कोल्हापुर मेडिकल और स्वास्थ्य शिविर {KMHC}

 

स्वास्थ्य (निवारक, प्रोत्साहक, रोगनिवारक, पुनर्वास) ग्रामिण/नगरीय/सामुदायिक/आदिवासी विकास पर केन्द्रि

भारत आज दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। परंतु तेज़ी से प्रगति करती अर्थव्यवस्था के बावजूद, कुछ समस्याएं देश के कई हिस्सों में अब तक पनप रही हैं और उन क्षेत्रों पर मंडरा रही हैं। गरीबी, एक ऐसी ही समस्या है, जो विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में समाज को असक्षम बना देती है और प्रगति में बड़ी बाधा बन जाती है जिससे आम तौर पर पोषण की कमी के साथ साथ, जागरूकता, साफ सफाई और शिक्षा की कमी भी उत्पन्न होती है। जहाँ एक समय का भरपेट भोजन पाने के लिए बडा संघर्ष करना पड़ता है, वहाँ स्वास्थ्य की देखरेख के लिए साधन जुटाना या पैसों का जुगाड़ कर पाना एक विशेषाधिकार ही मानी जाती है।

समस्त भारत में ऐसे गरीब और पीड़ित लोग जिन्हें प्राथमिक उपचार भी उपलब्ध नहीं होता उन्हें विभिन्न संस्थाएं मुफ्त चिकित्सा और स्वास्थ्य की सुविधाएं उपलब्ध करने हेतु चिकित्सा शिविरों का आयोजन करती हैं। लेकिन केवल जाँच, निदान, दवाइयां या विशेष उपचार और शल्य चिकित्सा पर्याप्त नहीं है क्योंकि, समाज का यह वर्ग अपनी बीमारियों या समस्याओं के मूल कारणों से अनजान होता है। हमेशा 'परहेज़ इलाज से बेहतर होती है'। विभिन्न मुद्दे और स्वास्थ्य समस्याएं जो पिछड़े वर्गों को ग्रस्त करती हैं और उनके आस पास पनपती हैं, उनके प्रति इन ग्रामवासियों में जागरूकता उत्पन्न करना अत्यंत आवश्यक है।

कोल्हापूर चिकित्सा एवं आरोग्य शिविर - एक ऐसा ही कार्यक्रम है, जिसने समाज के पिछड़े वर्गों के साथ कार्य करने की पहल की। यह शिविर केवल उनके स्वास्थ्य की समस्याओं पर ही ध्यान नहीं देता बल्कि, ग्रामवासियों को जकड़े हुए उन मौलिक मसलों और भ्रांत धारणाओं को मिटाने के प्रयास भी करता है जो बढती हुई गंदगी की वजह से बिगडते हुए हालात के कारणवश तजी से फैलती हुई बीमारियां और अन्य समस्याएं उत्पन्न करती हैं।

कोल्हापुर मेडिकल और स्वास्थ्य शिविर, जो कि डॉक्टर अनिरुद्ध धैर्यधर जोशी द्वारा सूत्रबद्ध किया गया है, वह इस बात का एक उत्कृष्ट उदारहण है कि कैसे विस्तृत एवं पूर्व - नियोजन और एकत्रित आंकड़ों के समुचित विश्लेषण द्वारा शानदार परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं। पहला KMHC शिविर सन 2004 में दिलासा मेडिकल ट्रस्ट एवं रिहैबिलिटेशन केंद्र द्वारा कोल्हापुर के अंदरूनी इलाकों के निवासियों की जीवनशैली पर आधारित गहरी खोज की गई थी। यह खोज विशेषरूप से कोल्हापुर शहर में संस्था के कार्यकार्ताओं की बडी मात्रा में उपस्थिति के कारण आसान हो पाई। इस खोज के कारण कोल्हापुर से महज 35 किलोमीटर की दूरी पर रहनेवाले ग्रामिण इलाकों के लोगों के रहनसहन की स्थिति पर चौकानेवाली सच्चाई सामने आई। तत्पश्चात, KMHC ने पहले कुछ संकेतक खुलासे किए।

विभिन्न आयु वर्ग के अधिकांश मरीजों में - रक्ताल्पता (anaemia) और खुजली (scabies) आम बीमारियाँ पाई गईं। खुजली जैसी बीमारी से निपटना अपेक्षाकृत कम चुनौतीपूर्ण माना जाता है, पर रक्ताल्पता की समस्या, विशेषरूप से बच्चों में, अधिक गहराई तक जांच करके सुलझानी पडी। अधिक जानकारी हासिल करने पर पता चला कि बच्चों में रक्ताल्पता का मुख्य कारण था कि, शौचालयों की अनुप्ललब्धता के कारण लोग आमतौर पर खुले में शौच किया करते हैं, जिससे विशेष प्रकार के कीडे, हुकवर्म पनपते हैं। यह कीड़े बच्चों के पैरों के नाज़ुक तलवों से शरीर में प्रवेश करके उनके पाचनांत्र के ऊपर पहुँच जाते हैं, जहाँ उनकी लाल रक्त कोशिकाओं को तोड़ने की वजह से रक्ताल्पता होती है। इस समस्या का समाधान दो तरीकों से  किया जा सकता है - (अ) स्वच्छता के प्रति जागरुकता बढ़ाना।  (ब) बच्चों को जल्द से जल्द हुकवर्म से मुक्ति दिलाना।

जागरुकता बढ़ाने और शौचालय बनवाने की प्रक्रिया में बडा समय लगता। इसकी तुलना में दूसरी समस्या का समाधान आसान था। अत: लक्ष्य किए गए दायरे के गांवों में जनगणना की गई और प्रत्येक बच्चे की जांच की गई, उनके पैरों को नापा गया और अगले शिविर में हर बच्चे को चपलें प्रदान की गईं तथा उन्हें सालभर के लिए पर्याप्त आयरन की टौनिक दी गई। अगले वर्ष के शिविर के आंकड़ो में आश्चर्यजनक परिणाम दिखाई दिए। रक्ताल्पता और/या खुजली में आधे से ज्यादा कमी दिखाई दी। पिछले 4-5 शिविरों में एक भी रक्ताल्पता और/या खुजली का मरीज नहीं पाया गया है।

KMHC की एक और महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है, उन ग्रामिणों द्वारा पालन की जानेवाली देवदासी की चलती आ रही पुरानी रूढि को मिटाना। एक अंधविश्वास के अनुसार ऐसा माना जाता था कि यदि किसी बालिका के बालों में गाँठे पड़ जाती  हैं, तो उसे देवदासी प्रथा में दीक्षित करना होगा। समस्या की क्रमबद्ध खोज से इस निष्कर्ष पर पहुंचा गया कि, गन्दगी के कारण लड़कियों के बालों में जुएं हो जाती हैं और गांठें पड़ जाती हैं। खोज से पता चला कि, गाँठें जूंओं के मलमूत्रों के कणों के कारण और मृत जूंओं का बालों में उलझने के कारण होती हैं। यह समस्या स्वच्छता की समुचित जानकारी के अभाव और लड़कियों के बाल कभी भी धोए न जाने के कारण अधिक बढ़ गयी थी। उनका इस तथाकथित रूढि पर विश्वास इतना दृढ़ था कि उस मानसिकता को छुड़ाने के प्रति उनसे बात करना भी व्यर्थ होता। एकमात्र व्यवहारिक विकल्प था, उन लोगों में स्वच्छता के बारे में उन्हें इस प्रकार से समझाना कि जो उन्हें ग्राह्य हो। इसलिए अगले वर्ष में प्रत्येक चुने गए गाँव में जनगणना की गई और प्रत्येक परिवार के हरएक सदस्य की एक विस्तृत रूपरेखा बनाई गई। जनगणना के आंकड़ों के आधार पर प्रत्येक परिवार को स्वच्छता सम्बन्धित सभी आवश्यक चीजें उपलब्ध कराई गईं जैसे टुथब्रश, टुथपेस्ट, नहाने एवं कपडे धोने के साबुन, परिवार के हर सदस्य के लिए उनके लिंग और आयु के मुताबिक दो जोड़ी कपड़े, तथा जिन घरों में लड़कियाँ थीं उनको जूंएं मारने की दवा की एक बोतल और जूंएं निकालने के लिए एक कंघी दी गई। स्वयंसेवकों ने उन्हें इन चीजों को इस्तेमाल करने का तरीका समझाया। देखते ही देखते दो वर्ष के भीतर जूएं मारनेवाली दवाई और कंघी ने अपना कमाल दिखाया। तत्पश्चात वहाँ एक भी ऐसा केस नहीं रहा जहां लड़कियों के बालों में गांठें होने को कोई वजह हो और उन्हें देवदासी की रूढ़ि में धकेला जा सके। इस प्रकार से एक अत्यंत पुरानी गलत परंपरा को, लोगों के मन को ठेस पहुँचाये बगैर, समाप्त किया गया।

KMHC 2017,  इस शिविर के आयोजन का 14वाँ वर्ष था और परिणाम वास्तव में बेहद प्रशंसनीय पाये गये। साक्षरता के स्तर में चुने गए हर गाँव में पिछले कुछ वर्षो में भारी सुधार पाया गया है। गाँववालों के स्वास्थ्य के स्तर में भी बहुत उन्नति पाई गई। कोई भी नया रक्तल्पता या खुजली का मामला नहीं था। माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल भेजने की प्रति जागरूक दिखाई दिए। दो बच्चे, जिन्हें पिछले कुछ वर्षों से शिविर का लगातार लाभ मिला, उन्हें BHMS (होमिओपैथी) में दाखिला भी मिल चुका है।

शिविर का कुछ विशेषताएं -

    • कैंप साइट 10 एकड़ जमीन में फैली होती है जिसमें 80,000 वर्ग फ़ीट का मंडप होता है।
    • स्कूली बच्चों के लिए वर्दी और खेल सामग्री का वितरण।
    • ग्रामीण लोगों  के लिए कपड़े और स्वच्छता सामग्री का वितरण।
    • स्कूली बच्चे और ग्रामीण लोगों की नि:शुल्क स्वास्थ्य जाँच।
    • नेत्रों की जाँच और चश्मों का नि:शुल्क वितरण।
    • शिविर में भाग लेनेवाले बच्चे तथा ग्रामीण लोगों के लिए भोजन का वितरण।

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