सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने २० अप्रैल २०१७ के प्रवचन में ‘मणिपुर चक्र और प्राणाग्नि (Manipur Chakra And Pranagni)’ इस बारे में बताया।
तो ये बात जान लीजिये और ये जो प्राणाग्नि हैं जो शांत हो जाता हैं यहां, वहीं प्राणाग्नि वहाँ चेतनामय हो जाता है। यानी एक आदमी श्रद्धावान यहां मृत हो गया तो उसके देह में जो प्राणाग्नि है वो शांत हो गया। जब ये लिंगदेह भर्गलोक जाकर पहुंचता है तो यही उसका प्राणाग्नि जो है वो वहाँ जाकर उसकी लिंगदेह में मिल जाता है, कभी? जब उसे फिरसे जन्म लेने का होता है तब। यानी जब तक वो पूरा का पूरा सुधर नहीं जाता जितना चाहिये उतना, तब तक उसे वहाँ प्राणाग्नि नहीं मिलता, वहाँ तो प्राण के बिना भी कार्य चलता है, महाप्राण से कार्य चलता है उधर। महाप्राण में बहोत फ़रक है ।
प्राण तो पंचप्राण है, महाप्राण तो अखिलविश्व में है। निर्जीव पदार्थ हैं, उन में भी महाप्राण है, राईट, लेकिन प्राण नहीं है उनमें इसी लिये वो सजीव नहीं हैं। जैसे यहां जो पत्थर है, यहां कुछ ये कपड़ा है, या टेबल है, कुर्सी है ये निर्जीव हैं, ये अजीव हैं राईट। तो वैसे भर्गलोक में कोई भी अजीव नहीं है, निर्जीव नहीं है, प्राणाग्नि न होने के बावजूद भी। क्योंकि वहाँ कार्य चलाता कौन है? महाप्राण। लेकिन जब उसे फिरसे जन्म लेना होता है, तब उसे वही प्राणाग्नि जो शांत हुआ था, वो अब क्या होता है प्राणाग्नि? स्टुडंट वहाँ काम करता है, उस विद्यालय में, तभी उसके प्राणाग्नि में वैसे-वैसे बदल किये जाते हैं और ये करनेवाला कौन है? त्रिविक्रम है। भगवान त्रिविक्रम जो है, ये आपके प्राणाग्नि को हर रोज आहुती देते हैं खुद।
हम लोग कैसे देते हैं, यहां दररोज प्राणाग्नि को आहुती? खाना खाकर, पानी पीकर, अच्छे कर्म कर करके या बुरे कर्म करके, बुरे विचार करके या अच्छे विचार करके। लेकिन वहाँ देखिये रिसपॉन्सीबीलीटी किसकी है, जिम्मेदारी किसकी है? त्रिविक्रम की है, समझे। आप श्रद्धावान नहीं हैं वो स्वर्ग में जायेंगे, अच्छा काम किया है नरक में जायेंगे। लेकिन आपके वहाँ भी आपका प्राणाग्नि अलग ही रखा जाता हैं। वहाँ भी लेकिन प्राणाग्नि में आहुती कौन सी ड़ालनी पड़ती है? उस इंसान को खुद को, सो उसकी रक्षण करनेवाला वहाँ कोई नहीं हैं। चाहे आपको स्वर्ग सुख मिल रहा हो या नरक में, लेकिन भर्गलोक में क्या है? आपका प्राणाग्नि किसके हाथों में रहता हैं? त्रिविक्रम में। उसमें आहुतियाँ कौन देता है? त्रिविक्रम देता है, कैसे देता हैं? आपकी उन्नति देखकर।
आप कितनी प्रगति कैसी, किस रीति से कर रहे हैं। कोई जहां पार्शालिटी करनी है, वहां पार्शालिटी करता है और यहां सबसे बड़ा प्रिंसिपल लागू होता है, you are judge by your faith and not by performance, आपकी जो परीक्षा ली जाती है, इम्तेहान ली जाती है, आपको जो जज् किया जाता है, वो जज् आपके कितना बड़ा महान कार्य आपने किया इसपर नहीं हैं, क्या आपने सौ किलो लकडियाँ तोड़ीं या दो किलो तोड़ीं इसपर नहीं हैं तो आपका विश्वास कितना है, किस विश्वास के साथ आपने ये किया। वैसे आहुती दी जाती है त्रिविक्रम से। हम जो श्रद्धावान हैं, हर एक श्रद्धावान का प्राणाग्नि पूरा का पूरा अगले जन्म के लिये बेस्ट बनाकर उसके लिंगदेह में डाला जाता है और जैसे ही लिंगदेह में प्राणाग्नि मिल जाता है, हमारा यहां जन्म हो जाता है वसुन्धरा में समझे। अब ये जो पूरा कार्य है ये कार्य किसका है? हमारे मणिपूरचक्र का है।
आप कहेंगे बापू ये तो मरने के बात की बात है, पर जीते जी ये क्या होता है? जीते जी भी ध्यान में रखिये अपने जन्म से लेकर जिसे हम मृत्यू कहते हैं उस मृत्यू तक यानी यहां से बिदाई देनी पड़ेगी, it will be not a death, श्रद्धावानों के लिये डेथ नहीं होती, यहां से भर्गलोक में जन्म लेना होता है। तो तब तक क्या चलता है? हर एक के लिये, श्रद्धावानों के लिये, हर इंसान के लिये हर रात जो हैं, ये, ये भी एक मृत्यू का ही स्वरूप है। आप क्या जानते हैं जब सोये हैं आप क्या हो रहा हैं, कुछ जानते है? कुछ भी नहीं। यानी आपको किसी को उठाना पड़ता हैं कुछ हो भी जाय तो राईट, आग भी लग जाय पूरे घर को जब आप आपको यहां महसूस नहीं होता स्कीन पें आपके, आप जान नहीं पाओगे। यानी आपकी ज्ञानेंद्रिय सारे के सारे क्या हैं? पूर्ण रूप से कार्यशून्य हैं।
‘मणिपुर चक्र और प्राणाग्नि’ के इस बारे में हमारे सद्गुरु श्री अनिरुद्ध ने प्रवचन में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।
ll हरि: ॐ ll ll श्रीराम ll ll अंबज्ञ ll