डस्ट बोल – भाग ​ ४

      

 उपनिवेशियों (साम्राज्यवादिओं) ने अफ्रीका के साथ-साथ दुनिया भर में अन्य स्थानों पर भी अपना उपनिवेश स्थापित किया था। इसी उपनिवेशवाद के कारण ही हमें अफ्रीका खंड की पहचान जंगली टोलियों के रुप में, गुलामों का प्रदेश इस रुप में हुई। सच पुछा जाय तो इन उपनिवेशियों के आगमन से पूर्व अफ्रीका में कुछ समृद्ध साम्राज्य थे। परन्तु खनिज संपत्ति समृद्ध प्रदेश के रुप में अब कही जाकर अफ्रीका की पहचान बाहरी जगत को हुई है। अन्यथा अफ्रीका के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोन ही उपनिवेशवादियों ने पूरी दुनिया में बना रखा था। इसी तरह अफ्रीकन नागरिकों के मन में भी यूरोप, अमेरिका आदि के बारे में भी इसका बिलकुल विपरित दृष्टिकोन बनाकर रखा गया है। अफ्रीकन नागरिकों के मन में यूरोप एवं अमेरिका की पहचान समृद्ध एवं आर्थिक दृष्टिकोन से सधन देश के रुप में बनाकर रखी गयी है। यदि हम इतिहास का अध्ययन बारीकी से करते हैं तो हम जान पायेंगे कि जिस दौर में यूरोप अपने पूर्णावस्था में आया था उसी दौर में अफ्रीका में तबाही मची हुई थी। अफ्रीका में आनेवाले उपनिवेशवादियों ने यहाँ के स्थानिकों को छोटेपन का अहसास दिलाने के लिए अपनी समृद्धि का प्रदर्शन ही अफ्रीकन नागरिकों के समक्ष किया था। अफ्रीकन नागरिकों के मन में एक समृद्ध देश के रुप में यूरोप के प्रति उभरनेवाला दृष्टिकोन इसी का एक हिस्सा है।

 इस देश में जाने पर हम अपने सपनों को पूरा कर सकेंगे, हमारे संघर्ष का अंत हो जायेगा, ऐसी धारणा हर एक सामान्य अफ्रीकन नागरिक के मन में घर कर चुकी थी। यही कारण है कि उनके मन में यूरोप एवं अमेरिका के प्रति आकर्षण है। जो स्वाभाविक भी है। इसीलिए अपने कष्टदायक जीवन से मुक्त होने के लिए ही सामान्य अफ्रीकन युवक अपनी जान की परवाह किए बिना यूरोप, अमेरिका में जाने के लिए हाथ-पैर मारते रहते हैं।

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वैसे देखा जाय तो अफ्रीका से होनेवाले इस स्थानांतरण के पिछे और भी कई कारणों का विवरण किया गया है। वेश्या व्यवसाय एवं कुछ नशीले पदार्थों के तस्करों के प्रकरणों का शोध करते हुए तीस से पैंतीस वर्षों पूर्व स्थानिक जाँच यंत्रणा के हाथों एक महत्त्वपूर्ण जानकारी सामनी आयी थी। वह यह थी कि इस काम के लिए अनेक अफ्रीकन युवकों को, महिलाओं को तथा बच्चों को ज़बरदस्ती से इस ओर ढकेला जाता था। इसी जाँच के दरमियान यूरोप में ‘वुडू’ (voodoo) यह शब्द काफी बडे़ पैमाने पर चर्चा का विषय बन गया। ‘वुडू’ (voodoo) यह अफ्रीकन की काली जादू वाली विद्या मानी जाती थी। सच में देखा जाय तो कुछ लोग यह मूल अफ्रीकन धर्म होने का भी दावा करते हैं। अफ्रीका में मुस्लिम आक्रमणकारियों ने इस्लाम धर्म का प्रचार किया वही यूरोपीयन उपनिवेशवादियों ने क्रिश्चन धर्म का प्रचार किया। इन में ‘वुडू’ (voodoo) को माननेवाले नागरिक काफी प्रमाण में कम हो गए। परन्तु आज भी यह ‘वुडू’ (voodoo) परंपरा काफी बडे़ पैमाने पर अपना अस्तित्व बनाये रखे हुए है और अफ्रीका से स्थानांतरण होनेवाले नागरिकों के साथ वह अन्य क्षेत्रों में भी पहुँच चुकी है।

 

ऐसा माना जाता है कि दुनियाभर में दिखाई देनेवाला काले जादू की विद्या का मूल भी ‘वुडू’ (voodoo) है। और इस वुडू (voodoo) का मूल इजिप्त के पिरॅमिड में होने का दावा भी कुछ लोग करते हैं। यही लोग आगे चलकर अपने आप को युरोबा मानने लगे। युरोबा आदिवासियों की ‘वुडू’ (voodoo) यह मूल संस्कृति है। ये लोग नाईल पार करके मध्य अफ्रीका में अर्थात आज के नायजेरिया में प्रवेश कर गए। इस नाजयेरिया क्षेत्र में उस समय नॉक लोगों का राज्य था। युरोबा एवं नॉक संस्कृति का मिलाप होकर आज के ‘वुडू’ (voodoo) का जन्म हुआ। साधारणत: ईसा पूर्व पंद्रह हजार वर्षों पूर्व वुडू (voodoo) का जन्म हुआ ऐसा माना जाता है। 

 ‘वुडू’ माननेवाले नागरिकों में विभिन्न प्रकार की मान्यताएँ हैं। वुडू (voodoo) के अनेक मंदिर हमें अफ्रीका में दिखाई देंगे। गुड़ियाँ, प्राणियों जे अवयव, चित्रविचित्र मूर्तियाँ, कुछ चिह्न इन्हीं के आधार पर ये नागरिक काला जादू करते हैं। अफ्रीका में कुछ स्थानों पर प्राणियों के अवयव एवं वुडू (voodoo) से संबंधित चीज़ों का बाजार लगता है। लोगों को वश में करना, एक ही स्थान से काफी दूर रहने वाले व्यक्ति को मूर्च्छित करना, किसी के मन को अपने वश में कर लेना, यश प्राप्ति करना इस तरह की बातों के लिए वुडू (voodoo) के जादू का उपयोग किया जाता है। यह तो हो गई संक्षेप मे वुडू (voodoo) की पहचान। २०१४ में होनेवाले फुटबॉल वर्ल्डकप के आरंभिक समय में होनेवाले क्रम के एक दिवसीय मैंच में जर्मन खिलाड़ियों को बाँधकर रखने के लिए ब्राझिल के कुछ चाहनेवालों ने वुडू (voodoo) का उपयोग किया था ऐसा कहा जाता है। वैसे देखा जाय तो इसका कोई दुष्परिणाम उस मैंच में नहीं दिखाई दिया और जर्मनी ने ब्राझिल पर जबरदस्त विजय हासिल की।

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मात्र अफ्रीकन नागरिकों के मन में इस वुडू (voodoo) के प्रति होनेवाला भय एवं आदर ये दोनों ही बातें दिखाई देती हैं। इसी का फायदा ये मानवी तस्कर उठाते हैं। उन्होंने तो एक जाल (पाश) ही तैयार कर रखा है। वुडू की विधी करनेवाले कुछ व्यक्तियों को इन गुनाहगारी करनेवाली टोलियों ने अपने आप में ही सम्मिलित कर लिया है। उदासिन भावना रखने वाले अफ्रीकन नागरिकों को विशेषत: महिलाओं एवं नौजवानों को वुडू(voodoo) का भय दिखलाकर उन्हें वेश्या व्यवसाय में एवं नशीले पदार्थों की तस्करी के लिए बाध्य किया जाता है। इन नागरिकों को वुडू (voodoo) का दबदबा इतना अधिक होता है कि वे यदि यूरोपीयन सुरक्षा यंत्रणा द्वारा पकड़े भी जाते है तो भी वे मारे डर कुछ बोलते नहीं हैं, उलटे पुलिस को भी वे वुडू (voodoo) का भय दिखाते हैं। इसी प्रकार प्रतिवर्ष हजारों अफ्रीकन महिलायें वेश्या व्यवसाय की ओर ढकेली जाती हैं। उन्हें नकली कागद-पत्री तैयार कर विभिन्न मार्गों से यूरोप में पहुँचाया जाता है। इसके साथ-साथ नशीले पदार्थों का व्यवसाय भी चलते रहता है। आज भी वुडू (voodoo) का प्रभाव उसी प्रकार से पश्चिम अफ्रीका में दिखाई देता है। इसकी गवाही देती है वहाँ पर सर्वाधिक रुप में होने वाला मानवी तस्कर । इसके साथ ही अफ्रीका की गरीबी एवं अन्य समस्याओं का फायदा भी ये तस्कर उठाते हैं। वुडू (voodoo) के भय के साथ ही इन नागरिकों को अच्छी कमाई का स्वप्न भी दिखाया जाता है। इसके लिए विशेष तौर पर कर्ज के बोझ तले दबे हुए लाचार-मजबूर लोगों को ही लक्ष्य बनाया जाता है। स्थानिक गुंडों को पकड़कर इन गरीब-लाचार लोगों को धमकाया भी जाता है। स्वाभाविक है कि इन सब में वुडू (voodoo) का भय सर्वाधिक होता है।

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दूसरा कारण यह है कि यहाँ के संघर्षमय जीवन से तंग आ चुकी महिलायें अधिक अच्छी कमाई की उम्मीद में अपने-आप ही इन व्यवसायों की ओर खींची चली जाती हैं। दंगल, टोलीयुद्ध, भ्रष्टाचार,गरीबी इन सभी आस-पास के निराशाजनक माहौल से परेशान लोगों को यूरोप में स्थानांतरण के रुप में ही आशा की किरण फूटती नज़र आती है। 

 इसके अलावा कुछ प्रकरणों में महिलाओं के पति अथवा प्रेमी पहले से ही यूरोप में जा चुके होते हैं। उन्हीं के पिछे-पिछे ये महिलायें भी कुछ ही दिनों में यूरोप में जा पहुँचती हैं। यूरोप में मदाम की ओर से उनका ध्यान रखा जाता है। मदाम अर्थात्‌ उनके पति साथीदार अथवा प्रेमी। मात्र यही मदाम उन्हें वहाँ पर वेश्याव्यवसाय में ढकेल कर उनकी कमाई पर ऐशो-आराम करते हैं। इसी कारण ऐसे लोगों पर आश्रित बन कर जीने की अपेक्षा स्वतंत्र रुप में अपनी जीविका अर्थ न करने के उद्देश्य से अनेक महिलायें स्वयं ही यूरोप जाने के लिए तैयार हो जाती हैं। अफ्रीका से यूरोप में होनेवाले स्थानांतरण में मानवी तस्करी का प्रमाण काफी बड़े पैमाने पर है परन्तु इन्हें टक्कर देने वाली एक और भी थिअरी हैं।

फिलहाल यूक्रेन का प्रश्न लेकर पाश्चिमात्य देशों के साथ रशिया की तनाव की स्थिती है। इसी विवाद के चलते सितंबर २०१४ में रशिया के परराष्ट्र मंत्री सर्जेई लाव्हरोव्ह ने अपने झीम्बाब्वे दौर के दरमियान अफ्रीका ‘न्यू वर्ल्ड ऑर्डर’ का एक खंबा है ऐसा आरोप लगाया था। अफ्रीका के अनेक देश कितने ही वर्षों यूरोपीय देशों की गुलामी करते थे। यहाँ पर उनकी बस्तियाँ थीं। पाश्चिमात्य देशों ने शीतयुद्ध काल में अफ्रीकन देशों में कठपुतली के समान काम करनेवाले उनके अपनी इच्छानुसार नेताओं को प्रमुख पद दे दिया गया था। छिपा युद्ध भी भड़क उठा था। अंगोला से लेकर मोझंबिक तक। सब को ‘न्यू वर्ल्ड ऑर्डर’ का ही एक अंग होने का इल्जाम सर्जेई ने किया। परन्तु यह दुनिया अब एक ध्रुवीय नहीं होनेवाली है वह भविष्य में बहुध्रुवीय ही रहेगी इस बात को ध्यान में रखना होगा ऐसा सर्जेई ने कहा था।

 सर्जेई जिस ‘न्यू वर्ल्ड ऑर्डर’ का उल्लेख कर रहे हैं, उसका संबंध भी अफ्रीका से यूरोप, अमेरिका में होनेवाले स्थानांतरण के साथ जोड़ा जाता है। ‘न्यू वर्ल्ड ऑर्डर’ अर्थात नयी जागतिक व्यवस्था। यह एक जागतिक षड्‌यंत्र है। इसके अनुसार कोई भी देश स्वतंत्र नहीं होगा। दुनियाभर में एक ही व्यवस्था होगी। गिने-चुने लोग एवं उनसे संबंधित लोग दुनिया के हर कार्य को नियंत्रित रखेंगे और उर्वरित सभी लोग गुलाम बनकर रहेंगे। इसके लिए इतनी बड़ी जनसंख्या को नियंत्रित करना पड़ेगा, इसके लिए करोड़ों लोगों को मार दिया जायेगा। इसी की खातिर युद्ध, दंगल, आतंकवाद। जो इसी षड्‌यंत्र का ही एक हिस्सा है। अमेरिका भी इसमें नचाई जानेवाली एक कठपुतली ही है ऐसा कहा जाता है। डस्ट बोल

१९४८ में नयी जागतिक व्यवस्था को (न्यू वर्ल्ड ऑर्डर) आकार देने की योजना बनायी गई। इसके लिए ‘पी.पी.एस. २३’ नामक एक नीतियुक्त रुपरेखा अमेरिका के परराष्ट्र खाते के तत्कालीन डायरेक्टर जॉर्ज केन्नान ने तैयार की है। देश-देशों की विषम व्यवस्था, विषम स्थिती को बनाये रखने को इस योजना के अन्तर्गत प्रमुखता दी गयी। अमेरिका एवं उसके सहकारी पाश्चिमात्य देशों को तीसरा स्थान देकर दुनियाभर का कच्चा माल, व्यापारी क्षेत्र एवं कामगारों पर अधिकार प्राप्त करना यह उद्देश्य भी निश्चित किया गया। गरीब देशों के नागरिकों के जीवनक्रम को अधिक उच्चांक पर लाने के लिए, मानवी अधिकार, लोकशाहीकरण इस प्रकार के विषयों पर मोघम, अव्यवहार्य एवं दिखावा करने वाली चर्चाओं पर जोर दिया गया। साथ ही अपने कर्म को दुनिया की भलाई के लिए किया जानेवाला प्रयत्न इस प्रकार का मुखौटा लगाया गया। और जो जागतिक शांतता के लिए खतरा उत्पन्न करेगा उसे सबक सिखाया जायेगा और नहीं सुनेंगे उन देशों को अपनी ताकत के बल पर झुका दिया जायेगा यह नीति अपनाई गई। अमेरिका ने अनेक स्थानों पर फेडरल एमरजन्सी मैनेजमेंट एजन्सी (फेमा) की स्थापना की है। फेमा अर्थात्‌ कैदियों को रखने का स्थान। अमेरिका के माजी राष्ट्राध्यक्ष रोनाल्ड रेगन इनके कार्यकाल में रेक्स अर्थात रेडिनेस एक्ससरसाईज कायदा लागू किया गया। इसके अनुसार मैक्सिको से गैरकानूनी तौर पर अमेरिका में आने वाले आप्रवासियों को यहाँ के कारागृह में रखा जायेगा ऐसा कहा गया। परन्तु फेमा के लिए छावणियाँ बंद करके उसका रूपांतरण कैदखाने में किया गया। प्रत्यक्ष रुप में कुल हजारों की संख्या में आनेवाले आप्रवासियों के लिए लाखों लोग समा सके इस प्रकार का कैदखाना किस लिए यह प्रश्न उपस्थित किया जाता है। साथ ही यह कैदखाने अर्थात लोगों को सामूहिक रुप में गाड़ दिए जाने वाला स्थान कहकर इल्ज़ाम लगाया जाता है।

 दुनिया की सभी प्रमुख वित्त संस्थायें, सभी क्षेत्रों की बड़ी कम्पनियाँ, वर्ल्ड बैंक, अंतरराष्ट्रीय सिक्कों की निधी फेडरल रिझर्व्ह, मानवी अधिकारों से संबंधित (आयएमएफ) संस्था भी इसी षड्‌यंत्र के सूत्रधारों की ओर से नियंत्रित की जाती हैं। किंबहुना वे उन्हीं के अधिकार में हैं। ऐसा दावा भी किया जाता है। डॉलर्स जैसे कागदी चलनों के बदले में ये कम्पनियाँ अमूल्य साधन-संपत्ति की लूटमार करती हैं। संक्षेप में कहा जाय तो दुनियाभर की आज की परिस्थिती इसी प्रकार से निर्माण की गई है, ऐसा कहा जाता है। अफ्रीका खंड की अस्थिरता भी इसी का एक हिस्सा है।

 ‘न्यू वर्ल्ड ऑर्डर’ का उद्देश्य लेकर चलने वालों के लिए अफ्रीका यह उनकी प्रयोगशाला है। अफ्रीका में साधन संपत्ति तो है ही, इसके अलावा काफी बड़े पैमाने पर मानवी संपत्ति भी है। जिस समय यूरोपीय देशों को सस्ते में ही मनुष्य बल की ज़रूरत थी उस समय में अफ्रीका ही इस मनुष्य बल का मुख्य स्त्रोत था। अफ्रीकन नागरिकों को फ्रान्स, जर्मन, इटली, अमेरिका में जाने का मार्ग इसी देश ने प्रशस्त किया। उन्हें वहाँ का नागरिकत्व देकर उन्हें वहीं पर स्थायिक किया। विशेषत: द्वितीय महायुद्ध के पश्चात्‌ अफ्रीका से यूरोपीय देशों में जानेवाले नागरिकों का प्रमाण बढ़ गया। उसी समय अफ्रीका के अनेक देशों में गृहयुद्ध भी भड़क उठा। इनमें से अनेक देश अभी तक इस संघर्षमय जीवन से संभल नहीं पाये हैं। इसीलिए उनके लिए यूरोप अफ्रीका का स्थानांतरण मरुस्थल के ओएसिस के समान ही था।

 न्यू वर्ल्ड ऑर्डर का उद्देश्य लेकर चलनेवालों ने ही अफ्रीका की साधन संपत्ति, संपन्न देशों को (रेगिस्तान)मरूस्थल बना देना, वहाँ पर संघर्षात्मक बीज बोने का ही काम किया है, ऐसा इल्जाम है। एचाअयवी एड्‌स, उस्तुवू, बर्ड फ्ल्यू, इबोला जैसी बीमारियों का मूल भी अफ्रीका में है और इस बायोलॉजिक अर्थात जैविक युद्ध के प्रसार में भी ‘न्यू वर्ल्ड ऑर्डर’ का हाथ होने का दावा किया जाता है। अफ्रीका से यूरोप, अमेरिका में होनेवाली स्थानांतरण को रोकने के लिए इबोला की निर्मिती कुछ लोगों ने जैविक युद्ध के समान की हैं ऐसा इल्जाम भी लगाया गया है। परन्तु एक प्रकार से देखा जाय तो इबोला के कारण पश्चिमी अफ्रीका से स्थानांतरण बढ़ गया है, ऐसा दिखाई देता है। इबोला के भय से चीन ने भी पश्चिम अफ्रीकन देशों से अपना पैर खींच लिया है।

 वैसे देखा जाय तो यह स्थानांतरण ‘न्यू वर्ल्ड ऑर्डर’ का उद्देश्य साध्य करने वाला ही है। इस तरह के स्थानांतरण के कारण गुनाहकारी बढ़ती है, समाज में अनबन निर्माण होता हैं, संघर्ष होता है, दंगल होते हैं और इनके साथ पैदा होती है अस्थिरता। यही अस्थिरता ‘न्यू वर्ल्ड ऑर्डर’ को बल देनेवाली है।

 अफ्रीका में होनेवाले इस स्थानांतरण से संबंधित समस्या के बारे में हर कोई अपने तरीके से विश्लेषण करता है, भिन्न-भिन्न दावा करता है। मात्र अफ्रीकन नागरिकों की इस विंडबना को अनदेखा तो नहीं किया जा सकता है। यहाँ की इन परिस्थितीयों के ही कारण यहाँ पर अंधश्रद्धा ने जोर पकड़ लिया है। इक्कीसवी सदी में सामान्य अफ्रीकन शिक्षा आदि से वंचित रह जाने के कारण उन्हें जागतिक प्रगति का कोई भी लाभ नहीं मिल पाता है। उलटे उनके सामने की परिस्थिती दिनों-दिन और भी अधिक विकट हो चली है।

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१९३० में संपूर्ण जगत को महामंदी का सामना करना पड़ा था और इसी महामंदी के अपत्य के रुप में आ धमका था ‘द्वितीय विश्वयुद्ध’। इसी समय के दौरान दुनियाभर में स्थानांतरण की घटनाएँ बढ़ गईं थी। विशेषत: अमेरिका को इसका सबसे बड़ा झटका लगा। क्योंकि महामंदी की आग में झुलसते अमेरिकन नागरिकों को इसी समय डस्ट स्ट्रॉर्म अर्थात धुएँ के बादलों का भी सामना करना पड़ा था। उस काल में पड़ने वाला जोरदार आकाल, जो कुछ भी शेष रह गया था उसे भी ना के बराबर करनेवाले जोरदार धुएँ के बादल इसके साथ ही महामंदी इन से इस समयविशेष को ही ‘डर्टी थर्टीज’ अथवा ‘डस्टबोल्‌’ के रुप में जाना-पहचाना जाता है। अमेरिका में आनेवाली मंदी संपूर्ण जग को निगल जाए इससे पहले ही इन तीन कारणों के कारण ही अमेरिका में देशांतर्गत काफ़ी बड़े पैमाने पर स्थानांतरण हुए। लगभग पच्चीस लाख अमेरिकी नागरिकों ने उस समय देशांतर्गत स्थानांतरण किया, ऐसा भी कहा जाता है। अमेरिका में अब तक सबसे कम समय में, काफ़ी बड़ी संख्या में होनेवाले स्थानांतरण है। ऐसा इसके बारे में दर्ज़ किया गया है।

 यहाँ पर भी कैसी विडंबना है। अमेरिका यह देश मूलत: आप्रवासियों ने बसाया है। अमेरिका में होनेवाला यह स्थानांतरण आत्यंतिक रुप में यूरोप से हुआ है। १९ वी सदी के मध्य से ही २० वी सदी के मध्य तक अमेरिका में स्थानांतरण करनेवाले बहुसंख्य लोग यूरोपीय ही थे। इन यूरोपीय आप्रवासियों में से ९० प्रतिशत लोग अमेरिका में हमेशा के लिए ही बस गए। इसीकारण यूरोप यह सर्वाधिक आप्रवासियों को भेजनेवाला खंड साबित होता है। वहीं अमेरिका यह इन आप्रवासियों का स्वीकार करनेवाला देश है। किसी समय में अपने उपनिवेशों के माध्यम से दुनियाभर में स्थानांतरण करनेवाला यूरोप और आप्रवासियों द्वारा बसाया गया देश कहलाने वाला अमेरिका अब मात्र इन अफ्रीकन आप्रवासियों के प्रति विरोध कर रहे हैं।

 आज की स्थिति में दुनिया भर में अफ्रीकन देशों से ही सर्वाधिक स्थानांतरण हो रहा है। इसका प्रमुख कारण है, गरिबी, दुर्गति, गृहयुद्ध आदि। अफ्रीका के इन समस्याओं का यह बादल अमेरिका, यूरोपीय देशों की ही देन हैं और यही ‘डस्ट बोल’ अफ्रीकन नागरिकों के स्थानांतरण के रुप में इन देशों पर काला बादल बनकर मंडरा रहे हैं।

॥ हरि ॐ ॥ ॥ श्रीराम ॥ ॥ अंबज्ञ ॥