पंचमुखहनुमत्कवचम् विवेचन - ०७ (विराट) Panchamukha-Hanumat-kavacham Explanation - 07 (Virat) - Aniruddha Bapu

परमपूज्य सद्‍गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने १६ मार्च २०१७ के पितृवचनम् में ‘पंचमुखहनुमत्कवचम्’ के विवेचन में ‘विराट’ इस शब्द के बारे में बताया।
 
 
और विराट क्या क्या चीज है, हम लोग देखते हैं, अगर वेदों में हम लोग देखें, उपनिषदों में देखें, पुराणों में झाककर देखें, तो विश्व की उत्पत्ति अगर हुई तो उसमें उत्पत्तीकरण दिया गया है, वो बहुत जटिल है। उसमें एक स्टेज है ‘विराट’। 

हिरण्यगर्भ स्टेज हम सभी लोगों को मालूम हैं, तो उसके साथ साथ एक विराट स्टेज आती है, विश्व की। यानी जब माँ जगदंबा जो है, वो ॐकाररूपी प्रणव को जन्म देते समय जो स्थिति होती है, जो उसकी ताकद, माँ की, माँ का जो सामर्थ्य, माँ की जो शक्ति, माँ की जो ताकद इस प्रसूति के लिए वास्तव में लाई जाती है, वो शक्ति विराट नहीं कहलाती तो इस प्रसूति के लिये, यानी इस विश्वोत्पत्ति के लिये, जितनी शक्ति आवश्यक है, उतना इस्तेमाल करने के बाद जो शक्ति रह जाती हैं शेष, वो शक्ति विराट हैं।

वो शक्ति कभी भी इस विश्वशक्ति में, जिस जिस शक्ति से विश्व बना है, उसमें अंतर्भूत हो सकती है, उसमें शामिल हो सकती है और चाहे जितने विश्व और भी उत्पन्न कर सकती हैं। और ये पंचमुख-विराट हनुमान देवता, ये जो पंचमुख हनुमंत है, ये पंचमुख हनुमानजी कैसे हैं? तो विराट है। यानी इनका मूल रुप कैसा है? तो माँ की वो शक्ति जो विश्व प्रसूत करने के बाद भी, सारे विश्व की रचना करने के बाद भी जो बाकी रह गई है और वो कितनी है, अनंत। विश्व सांत है, उसे एक लिमिट है, सीमा है।

‘पंचमुखहनुमत्कवचम्’ के विवेचन में ‘विराट’ इस शब्द के बारे में हमारे सद्गुरु अनिरुद्ध बापू ने पितृवचनम् में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।

॥ हरि ॐ ॥ ॥ श्रीराम ॥ ॥ अंबज्ञ ॥

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