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साई द गाइडिंग स्पिरिट (Saibaba the Guiding Spirit) – हेमाडपंतांचा प्रवास (फोरम पोस्ट नंबर – ४) Hemadpant's Journey

अनेक जणांनी सपटणेकरांच्या(Sapatnekar) कथेचा आधार घेऊन साईनाथ(Sainath) व हेमाडपंतांबद्दल खूप सुंदर विचार मांडले आहेत. आधी साईनाथांची(Saibaba) महती कानावर येऊन सुद्धा त्यांच्याकडे जाण्याची आवश्यकता न वाटलेल्या सपटणेकरांना, त्यांच्या आयुष्यात घडलेल्या दु:खद घटनेनंतर साईनाथांची झालेली आठवण व साईनाथांनी वारंवार “चल हट्” असे उद्गार काढूनही सपटणेकरांनी साईनाथांचे घट्ट धरून ठेवलेले चरण, ह्या सर्व गोष्टी आपल्याला खूप काही शिकवून जातात. हर्षसिंह पवार, केतकीवीरा कुलकर्णी ह्यांनी त्यांच्या पोस्टमध्ये आद्यपिपादादांच्या (Adyapipa)अभंगातील ओव्यांचा खूप समर्पक वापर केला

ऑनलाईन हिन्दी eWeekly (e साप्ताहिक) का शुभारंभ

आप यह जानते ही होंगे कि दत्तगुरु पब्लिकेशन्स के द्वारा कृपासिन्धु यह मासिक पत्रिका मराठी, हिन्दी, गुजराती एवं अंग्रेजी इन चार भाषाओं में प्रकाशित की जाती है। अब दत्तगुरु पब्लिकेशन्स प्रत्यक्ष को eWeekly स्वरूप में प्रकाशित करने जा रहा है और यह प्रकाशन लोटस पब्लिकेशन्स प्रायव्हेट लिमिटेड की सहायता से हो रहा है। सभी श्रद्धावान जानते हैं कि दैनिक ‘प्रत्यक्ष’ का यह नौवाँ वर्ष चल रहा है। यह समाचारपत्र मुख्य रूप से मराठी में

सद्गुरु अनिरुद्ध बापु द्वारा श्री त्रिविक्रम का महत्वपूर्ण मंत्र विवेचन - Important Mantra of Shree Trivikram - Sadguru Aniruddha Bapu

ll हरि ॐ ll सद्गुरु अनिरुद्ध बापु गुरुवार दि. ०६-०३-२०१४ से श्रीत्रिविक्रम के एक महत्त्वपूर्ण मन्त्र के बारे में विवेचन करनेवाले हैं l वह मन्त्र है- ॐ त्रातारं इन्द्रं अवितारं इन्द्रं हवे हवे सुहवं शूरं इन्द्रम्। ह्वयामि शक्रं पुरुहूतं इन्द्रं स्वस्ति न: मघवा धातु इन्द्र:॥ इस दिन श्रद्धावान अपने साथ ३० मि.लि. जल ले आकर सद्गुरु अनिरुद्ध बापू के मार्गदर्शन के अनुसार उसका जाप करके उसे इस मन्त्र के द्वारा भारित

बा पु ने पिछले गुरुवार को यानी २३-०१-२०१४ को ‘सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके । शरण्ये त्र्यंबके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते ।।’ इस ‘दुर्गा मंत्र’ के अल्गोरिदम पर प्रवचन किया । इस प्रवचन का हिन्दी अनुवाद ब्लॉग पर विस्तृत रूप में अपलोड किया गया है । इस प्रवचन के दो महत्त्वपूर्ण मुद्दें थे- १) यह अल्गोरिदम निश्चित रूप से क्या है और २) इस अल्गोरिदम के विरोध में महिषासुर किस तरह कार्य करता है

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ॐ   रामवरदायिनी श्रीमहिषासुरमर्दिन्यै नम:। इस महिषासुरमर्दिनी ने ही, इस चण्डिका ने ही, इस दुर्गा ने ही सब कुछ उत्पन्न किया। प्रथम उत्पन्न होनेवाली या सर्वप्रथम अभिव्यक्त होनेवाली वह एक ही है। फिर वह उन तीन पुत्रों को जन्म देती है और फिर सबकुछ शुरू होता है । हमने बहुत बार देखा, हमें यह भी समझ में आया की यह एकमात्र ऐसी है, जिसका प्राथमिक नाम, पहला नाम ही उसका

कहे साई वही हुआ धन्य धन्य| हुआ जो मेरे चरणों में अनन्य || (Sai the Guiding Spirit Saisatcharit)

पिछले ड़ेढ दो साल से सद्गुरु श्रीअनिरुद्धजी ‘श्रीसाईसच्चरित’ (Shree Saisatcharit) पर हिन्दी में प्रवचन कर रहे हैं। इससे पहले बापु ने श्रीसाईसच्चरित पर आधारित ‘पंचशील परीक्षा’ (Panchshil Exam) की शुरुआत की और उन परीक्षाओं के प्रॅक्टिकल्स के लेक्चर्स भी लिये। उस समय हम सब को श्रीसाईसच्चरित नये से समझ में आया। 11 फरवरी 1999 में बापु ने पंचशील परीक्षा क्यों देनी चाहिए, यह हमें समझाया। बापु कहते हैं, ‘‘हम सबको

साई म्हणे तोचि तोचि झाला धन्य | झाला जो अनन्य माझ्या पायीं ||

आज मागची दीड दोन वर्ष बापूंची “श्रीसाईसतचरित्रावर” हिंदीतून प्रवचनं चालू आहेत. त्याआधी बापूंनी श्रीसाईसच्चरित्रावरील “पंचशील परीक्षा” सुरू केल्या (फेब्रुवारी १९९८) व त्या परिक्षांच्या प्रॅक्टिकल्सची लेक्चर्सही घेतली. त्यावेळेस आम्हा सर्वांना श्रीसाईसच्चरित्राची नव्याने ओळख झाली. ११ फेब्रुवारी १९९९ मध्ये बापूंनी पंचशील परीक्षांना का बसायचं हे समजावून सांगितलं. बापू म्हणतात, “आपल्याला प्रत्येकाला ओढ असते की मला माझं आयुष्य चांगलं करायचं आहे, जे काही कमी आहे ते भरून काढायचय, पण हे कसं करायचं हे

Saptamatruka Poojan

  On Thursday, 24th October 2013, Param Poojya Bapu, in His discourse, spoke on a very important topic. It is the ardent wish of every parent that their child should lead a long and healthy life. Traditionally, Shashti Poojan has been performed for this very purpose. However, over a period of time, this poojan has gradually lost its importance and has been reduced to a mere ritual. Param Poojya Bapu through his

सप्तमातृका पूजन ( Saptamatruka pujan)

    गुरुवार, दि. २४ अक्तूबर २०१३ के दिन परमपूज्य बापूजी ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय पर प्रवचन किया। प्रत्येक माता-पिता की इच्छा होती है कि अपने बच्चे का जीवन स्वस्थ हो और उसे दीर्घ आयु मिले। इस दृष्टिकोन से सदियों से चली आ रही परंपरा अनुसार घर में बच्चे के जन्म के बाद षष्ठी पूजन किया जाता है।  मगर समय के चलते गलत रूढ़ियाँ पड़ती गईं जिनकी वजह से इस

सप्तमातृका पूजन (Saptamatruka Pujan)

  गुरुवार, दि. २४ ऒक्टोबर २०१३ रोजी परमपूज्य बापूंनी एका अत्यंत महत्त्वपूर्ण विषयावर प्रवचन केले. प्रत्येक आई-वडिलांची इच्छा असते की आपल्या बाळाचं जीवन निरोगी असावं आणि त्याला दीर्घायुष्य लाभावं. ह्या दृष्टीकोनातून पूर्वापार परंपरेनुसार घरात बाळ जन्माला आल्यानंतर षष्ठी पूजन केलं जातं. मात्र काळाच्या ओघात चुकीच्या रूढी जोपासल्या गेल्या कारणाने ह्या पूजनाचे महत्त्व फक्त कर्मकांडापुरते मर्यादित राहिले. ह्या पूजनाचा उद्देश, त्याचे महत्व आणि मूळ पूजनपद्धती ह्याबद्दल परमपूज्य बापूंनी प्रवचनातून मार्गदर्शन केले.