न था । मेरे होश आने तक मैं बापू के सामने से हट चुका था । मुझे लगा मानो मेरी उँगलियों में फिर चीटी आई है । हाथसुन पड़ गये थे । मैं बांये हाथ से आरती की प्लेट लेकर बाहर आया । अब श्रीमद्ग्रंथराज पर चवरी ढालने की सेवा थी । मैं सोच ही रहा था कि यह काम कैसे करूँ ? तभी मुझे बुलाया गया ।

मैंने दायें हाथ से चवरी पकडी । परमैं ठीक से उसे ढाल पा रहा था । सारे भक्त मुझे आश्चर्यचकित दृष्टी से देख रहे थे । मेरे मन में बेचैनी हलचल होने लगी । बापू स्टेज पर बैठे दूसरे भक्तों को दर्शन दे रहे थे । तभी उस अंतर्यामी प्रभू ने मुझ पर एक निगाह डाली और आँखे मिचकाकर गर्दन को एक हलकासा झटका दिया । इसके पश्चात मानो मेरे हाथ को मानों एक नई चेतना ही मिली । मेरे पूरे शरीर में मानों एक झनझनी सी आई व हाथ में संवदेना जागृत हुई, उँगलियाँ व हाथ ठीक से काम करने लगे ।

केवल एक दृष्टीपात।क्षणात होई पापाघात।
टळेल जन्मांचे दुरीत। ढीग जाळीत कुकर्माचे॥

मेरी आँखे भर आई । अब मैं दांये हाथ से पूरे मन से चवरी ढाल रहा था । जिस प्रभू की इच्छा हो तो पंगु भी पर्वत चढ जाता है, उसकी इच्छा से भला क्या साध्य न होगा ।

एका जनार्दनी भोग प्रारब्ध का, बापूकृपा से उसका भी नाश है । परंतु इसके लिये हम श्रद्धावान को श्रद्धा और सब्र रखना आना चाहिये ।

बापू पायी ठेवू दृढ भाव, बापू मग घेई धाव ।

फिर वह हमें कभी भी त्यागेंगे नहीं ।