परमपूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने २८ एप्रिल २०१६ के पितृवचनम् में ‘स्वयं का स्वयं के साथ होनेवाला संघर्ष यह सब से बडा संघर्ष होता है’, इस बारे में बताया।

सबसे बडा संघर्ष होता है या युद्ध होता है, वो हमारे मन में ही, खुद का ही खुद के साथ। मैंने last गुरुवार को बताया आपको कि ये ‘शं’ बीज जो है, ये क्या करता है, मर्यादा में डालता है, हमारे मन के कुतर्कों को। हमारे मन को कुतर्क करने की आदत ही लगी रहती है, फिर उसे मर्यादित करने के लिये ये शं बीज आता है।
ऐसे कुतर्कों के कारण ही, हमारा हमारे साथ ही संघर्ष शुरू होता है। हमें लगता है कि पहले ये बात अच्छी थी, वो बात हम लोग करने लग जाते हैं, बाद में लगता है कि नहीं, ये बात अच्छी नहीं थी।
वैसे स्कूल्स में मैं आजकल ये देखता हूँ, बारहवी के बाद, entrance exam देने के बाद, कुछ एक बाजू में, इंजीनियरींग या मेडिसीन में जाना चाहते हैं, मैं मेडिसीन करता तो अच्छा होता, मैं इंजिनियरींग करता तो अच्छा होता। अरे भाई, ये क्या है? क्या ये संघर्ष है या ये युद्ध है? हम लोग, इंजिनियरींग में कम मार्क्स मिल रहे हैं, हम अच्छी पढाई करके आगे जाएँगे, ये संघर्ष है। लेकिन मन में युद्ध करते बैठे कि नहीं इंजिनियरींग ली, गलती हुई, मेडिसीन ही अच्छा था, तो ये युद्ध है, ये खुद का विनाश है, और अगर आपका complete विश्वास हो जाए कि नही मुझे मेडिसीन ही लेना चाहिये, तो जरूर मेडिसीन में जाइये, कोई problem नहीं, लेकिन वहॉ जाकर फिर, ‘अरे इंजिनियरींग ही भला था यार, यहॉ तो कितने सारे टर्म्स ध्यान में रखने पडते हैं, यह नहीं कहना चाहिए।
ये ही हमारी जिंदगी में चलता रहता है। हम अपने जीवन के संघर्षों को, युद्ध बनाते रहते हैं। नहीं होना चाहिये। और ये नहीं होने के लिये ही, हमारे मूलाधार चक्र में सारी शक्ति मौजूद है, हमारे लिये।
‘स्वयं का स्वयं के साथ होनेवाला संघर्ष यह सब से बडा संघर्ष होता है’, इस बारे में हमारे सद्गुरु अनिरुद्ध बापू ने पितृवचनम् में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।
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Hariom shree ram ambadnya