सावन माँस की शिवरात्रि पूजा के दिन परमपूज्य बापूजी ने कहा कि, “कविश्रेष्ठ, श्री भा. रा. तांबेजी की श्री रुद्र पर बहुत अच्छी कविता हैं; वह कविता आज मिल जाये तो बहुत अच्छा होगा | यह सुनते ही सुचितदादा ने बापू को यह कविता इंटरनेट से डाऊनलोड करके दी | तत्पश्चात बापूजी ने हम सब को यह कविता पढ़कर सुनाई और मुझे इसे मोबाइल पर रिकॉर्ड करने का मौका मिला | We really enjoyed it. It is special for everyone of us.
सबके लिए बापूजी द्वारा पढ़ी हुई इस कविता की ऑडियो क्लिप और टेक्स्ट यहाँ पर दे रहा हूँ | मुझे विश्वास है कि मेरे सभी मित्रों को निश्चित ही यह पसंद आयेगी |
सबके लिए बापूजी द्वारा पढ़ी हुई इस कविता की ऑडियो क्लिप और टेक्स्ट यहाँ पर दे रहा हूँ | मुझे विश्वास है कि मेरे सभी मित्रों को निश्चित ही यह पसंद आयेगी |
१) ऑडिओ क्लिप
(ऑडिओ क्लिप डाऊनलोड करने के लिए यहाँ उपर क्लिक किजीए)
२) टेक्स्ट
रुद्रास आवाहन
डमडमत डमरु ये, खण्खणत शूल ये,
शंख फुंकत ये, येइ रुद्रा ।
प्रलयघनभैरवा, करित कर्कश रवा
क्रूर विक्राळ घे क्रुद्ध मुद्रा ।। ध्रु०।।
कडकडा फोड नभ, उडव उडुमक्षिका,
खडबडवि दिग्गजां, तुडव रविमालिका,
मांड वादळ, उधळ गिरि जशी मृत्तिका
खवळवीं चहुंकडे या समुद्रां ।। १ ।।
पाड सिंहासनें दुष्ट हीं पालथीं,
ओढ हत्तीवरुनि मत्त नृप खालती,
मुकुट रंकास दे करटि भूपाप्रती,
झाड खट्खट् तुझें खड्ग क्षुद्रां ।। २ ।।
जळ तडागं सडे, बुडबुडे, तडतडे
‘शांति ही !’ बापुडे बडबडति जन-किडे !
धडधडा फोड तट ! रुद्र, ये चहुंकडे,
धगधगित अग्निमंधि उजळ भद्रा ।। ३ ।।
पूर्विं नरसिंह तूं प्रगटुनी फाडिले
दुष्ट जयिं अन्य गृहिं दरवडे पाडिले,
बनुनि नृप, तापुनी चंड, जन नाडिले
दे जयांचें तयां वीरभद्रा ।। ४ ।।
– कविश्रेष्ठ. श्री.भा. रा. तांबे