डस्ट बोल – भाग ​२​

 
सबराहन देश माने जाने वाले इथिओपियाने तो पिछली सदी से ही अनेक दुर्भिक्षों का सामना किया है और अब भी कर ही रहा है| परन्तु सुदान के साथ केनिया, सोमालिया जैसे देश भी पिछले दो वर्षों में दुर्भिक्ष्य के कारण झुलस गये हैं| इन चारों ही देशों के अनेक हिस्सों में जिन लोगों को अन्न के लिए त्राहि-त्राहि करते हुए प्राण गंवाने पड़े हैं, वे छूट गए आज यह बात भी कहने का समय आ गया है क्योंकि ऐसी स्थिती में यहॉं पर जीने की अपेक्षा मरना ही ठीक है क्योंकि अतिकुपोषण के कारण अस्थिपंजर शरीर लेकर जीने की अपेक्षा और भी अधिक भयानक होती है|
 
इन चार अफ्रीकन देशों की तरह अन्य सहारन, सब सहारन, मध्य एवं उत्तर अफ्रीकन देशों में कही अधिक तो कम प्रमाण में स्थिती इसी प्रकार की है| राजकीय,अस्थिरता, प्रचंड गरीबी, अन्न की कमतरता (अन्नटंचाई), वांशिक संघर्ष साधनसंपत्ति पर नियंत्रन प्राप्त करने के लिए दो समूहों के बीच होनेवाला संघर्ष, आतंकवाद, गृहयुद्ध इस प्रकार की अनेक बातों में इन देश की जनता जिस प्रकार गेहूँ जाते में घुन भी पिस जाता है उसी प्रकार पिसती जा रही है| केवल अफ्रीका के दक्षिणी छोर की ओर होनेवाले देशों में थोड़ी-बहुत स्थिरता है, विशेष तौर पर सर्वाधिक समृद्ध देश के रुप में पहचाना जानेवाला दक्षिण अफ्रीका बिलकुल दक्षिण के छोर पर अकेले ही विकास की राह पर ड़टा दिखायी देता है| बाकी के लगभग सभी अफ्रीकन देश विविध प्रकार की समस्याओं से ग्रसित दिखायी देते हैं|
 
 
द्रुतगति के साथ विकसित होनेवाले दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध उसके बिलकुल उत्तर दिशा की ओर होने वाला ट्युनिशिया वही प्रचंड राजकीय अस्थिरता, आतंकवाद, गुनाहगारी इनमें पूरी तरह से झूलस गया है| २०११ में अरब एवं अफ्रीकन राष्ट्रों में ‘जास्मीन रिव्हॉल्युशन’ नामक बादल का जन्म ट्युनिशिया से ही हुआ था| प्रस्थापित हुकुमशाह झीनीबेन अली की सत्ता को उखाड़ फेकने के लिए शुरु होने वाले आंदोलन ने इतना अधिक जोर पकड़ा लिया था कि इससे अनेक देशों की सरकार हील गयी| इजिप्त से  होस्नी मुबारक, लिबियासे मुअम्मर गद्दाफी जैसे नेताओं को भी कुर्सी छोड़कर भागना पड़ा| येमेन, बहारिन, अल्जेरिया, जॉर्डन, मोरोक्को, सुदान, मॉरिटेनिया, ओमान, जिबोती इन देशों में बड़े-बड़े आंदोलन छिड़ गए्| सीरिया में अभी भी प्रचंड पैमाने पर संघर्ष चल ही रहा है| इजिप्त, लिबिया में तो होस्नी मुबारक, गद्दाफी के साम्राज्य के पतन के पश्चात् अस्थिरता एवं संघर्ष और भी अधिक बढ़ता दिखायी देता है|
 अफ्रीका में प्रंचड पैमाने पर खनिज संपत्ति है| हिरे, सोने आदि की खाने हैं| इसके अलावा इंधन तेल एवं वायु का भी प्रचंड प्रमाण में संग्रह है| इसके अलावा बॉक्साईट, लोह, कोबाल्ट, प्लॅटिनम, तांबा, शिसा इस प्रकार के कितने सारे खनिज़ यहॉं पर काफ़ी बड़े पैमाने पर दिखायी देते हैं| दुनिया के सभी तेल संग्रहों में से दस प्रतिशत तेल का संग्रह अफ्रीका में दिखायी देता है| उसी प्रकार २५ प्रतिशत सोने का संग्रह तथा अणुऊर्जा के लिए इंधन के रुप में उपयोग में लाये जाने वाले यूरोनियम का संग्रह अफ्रीका में पाया जाता है| परन्तु इतनी प्रचंड खनिज संपत्ति, समुद्र किनारा होने के बावजूद भी अफ्रीका निर्धन ही रहा| संघर्ष एवं अस्थिरता की खाई में खींचताही चला गया| गृहयुद्ध में झुलसता ही रहा|
 
अफ्रीकन देश की गरीबी, अस्थिरता एवं संघर्ष यह जागतिक राजकारण का ही एक हिस्सा है ऐसा आरोप लगाया जाता रहा है| यहॉं की खनिज व नैसर्गिक संपत्ति का सहज उपयोग किया जा सके, इसके लिए इन देशों को जानबूझकर अस्थिर रखने की कोशिशें विकसित देशों की ओर से चलती रहती है ऐसा दावा किया जाता है| पिछले कुछ वर्षों में अफ्रीका के अनेक देश यूरोप एवं अमेरिका का साथ छोड़कर चीन के करीब चले गये थे| चीन ने इन देशों में अपना व्यापार बढ़ा दिया था| इसीलिए अरब स्प्रिंग घटना का आधार लेते हुए अफ्रीका को नये संघर्ष की खाई में ढकेल दिया गया| ऐसा दावा किया जाता है|
 
डस्ट बोल
 
इसके साथ ही इन देशों में आतंकवादियों को भी खुलेआम मनमानी करने देने के पिछे भी यही कारण बतलाया जाता है| क्योंकि इस अस्थिरता एवं संघर्ष के आड़े यहॉं की खनिज संपत्ति को लूटना तथा इन देशों पर अपनी पकड़ मजबूत करना अधिक आसान था| इसी कारण खनिज संपत्ति से समृद्ध अफ्रीकन देशों को जान बूझकर गरीबी एवं अन्य समस्याओं की आग में झुलसाया जाता रहा है| यह जागतिक साजिश का ही एक हिस्सा होने का भी दावा किया जाता हैं| अफ्रीका की परिस्थिती देखकर इन दावों की सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता|
 
हीरे, सोना, इंधन, तेलों की खानों से भरा-पूरा देश होने के बावज़ूद इन देशों में ये संघर्ष एवं गरीबी प्रखर रुप में दिखायी देती है| यहॉं की खानों पर अपना-अपना अधिकार जमाने के लिए इन देशों में टोली युद्ध भड़कता हुआ दिखायी देता है| खानों से फायदा उठाने के लिए इस प्रकार की टोलियों को पकड़कर कोई मल्टिनॅशनल कंपनियॉं, विकसित देश मिलकर इस संघर्ष को भड़काने का काम करते हैं| ऐसा आरोप भी लगाया जाता है| खानों में गरीब नौजवानों को पकड़कर गुलामों की तरह उनसे मजदूरी करवायी जाती है| इस प्रकार की गुलामी को नकारनेवालों एवं गुलाम बनने के लिए सक्षम न होनेवालों का बडे़ही बेदर्दी के साथ कत्ल कर दिया जाता है| इस संदर्भ में अनेक बातों का खुलासा हुआ है| सिएरा लिऑन में हिरे की खान का रक्तरंजित इतिहास अब तो पूरी दुनिया (संपूर्ण जगत) के सामने प्रकट हो चुका है| इतना कुछ होने पर भी यह प्रकार अफ्रीका में अभी तक रोका नहीं जा सका है| बहुत ही कम पैसों में गुलामों की तरह अफ्रीका के अनेक स्थानों में आज भी असंख्य नौजवानों को और बच्चों को रौंदा जा रहा है|
 
परन्तु इस सभी में सामान्य अफ्रीकन नागरिक प्रचंड मात्रा में झुलस रहा है| सर्वसामान्य मानवीय प्रतिक्रिया ही है की अफ्रिकी नागरिक स्थिर एवं संघर्षमुक्त जीवन का सपना देखने लगा है| इसी में अफ्रीका से यूरोप में होनेवाला यह स्थानांतरण शुरु हो गया|
 
आरंभिक काल में यह स्थानांतरण देशांअंतर्गत ही शुरु था अर्थात उसी देश के समृद्ध हिस्सों में स्थानांतरण होता था| परन्तु इसमें भी संघर्ष शुरु हो गया| इसके पश्चात् अफ्रीका में एक देश से दूसरे देश में स्थिर-शांत हिस्सो में स्थानांतरण आरंभ हो गया| यही से यह स्थानांतरण की प्रक्रिया का आरंभ हुआ्| धीरे-धीरे अपने उस विभाग से बाहर निकलकर यूरोप के संपन्न देशों में स्थिर होने के लिए भूमध्य सागर को पार करके विविध मार्गों से यूरोप में पहुँचने की मानों होड ही शुरु हो गयी|
 
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आजकल अफ्रीका में दो प्रकार का स्थानांतरण चलता है एक खंडातर्गत और दूसरी अफ्रीका से यूरोप में, अमेरिका एवं पड़ोस के एशिया खंड में| इनमें भी एक कानूनी मार्ग से और दूसरा गैरकानूनी| इन दोनों में से दूसरे मार्ग से जानेवालों की संख्या प्रचंड प्रमाण में है|
 
विशेष तौर पर इस तरह गैरकानूनी मार्ग से यूरोप में पहुँचने वालों में केवल गरीब अफ्रीकन नागरिक ही होते हैं ऐसी बात नहीं है| आर्थिक स्थिती अच्छी होने वाले भी अनेकों लोग इसी मार्ग का चयन करते हैं| पूर्वी अफ्रीका से यूरोपीय देशों में विद्यार्थी उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु जाते थे, उसी प्रकार राजनीतिक अधिकारी, उद्योगपति कानूनन व्हिसा आदि प्राप्त करके यूरोप में जाते थे| जिनकी आर्थिक स्थिति मजबूत है, जो साधन संपन्न है वे ही उचित मार्ग का अवलंबन करते थे और फिर वही के रहिवासी बन जाने की कोशिश करते थे| जिन लोगों के लिए कानूनी तौर पर जाना संभव नहीं था| वे गैर कानूनी गलत मार्ग का अवलंबन करते थे| व्हिसा प्राप्त करने के लिए झूठे कागज़ पत्रों आदि का उपयोग किया जाता था| व्हिसा मिल जाने पर यूरोप में पहुँचने वाला यह अफ्रीकन नौजवान व्हिसा की मुदत समाप्त हो जाने पर भी वहीं पर रहता था| इस प्रकार की समस्या बढ़ जाने के कारण ९० के दशक के आरंभ में स्पेन, इटली जैसे देशों ने व्हिसा नियम को और भी अधिक कड़ा बना दिया| इसी कारण भूमध्य सागर के रास्ते गैरकानूनी मार्ग से यूरोप में दाखिल होनेवालों की संख्या बढ़ गई्| यूरोप में जाने के इच्छुक गरीब अफ्रीकन नागरिकों के लिए यह रास्ता अधिक सुविधाजनक था|
 
आप्रवासियों का यह प्रवास किसी भी प्रकार से जानलेवा साहस से कम नहीं होता था| पास में काम न होनेवाले युवक, महिलाएँ अपना गॉंव-देश छोड़-छाड़कर जो मिला वही बॉंध-छानकर प्रवास के लिए निकल पड़ते हैं|  उस उज्ज्वल भविष्य का स्वप्न लेकर, कभी भी वापस लौटकर न आने के लिए्| समस्याओं की भट्टी में जल-भूनकर, हताश, निराश होकर प्राण हथेली पर लेकर निकल पड़ने वालों को इस बात की परवाह भी नहीं होती है कि इस प्रवास में अपनी जान भी जा सकती है| अपने पास ना तो व्हिसा है और ना ही पासपोर्ट, उनका यह प्रवास गैरकानूनी है| इस बात का पूरा ज्ञान होने के बावजूद यह स्थानांतरण चलता रहता है|
 
dust bowl - डस्ट बोल
 
उदाहरण के तौर पर युगांडा, सोमालिया इन देशों से यूरोप से स्थानांतरण के लिए निकलने वाले नागरिक बिलकुल तीन देशों को पार करते हुए भूमध्य सागर के किनारे पर अपने गंतव्य स्थान तक पहुँच ही जाते हैं| सोमालिया की राजधानी मोगादीशू से लिबिया का भूमध्य सागर के किनारे पर बसा हुआ शहर बेनगाझी बिलकुल २६५२ मील दूर हैं अर्थात लगभग ४२२९ किलोमीटर की दूरी पर| सोमालिया से सुदान एवं सुदान से लिबिया में पहले पहुँचना पड़ता है और लिबिया में पहुँच जाने पर बिलकुल उत्तर की ओर वाले भूमध्य सागर के किनारे तक काफ़ी कष्टदायक प्रवास करना पड़ता है| ट्रक अथवा बस के समान भारी वाहनों में मूर्गे-मुर्गियों की तरह ठूँसकर यूरोप जाने के लिए इच्छुक लोगों को भर दिया जाता है| निश्चित अंतर के पश्चात्  दुसरे वाहन में डाले जाते हैं| कुछ जगह काटेंवाले रास्तों से, पर्वतों को पार करते हुये, रेगिस्तानी भाग से चलना पड़ता है| पठार, अरण्यमय पर्वत पार करने पड़ते है| दूसरे देशों की सीमा पार करने के लिए अनेक मार्गों का अवलंबन किया जाता है| सुरक्षा अधिकारियों को रिशवत दी जाती है| कस्टम अधिकारी एवं सुरक्षा यंत्रणाओं को चकमा देने के लिए भी गाड़ी की डिक्की में अथवा गाड़ी के नीचे अथवा बैठनेवाले आसन के नीचे सीटों को गिराकर उसमें भी बदन को सिकोड़कर आप्रवासियों को बिठा दिया जाता है| इनके जो चित्र इंटरनेट पर उपलब्ध हैं| उसे देख कोई भी विचलित हो सकता है| उनका दिल दहल जायेगा| 
 
मोरोक्को से स्पेन के अधिकार में आनेवाले शहर मेलिला के दरमियान तीन पड़ावों में ऊँचा कॉंटेदार बाड़ बनाया गया है| इन बाड़ को पार कर अनेक आप्रवासी स्पेन में जाते हैं| पचास लोगों का यदि समूह होता है, तो उनमें से आठ़ लोग ये तीनों कॉंटेदार बाड़ को पार करके रक्तरंजित होकर मेलिला में पहुँच जाते हैं| हाथ-पैर भी लहुलोहान हो जाने पर भी| इस बात की उन्हें कोई परवाह नहीं होती| यूरोप में जाने के लिए वे जान की बाज़ी खेल जात हैं| इससे संबंधित तस्वीरें इंटरनेट पर मौजूद हैं| वह भी काफी भयप्रद है| परन्तु इन सभी चित्रों के माध्यम से अफ्रीका के विपन्नता का और उनके हताश एवं जीने की मनिषा के लिए उनका एड़ी चोटी का जोर लगा देने की कोशिशें, संघर्ष आदि का दर्शन भी होता है| इन आप्रवासियों को इस कठिन प्रवास में साथ देते हैं तस्कर (स्मगलर)| 
 
अफ्रीका से यूरोप में होनेवाला स्थानांतरण संगठित गुनाहगार एवं तस्करों(स्मगलरों) की टोलियों के नियंत्रण में ही चलते रहता है| संक्षेप में कहें तो इन स्थानांतरणों में संघटित गुनाहगारी का स्वरूप आ गया है| ये टोलियॉं इन यूरोप जानेवाले इच्छुकों से पैसे लेकर उन्हें यूरोपीय भूमि तक पहुँचने का काम करते हैं| जिनके पास अधिक पैसा होता है उनके लिए रास्ता भी अलग होता है| जिनके पास कम पैसे उनके लिए भिन्न मार्ग होता हैं| इसके आड़े में अमली पदार्थ एवं मानवी तस्करी (स्मगलर) भी की जाती है| नायजेर एवं नायजेरिया ये मध्य अफ्रीकन देश इस स्थानांतरण मार्ग का केन्द्रबिंदू बनकर सामने आते हैं| 
 
Dust Ball- डस्ट बोल
 
जिनके पास पैसा है, जो विमान का टिकट निकाल सकते हैं, उसी प्रकार बनावटी कागज़ पत्री के लिए जो अफ्रीकन नागरिक पैसे खर्च कर सकते हैं, कस्टम अधिकारी, इमिग्रेशन अधिकारियों को रिशवत दे सकते हैं उनके लिए यूरोप की भूमि में सुरक्षित रुप में पहुँचने का मार्ग सुनिश्‍चित करने का काम ये तस्कर (स्मगलर) करते हैं| मात्र जिनके पास अधिक पैसे खर्च करने की ताकत नहीं होती उन्हें भूमार्ग का एवं समुद्र मार्ग का कष्टदायक प्रवास करना पड़ता है|
 
तस्करों (स्मगलरों) की टोलियॉं इन आप्रवासियों को विभिन्न समूहों में विभाजित कर देते हैं और स्वतंत्र मार्ग से हर एक समूह का प्रवास आरंभ हो जाता है| कौन सा समूह किस मार्ग से कूच करनेवाला है, इस बात की कोई भी खबर दूसरे समूह को नहीं होती| इस मार्ग में फँस जाने की, लूट किए जाने की संभावनाएँ अधिक होती है| मानवी तस्कर (स्मगलर) महिलाओं को वेश्या व्यवसाय में ढ़केल सकती हैं| ये महिलाएँ लैंगिक शोषण की बली चढ़ सकती है अथवा रेगिस्तानी प्रदेश से जाते समय अति उष्णता, अन्नपानी की कमतरता के कारण रास्ते में ही उनकी मौत हो जाने की संभावना होती है| बीमारी के कारण किसी भी व्यक्ति को रास्ते में ही मरने के लिए छोड़कर ये तस्कर (स्मगलर) अन्य लोगों को लेकर आगे बढ़ सकते है| यदि किसी देश की सीमा को पार करना हो तो दूसरे देश की सुरक्षा यंत्रणा की ओर से कारवाई हो सकती है| इतनी सारी रूकावटों का सामना करते हुए समुद्री मार्ग में भी अपघात होने की संभावनाएँ बनी रहती हैं और उसमें भी यूरोप के किनारे पर पहुँचने पर वहॉं की सुरक्षा यंत्रणा की ओर से पकडे़ भी जा सकते हैं और इन अधिकारीयों की ओर से उन्हें पुन: अपने वतन में भेजा जा सकता है| ये सारी संभावनाएँ एवं धोखाघड़ी की जानकारी होते हुए भी प्रतिदिन नियमित रुप से सैकड़ों लोग इस प्रवास के लिए निकल पड़ते हैं|
 
यूरोप में जाने के लिए तस्करों (स्मगलरों) की मदद लेने वालों को विभिन्न भूमार्गों से अटलांटिक एवं भूमध्य सागर के किनारे तक लाया जाता है| माली, सेनेगल, घाना, चाड, सिएरा लिऑन, कॅमरून इन देशों के स्थानांतरणों को प्रथम नायजेर में लाया जाता है| वहीं से लिबिया मार्ग से भूमध्य सागर के किनारे पर विभिन्न गंतव्य स्थानों तक पहुँचाया जाता है| कुछ लोगों को अल्जेरिया के रास्ते ट्युनिशिया के भूमध्य समुद्री किनारे तक, वही मेलिला अभी भी स्पेन के अधिकार में रहनेवाले शहर के किनारे तक पहुँचाया जाता है| सिएरा लिऑन, सेनेगल, मॉरिटेनिया, मोरोक्कोच्या अटलांटिक किनारे का उपयोग भी किया जाता है| कष्टदायक भूप्रवास के पश्चात् आरंभ होनेवाला सागरी प्रवास और भी अधिक कष्टदायक होता है|
 
डस्ट बोल
 
अटलांटिक मार्ग से जिन आप्रवासियों को लाया जाता है उनका प्रवास तो जानलेवा ही होता है| इन सभी को छोटी जहाज में भरकर गिब्रॅल्टर सामुद्रीधुनी तक लाया जाता है और वहॉं से आगे भूमध्य सागर मार्ग से उनका प्रवास आरंभ होता है| सिएरा लिऑन से जिन्हें इस प्रकार की जहाज से लाया जाता है उन्हें गिब्रॅल्टर सामुद्रीधुनी तक पहुँचने के लिए कुल चार देशों के समुद्री हद्दों को पार करना पड़ता है| इसी कारण प्रवास के दरमियान उस गहरे समुद्र में एक जहाज से दूसरी जहाज में आप्रवासियों को बदला जाता है| वहॉं पर लिबिया, ट्युनिश्य  लिबिया, ट्युनिशिया, मोरोक्को, अल्जेरिया के भूमध्य सागर के किनारे से जिन्हें ले जाया जाता है, उनका प्रवास भी उतना ही कष्टदायक होता है उन जहाजों को प्रवासियोंसे खचाखच भर दिया जाता है और यूरोप का किनारा पास आते दिखाई देते ही, उन्हें उस गहरे समुद्र में ही छोटे-छोटे जहाजों में लाद दिया जाता है| यूरोपीय सुरक्षा दलों का ध्यान इस ओर न पड़ने पाये इसके लिए और छिपने-छिपाने में आसानी हो इसलिए रबर के बिलकुल छोटे जहाजों का उपयोग किया जाता है| सुरक्षा दलों को चकमा देने के लिए या उचित अवसर पाते ही यूरोप के किनारे तक पहुँचने के लिए कितने ही घंटों तक एक ही स्थान पर इन जहाजों को रोककर रखा जाता है| इस दौरान धूप, ठंड, भूख, प्यास इन सभी की मार सहनी पड़ती है| कुछ महीने पूर्व यूरोप के सुरक्षा दलों ने इसी प्रकार से आप्रवासियों से भरी हुई एक रबर की जहाज पकड़ी थी| इन आप्रवासियों का जहाज मौके की तलाश में बिलकुल दो दिनों तक एक ही स्थान पर रुकी थी|
 
अधिक से अधिक अप्रवासियों को एक ही समय पर पहुँचाने के लिए ये छोटी जहाजें भी प्रवासियों से खचाखच भरी जाती है| इसी कारण जहाजें उलट जाने से काफ़ी अपघात भी होते हैं| उस गहरे समुद्र में एक जहाज से दूसरे जहाज में आप्रवासियों को भरते समय भी काफ़ी अपघात होते हैं| स्पेन के प्युरोटो ब्लॅन्को एवं अल्जेरिया के पोर्ट ऑफ अनाबा के बीच का अंतर है ४७४ सागरी मील्| दस घंटे सागरी मील इतनी गति के साथ प्रवास किया, तो लगभग दो दिन अनाबा से प्युरोटो ब्लॅन्को तक पहुँचने में लगते है| दो दिनों का यह रबरी जहाजों का प्रवास कितना जानलेवा साबित हो सकता है| इसका अनुमान हम लगा सकते हैं| यूरोप में अफ्रीका से होनेवाले आप्रवासियों को रोकने के लिए भूमध्य सागर के किनारे पर बसे हुए युरोपिय देशों नें अनेकों उपाय किए| सागरी हद्द में गस्त बढ़ा दी| आप्रवासी कानून (इमिग्रेशन ऍक्ट) और भी अधिक सख्त कर दिए गए्| फ्रान्स, जर्मन, स्पेन और इटली जैसे यूरोप के समृद्ध देशों ने तो इस तरह से गैर पद्धतिनुसार यूरोप में दाखिल होनेवाले इन अप्रवासियों को समझाकर,उन्हें वास्तविकता का अहसास करवाकर वापस भेजने की एक यंत्रणा बनायी| इसके अनुसार इस प्रकार के आप्रवासियों को अपने देश में वापस लौटने के लिए पैसे भी दिए जाते हैं| इन देशों ने इसके लिए विशेष निधी का इंतजाम कर रखा है| परन्तु यह स्थानांतरण रोकना संभव नहीं हो सका है|
 
ब्रिटन में पहुँचनेवाले लगभग पचास हजार आप्रवासी इन आप्रवासियों पर ध्यान रखने के लिए बनायी गयी यंत्रणा को चकमा देके गायब हो जाने का वृत्त कुछ महिने पूर्व प्रसिद्ध हुआ था| वहीं लगभग एक लाख पचहत्तर हजार अप्रवासियों के प्रत्यार्पण के लिए ब्रिटन की कोशिश जारी है| अकेले ब्रिटन में यह स्थिती है  फिर अन्य यूरोपीय एवं अमेरिका की परिस्थिती का अंदाजा लगाया जा सकता है|
भूमध्य सागर में गस्त बढ़ने के कारण अब तस्करों(स्मगलरों) ने आप्रवासियों को यूरोप तक पहुँचने के लिए नया मार्ग भी ढूँढ़ निकाला है इसके अनुसार भूमध्य सागर के पूर्वी किनारे से ग्रीस के किनारे तक आप्रवासियों को पहुँचाया जाता है| ग्रीस २००८ के मंदी के दौरान अस्थिर हो चुका है| वहॉं पर असंतोष भी बढ़ चुका है| इसी में इन देशों की सागरी सुरक्षा यंत्रणा अन्य यूरोपीय देशों के समान मज़बूत नहीं है| इस बात का फायदा तस्करों (स्मगलरों) ने उठाना शुरु किया है| इसके लिए लिबिया एवं इजिप्त में नये चेक पॉईंट तस्करों (स्मगलरों) ने विकसित किये है|
 
इसके अलावा अब लिबिया से इजिप्त वहीं से जॉर्डन, सीरिया और फिर यूरोप के तुर्की में उतरने का भूमार्ग भी आप्रवासियों के लिए काफ़ी बडे़ पैमाने पर उपयोग में लाया जाने लगा है| लिबिया, इजिप्त, जॉर्डन, सीरिया इन सभी देशों में अस्थिरता बहुत अधिक हैं साथ ही भ्रष्टाचार भी प्रचंड पैमाने पर है| इसीलिए कस्टम अधिकारियों को पैसे देकर सीमा पार करना आसान है| तुर्की से आगे बाल्कन देश में जाया जा सकता है अर्थात यह भूमार्ग भी काफी कष्टदायक एवं जान लेवा है| इजिप्त एवं जॉर्डन के मरूभूमि वाले प्रदेश को पार करते समय आप्रवासियों की मृत्यु हो जाने की घटनाएँ भी सामने आयी हैं|
Dust Ball-05 - डस्ट बोल
 
(क्रमश:)