सम्मान और स्तुति को पचाना कठिन है    

सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी ने 3 फरवरी २००५ के पितृवचनम् में 'सम्मान और स्तुति को पचाना कठिन है' इस के बारे में बताया। 

सम्मान और स्तुति को पचाना कठिन हैअपमान है ना भाई, अपमान सहन करना, पचाना बहोत आसान बात है। लेकिन मान-रिस्पेक्ट, स्तुति उसे पचाना, उसे सहन करना बहोत कठीन है। अपमान मेरा हो गया, मुझे दुख होता है, लेकिन इससे मेरा कुछ नुकसान नहीं होता। लेकिन जब मुझे मान मिलने लगता है, रिस्पेक्ट मिलने लगता है, तब मेरा अहंकार बढ़ने लगता है और ये अहंकार मुझे कभी ना कभी लेकर ऊपर से नीचे गिरानेवाला होता है।

कोई कहे कि, ‘आपने मेरी इतनी मदद की है, मैं आपका ऋणी हूँ।’ तो कहना, ‘नहीं, मैं आपका ऋणी हूँ, जो मुझे आपकी सहाय्यता करने का अवसर प्राप्त हुआ, भगवानने मुझे इतनी ताक़त दी है।’ ये मानसन्मान, ये सबसे बड़ा झूठा सोना है भाई। इसके पीछे जो भी लगता है, रावण के हाथ में जाकर गिरता है आसानी से। मानसन्मान का हव्यास आदमी को कहाँ से कहाँ ले जाता है। नहीं चाहिए, हमेशा कहो कि मैं छोटा हूँ।

संत तुकाराम महाराज ने कहा था, ‘लहानपण देगा देवा, मुंगी साखरेचा रवा’, लहानपण यानी छोटापन देना भगवान, बड्डपन नहीं देना, बड्डपन नहीं चाहिए मुझे, बड्डपन नहीं चाहिए, मैं छोटा हूं। तो, लोग अगर रिस्पेक्ट दे रहे हैं किसी कारणवश, तो भी हर समय मेरे मन में ये विचार होना चाहिए, ये रिस्पेक्ट किसका है? जो मुझसे ये सब करवा रहा है उस भगवान का है।

झूठे मानसन्मान के पीछे दौड़ना बंद करो, सही में कहता हूँ, इससे कुछ नहीं मिलता, कुछ नहीं मिलता। इसी लिए ऐसे झूठे सोने का त्याग करना बहुत आवश्यक है। ये दूसरा मार्ग है सीतामोहित-मृग-त्याग, कनक-मृग-त्याग, सुवर्ण-मृग-त्याग। उस मृग का त्याग करना सीखो भाई, समझो, वो राक्षस ही है मानसन्मान का।

'सम्मान और स्तुति को पचाना कठिन है' इस बारे में हमारे सद्गुरु श्री अनिरुद्ध ने पितृवचनम् में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं। 

ll हरि: ॐ ll ll श्रीराम ll ll अंबज्ञ ll

॥ नाथसंविध् ॥