नित्य अनिरुद्ध पूर्णीमा ! (Nitya Aniruddha Pournima)

ll हरि ll
 
शनिवार १ दिसम्बर २०१२ के दिन हम श्रीहरिगुरुग्राम में अनिरुद्ध पूर्णीमा मनाएंगे । यह दिन हर बापूभक्त के लिए एक विशेष उल्हासभरा होता है । यह दिन हमारे बापूजी का जनमदिन है और श्रद्धावनों के लिए, उन पर प्रेम की खातिर, हमारे बापू सारा दिन अपने श्रद्धावान मित्रों के लिए व्यतीत करते हैं ।
जो कुछ मंगल है, शुभ है, जो प्रत्येक श्रद्धावान की उन्नति हेतु और उद्धार हेतु आवश्यक है वह सब इस दिन श्रद्धावनों के लिए अधिक सुलभ एवं अधिक सहजता से प्राप्त होता है, इसीलिए इस दिन लाखों की संख्या में श्रद्धावान आकर बापूजी के प्रत्यक्ष दर्शनों का लाभ उठाते हैं ।
 
इस समारोह की शुरुआत अपने ए.ए.डी.एम. की परेड से होती है । महिलाएं एवं पुरुष डी.एम.वी., कुल मिलकर तक़रीबन एक हजार डी.एम.वी. अनुशासित एवं रोबदार तरीके से परेड करते हुए जब स्टेज के सामने से गुजरती हैं तब बापू, नंदाई और सुचितदादा उनकी सलामी स्वीकारते हैं । यह परेड श्रद्धावानों के लिए प्रेरनादायी एवं उत्साहवर्धक होता है ।
यहाँ पर श्रीरामरक्षा के पाठ का कक्ष भी होता है । बापूजी के पूजाघर की श्रीराम, लक्ष्मण, सीताजी एवं हनुमानजी की मूर्तियों पर अभिषेक करते हुए श्रद्धावान रामरक्षा स्तोत्र का पाठ निरंतर करते रहते हैं।
इसी तरह गार्हाना भी होता है । गार्हाने का अर्थ है आर्तभरि, प्रेमभरी पुकार। यह दिन हमें अपने सद्गुरु को प्रत्यक्ष उन्हीं की उपस्थिति में प्रेम से पुकारने का अवसर देता है ।
 
आर्तभरी पुकार के साथ साथ आरती भी ! श्रद्धावान अपने घर से लाये हुए घी के दीयों से अपनी जगह पर बैठे बैठे सद्गुरु बापूजी की आरती उतार सकते हैं । हर घंटे होनेवाली आरती के स्वरों के साथ मन की आर्तता व्यक्त करें, जो की बापूजी तक अवश्य पहुँचती है । एकसाथ हजारों ज्योतियों से बापूजी की आरती उतारी जाती है । बापूजी की आरती उतारने की हरएक श्रद्धावान की मनषा पूरी करनेवाला यह दिन है ।
बापूजी का पसंदीदा पदार्थ है अप्पे । इन अप्पों का भोग अर्पण करके श्रद्धावान यह प्रसाद ग्रहण करते हैं ।
 
इस दिन की विशेषता यह है की पिछले वर्ष से बापूजी ने 'किरातरुद्र पूजन' शुरू कराया है । प्रथम बापूजी ने यह पूजन स्वयं किया, तत्पश्चात अपने सभी श्रद्धावान मित्रों के लिए उन्होंने इसे खुला किया । अपने अग्रलेखों द्वारा बापूजी ने समय समय पर इस सदाशिव-किरातरुद्र का एवं उनकी पूजा का महत्व समझया है । श्रद्धावनों के लिए किरातरुद्र एवं शिवगंगागौरी पावित्र्य को आधार देते हैं, उसका स्तम्भ होते हैं और जो कुछ अनुचित या अपवित्र होता है उसका स्तम्भन करते हैं। मानवमन के जंगल में खूंखार जानवर अर्थात षड्रिपुओं का शिकार करना जिसका छंद है वे सदाशिव राघवेन्द्र हैं। अनिरुद्ध पूर्णीमा के दिन इनकी पूजा करना विशेष महत्व रखता है क्योंकि, इससे मानव जीवन मंगलमय होता है और इससे विकास होता है ।
 
यह दिन हर तरह से परिपूर्ण ही होता है । नामस्मरण, पूजन, अभिषेक, आरती, भोग (प्रसाद) और प्रत्यक्ष दर्शन की वजह से यह दिन श्रद्धावनों के लिए उल्हसभरा ही होता है । जन्मदिन बापूजी का होता है, पर वे ही श्रद्धावनों को बहुतसारी भेंट देते हैं । इस वर्ष बापू, नंदाई एवं सुचित्दादा तीनों की आवाज में रिकॉर्ड की हुई स्तोत्रों की सीडी उपलब्ध होगी । इस सीडी के साथ ही उन स्तोत्रों की पुस्तिका भी होगी। तथा अब 'साईं निवास' की हिन्दी सीडी भी उपलब्ध होगी । इस साईं निवास वास्तु के प्रति श्रद्धावानों के मन में विशेष स्थान है परन्तु अधिकाधिक श्रद्धावान भक्तों को इस सीडी में दिए गए अनुभावनों का, गुणसंकीर्तन का आनंद तो मिलेगा ही, एवं मीनाभाभी के यादों से मार्गदर्शन भी मिलेगा, और वह भी सहजता से समझ में आनेवाली भाषा द्वारा ।
इस दिन को "अनिरुद्ध पूर्णीमा" यह नाम मीनाभाभी ने ही दिया है । यह पूर्णीमा 'अनिरुद्ध' है क्योंकि, इसका प्रकाश अनिरुद्ध के प्रेम का शीतलप्रकाश है, जो प्रत्येक श्रद्धावान भक्त के मन में, जीवन में, पहुंचता ही है । यह प्रकाश दुःख का परिवर्तन आनंद एवं धैर्य में करता है इसलिए मीनाभाभी कहती है, "अब कैसी अमावस । नित्य अनिरुद्ध पूर्णीमा "।
सभी श्रद्धावनों को अनिरुद्ध पूर्णीमा  की अनिरुद्ध शुभकामनाएं  !
 
ll हरि ll