ऑनलाईन प्रिकॉशन्स – भाग २

पासवर्ड बडे पैमाने पर नजरअंदाज किया जानेवाला लेकिन अत्यंत महत्त्वपूर्ण अंग, ऐसा कहा तो गलत नहीं होगा। फिलहाल इंटरनेट से अनेक चीजे की जाती हैं। लेनदेन किए जाते हैं। और इन सबके लिए अलग-अलग अकाउंट्स बनाए जाते हैं।

ऑनलाईन प्रिकॉशन्स (Online precautions)

लेकिन अकाउंट ओपन होने के बाद ‘पासवर्ड’ निश्चित करते समय जितना चाहिए उतना ध्यान नहीं दिया जाता, यह एक संभावना होती है, या पासवर्ड सहजतासें ध्यान में रहने के लिए उसे आसान करना जरूरी है। ऐसा भी विचार करना जरूरी है। इन्हीं चीजों का फायदा ‘हॅकर्स’ या इंटरनेट का उपयोग गलत कामों के लिए करनेवाले कुछ घटकों को हो सकता है।

अपनी जानकारी हॅकर्स के जाल में ना फस सके इस लिए पासवर्ड तय करते समय पूर्ण विचार करने के बाद ही तय करना ठीक रहेगा। अपना नाम, या अपने नज़दीकी व्यक्ति का नाम, जनमदिन की तारीख ऐसी चीजों का समावेश पासवर्ड में ना करे। क्योंकि ऐसे पासवर्ड हॅकर्स सें जल्दी पहचाने जा सकते हैं। साथ ही पासवर्ड में सिर्फ अक्षरों के समावेश के साथ-साथ अंकों का भी इस्तमाल करना उतनाही जरूरी है। मतलब हमारा पासवर्ड हमेशा ‘अल्फा-न्युमरिक’ होना जरुरी है। सोचिए अगर हमें एक पासवर्ड सेट करना है, तो हम उसे किस प्रकार से बनायेंगे? उदाहरण स्वरूप - 1january2014 लेकिन इसे ऐसे ही सेट करने के बजाय ....... !j@nu@ry2014 इस प्रकार अगर सेट किया जाए तो वह अधिक सुरक्षित हो सकेगा। यह तो सिर्फ उदाहरण है। या फिर अपने स्कूल का रोल नं. और मनपसंद या किसी कठीन विषय का नाम ऐसे कॉम्बिनेशन में भी हम पासवर्ड बना सकते है। जिसकी वजह हमारे पासवर्ड को खोलना किसी को भी मुमकीन नही होगा....... और ऐसे कॉम्बिनेशन बनाना बिलकुल मुश्किल नहीं। बल्कि आसान है। हम इसी तरीके से अलग-अलग प्रकार की कॉम्बीनेशन्स् की सहाय्यतासे पासवर्ड सेट कर सकते है। पासवर्ड तय करते समय वह कम से कम ‘८’ डिजिट का होना जरुरी है। आजकल कहीं भी नया अकाउंट ओपन करने के लिए आवश्यक, जरूरी रहनेवाला पासवर्ड टाइप करते समय उस वेबसाइट से ही पासवर्ड की केटेगरी दिखाई जाती है। हम जो पासवर्ड दे रहे है वह वीक है अथवा मीडियम या स्ट्रॉंग है, यह साबित करनेवाली रंगों की पट्टी स्क्रीन पर दिखाई देती है। ‘लाल मतलब वीक पासवर्ड’, ‘हरा रंग मतलब स्ट्रॉंग पासवर्ड’ ऐसे समझा जाता है। जिस की वजह से हमें पासवर्ड फायनल करने में आसानी होती है।

किसी व्यक्ति के इंटरनेट पर एक से ज्यादा अकाउंटस् होंगे, तो ध्यान में रहना आसान हो इसीलिए वह व्यक्ति सभी अकाउंटस् के लिए एक ही पासवर्ड रख दे ऐसी संभावना होती है। लेकिन ऐसा न करना ही उस व्यक्ति के लिए उचित होगा। इसका गलत इस्तेमाल भी हो सकता है और ऐसे पासवर्ड खोज निकालना आसान होता है। इसीलिए हर एक अकाउंट के लिए अलग-अलग पासवर्ड होना चाहिए। साथ ही यह सभी पासवर्ड कम्प्युटर पर सेव ना करे बल्कि किसी निजी-विशेष डायरी में रखें। और यह डायरी या नोटबुक सुरक्षित जगह पर रखे।

अकाउंट साईन इन करने के बाद बहुत बार ‘सेव्ह युवर पासवर्ड’ या ‘रिमेंबर पासवर्ड ऑन धीस कम्प्युटर’ ऐसे पॉप-अप विन्डो आते है। ऐसे समय कभी भी उसे इजाजत ना देना ही बुध्दिमानी होगी। इस समय ‘नेव्हर सेव्ह’ या ‘नेव्हर रिमेंबर माय पासवर्ड’ ऐसे आप्शन पर क्लिक करे। जिससे की आप का पासवर्ड कॉम्प्युटर पर या अन्य किसी जगह सेव्ह नहीं होगा और आगे के खतरे टाले जा सकते है। साथ ही पासवर्ड टाइप करते समय दूसरे या अनजान व्यक्ति के सामने टाइप ना करे, यह ध्यान में रखे। ज्यादातर भीड की जगह मतलब साइबर कॅफे या अन्य जगहों पर पासवर्ड टाइप करते समय विशेष दक्षता लेनी जरूरी है। जैसे की आप को लगा की पासवर्ड टाइप करते समय कीसी ने आपको देखा तो तुरन्त अपना पासवर्ड बदलना ही सुरक्षित पर्याय है। कुछ व्यक्ति थोडे़-थोड़े दिनों में हमेशा अपना पासवर्ड बदलते रहते हैं, यह सुरक्षा की दृष्टी से फायदेमंद साबित होता है। इसीलिए पासवर्ड के बारे में इसके आगे हमेशा सतर्क रहना जरूरी है।

मोबाइल एप्स आजकल मोबाइल से बहुत एप्स का उपयोग हम रोज के नीजी जीवन में करते है। आया हुआ मेसेज या ई-मेल हमें तुरन्त समझे इस हेतु से ई-मेल अकाऊंट, फेसबुक का अकाउंट तो हमेशा लॉग में ही रखा जाता है। लेकिन अगर इस प्रक्रिया में हमारा मोबाइल किसी गलत व्यक्ति के हाथों में गया तो? तो अकाउंटस् का गलत इस्तेमाल हो सकता है। या हमारी गलती से किसी गलत लिंक पर क्लिक करने की क्रिया हो सकती है। इसीलिए मोबाइल पर अकाउंट से लॉग आउट करना फायदेमंद होगा। इस के बावजूद वॉटस् एप, वाईन जैसे एप्स बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किए जाते है। यह एप्स भी हमेशा ऑन ही रखे जाते है। ऐसे समय मोबाइल का पासवर्ड रखना जरूरी होता है। इस पासवर्ड के कारण हम मोबाइल से भी अपना अकाउंट ऑपरेटिंग सुरक्षित रख सकते है।

एण्टी-वायरस

ऑनलाईन प्रिकॉशन्स (Online precautions)

‘वायरस’ यह शब्द हम हमेशा सुनते हैं। इंटरनेट का उपयोग अच्छे कामों के लिए होता है। तो उसका उपयोग बुरें कामों के लिए भी किया जाता है। इंटरनेट यह माध्यम दुधारी (दोनों बाजू में धार रहनेवाली) तलवार की तरह होता है। हम उसका इस्तेमाल अच्छे कामों के लिए कर रहे है मतलब हमारे आजुबाजू की स्थिती ऐसे ही होगी ऐसा कहना गलत होगा। इंटरनेट पर सर्फिंग करते समय या डाउनलोड करते समय हमारे कॉम्प्युटर में वायरस आने की कडी संभावना होती है। इतनी बेसिक जानकारी तो हमें होती ही है। और इन चीजों से अपना कॉम्प्युटर सुरक्षित रखने के लिए अनेक अच्छे सॉफ्टवेअर्स मार्केट में उपलब्ध है। हमारे कॉम्प्युटर व्हेन्डर की मदत से हम एण्टी-वायरस सॉफ्टवेअर्स हमारे कॉम्प्युटर पर इन्स्टॉल कर सकते है। साथ ही अन्य और आधुनिक तकनीक की सहाय्यता से नए आनेवाले खतरों से अपना कॉम्प्युटर हम सुरक्षित रख सकते है। लेकिन यह सॉफ्टवेअर समय-समय पर अपडेट करना उतनाही जरूरी है। साथ ही हमारे कॉम्प्युटर के सेटिंग्ज में कुछ बदल करके ऐसे खतरे टाले जा सकते है। इस के लिए हमें कॉम्प्युटर व्हेन्डर की मदत लेना जरुरी है।

क्रमश:

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