भगवान का प्यार हमें बदल देता है (God's love changes us) - Aniruddha Bapu
सद्गुरु श्री अनिरुद्धने ३० जनवरी २०१४ के पितृवचनम् में ‘भगवान का प्यार हमें बदल देता है’ इस बारे में बताया।
अपनापन चाहिये। अपनापन कब टिकता है? जब हम सोचते हैं कि जिससे मैं प्रेम करता हूँ, उसने मेरे लिये क्या किया है और हम गिनती बंद कर देते हैं । यह सोचोगे कि मैंने क्या किया है, तभी ध्यान में आयेगा कि ९९ चीज उसने दी है, एक चीज नहीं दी है। तब उसे सिर उठाकर बोलना, So what! तुम्हारे प्रेम के सामने एक चीज क्या, सौ चीजें भी बहुत छोटी हैं। छोड दिया।
आज फिर जीने की तमन्ना है, आज फिर मरने का इरादा है। दोनों साथ में होनी चाहिये। जीने की तमन्ना, और मरने का इरादा। किसीके प्यार में मरना भी ताकद होती है। लेकिन पागल जैसे नही, दिमाग के साथ। प्यार में सचमुच मरने के लिये दुसरा जनम लेने की इच्छा होनी चाहिये। खुद को पूरा बदलने की ताकद। दूसरा जनम याने क्या? पूरा बदलने की ताकद होनी चाहिये।
अगर एक इन्सान के प्यार के लिये हम लोग इतना बदल सकते हैं तो भगवान का प्यार के लिये क्यों नहीं बदल सकते? और यहां तो प्रॉब्लेम भी नहीं कि बदलने के लिये जो भी ताकद चाहिये, वो देने के लिये वो बैठा है। और ये विश्वास, पहला अपनापन, और दूसरा, जो स्मृति चाहिये, वो स्मृति देने की ताकद, जो विस्मृति चाहिये, वो देने की ताकद, किसमें है? भगवान की स्मृति में है। सिर्फ भगवान को याद करने में है। कैसे लेकिन? पूरी ताकद के साथ।
‘भगवान का प्यार हमें बदल देता है’ इस बारे में हमारे सद्गुरु श्री अनिरुद्ध ने पितृवचनम् में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।
॥ हरि ॐ ॥ ॥ श्रीराम ॥ ॥ अंबज्ञ ॥