चीन का खतरा बढ रहा है

अफ्रीका महाद्वीप में लष्करी प्रभाव बढाने के लिए चीन की गतिविधियाँ

बीजिंग – मंगलवार से बीजिंग में ‘चाइना अफ्रीका डिफेन्स एंड सिक्यूरिटी फोरम’ की बैठक शुरू हुई है। इस फोरम का आयोजन चीन के रक्षा विभाग ने किया है। पिछले दो दशकों में अफ्रीका में सिर्फ व्यापार और आर्थिक हितसंबंध बनाए रखने के लिए पहल करने वाले चीन ने अफ्रीका महाद्वीप की लष्करी और सुरक्षा विषयक नीतियों में खुलकर पहली बार दिलचस्पी दिखाई है। चीन के रक्षा विभाग की तरफ से हो रहा इसका आयोजन ध्यान आकर्षित करने वाला साबित हुआ है। इस फोरम की पृष्ठभूमि पर चीन की तरफ से अफ्रीका महाद्वीप में लष्करी प्रभाव बढाने के लिए शुरू की गई गतिविधियों का मुद्दा अग्रणी है।

पिछले वर्ष अगस्त महीने में चीन ने ‘जिबौती’ में अपना पहला रक्षा अड्डा कार्यान्वित किया था। तब चीन ने उसका इस्तेमाल केवल नौसेना और अन्य रक्षा बलों को अवश्य सामग्री की आपूर्ति करने के लिए और उनके प्रशिक्षण के लिए किया जाएगा, ऐसा कहकर यह रक्षा अड्डा नहीं होने का दावा किया था। लेकिन उसके बाद इस इलाके में लष्करी अभ्यास और बड़ी मात्रा में लष्करी टुकडियां तैनात करके इसका इस्तेमाल रक्षा अड्डे के तौर पर ही किया जाएगा, यह स्पष्ट हुआ था।

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तिब्बत में चीनी लष्कर का युद्धाभ्यास

बीजिंग – चीन ने तिब्बत में युद्धाभ्यास शुरू करके भारत को चेतावनी दी है। इस युद्धाभ्यास की जानकारी चीन के सरकारी मुखपत्र ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने दी है। सन १९६२ के युद्ध में चीन ने भारत पर जीत पाई थी। लेकिन इस जीत के फल चीन को नहीं खाने मिले, इसका कारण चीन की सेना को रसद की आपूर्ति करने के लिए आवश्यक बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध नहीं थी, ऐसा ग्लोबल टाइम्स ने युद्धाभ्यास के बारे में दी खबर में कहा है।

ग्लोबल टाइम्स की खबर के अनुसार मंगलवार के दिन चीनी लष्कर ने यह युद्धाभ्यास किया है। लगभग ४५०० मीटर ऊंचाई पर स्थित क्विंटाई-तिब्बत इस पठार पर इस अभ्यास का आयोजन किया गया था। यहाँ की दुर्गम भौगोलिक रचना और कठीन वातावरण से यहाँ सैनिकों को रसद और लष्करी सामग्री की आपूर्ति करना कठिन हो जाता है। इस आपूर्ति में आने वाली रुकावटें दूर करके ऐसे दुर्गम इलाकों में भी तेजी से रसद की आपूर्ति करने की क्षमता चीन विकसित कर रहा है।

सदर अभ्यास में लष्कर के साथ चीन की अन्य सरकारी यंत्रणा, स्थानीय कंपनियों की भी सहायता ली गई थी है। तिब्बत की स्थानीय कंपनियों की तरफ से इंधन और सरकारी यंत्रणाओं का इस्तेमाल अनाज की आपूर्ति के लिए किया गया। लष्करी और नगरी सहकार्य की दिशा में चीन ने रखा यह कदम महत्वपूर्ण साबित होता है। आने वाले समय में मजबूत लष्कर निर्माण का लक्ष्य हासिल करने के लिए चीन की यह व्यूहरचना है’, ऐसा विश्लेषकों ने दावा किया है।

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चीन दुनिया भर के देशों को कर्ज के जाल में फंसा रहा है – अमरिकी दैनिक की रिपोर्ट

वॉशिंग्टन/बीजिंग: श्रीलंका को कर्ज के जाल में फंसाकर चीन ने, भारत की सीमा के सिर्फ कुछ ही मीलों की दूरी पर स्थित सामरिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण जगह पाने में सफलता प्राप्त की है। ऐसा दावा अमरीका के अग्रणी दैनिक ने किया है। पिछले वर्ष के अंत में एक अनुबंध के अनुसार, श्रीलंका की सरकार ने ‘हंबंटोटा’ बंदरगाह और उसके पास की १५ हजार एकड़ जगह चीन को ९९ सालों के लिए दी है। यह घटना मतलब चीन दुनिया के विविध देशों को कर्ज के जाल में फंसाकर अपना स्वार्थ पाने के लिए दबाव डाल रहा है, इसका स्पष्ट उदहारण है, इस बात की तरफ इस रिपोर्ट में ध्यान आकर्षित किया गया है।

अमरिका के ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने हाल ही में श्रीलंका के हंबंटोटा पर चीन के कब्जे के सन्दर्भ में स्वतंत्र लेख प्रसिद्ध किया था। इस लेख में, चीन ने श्रीलंकन अर्थव्यवस्था की कमजोरी का फायदा अपने सामरिक हितसंबंध के लिए किस तरह से करके लिया है, इसका पर्दाफाश किया है। हंबंटोटा बंदरगाह व्यापारी और व्यवहारिक दृष्टिकोण से सफल होने वाला नहीं है, इस वजह से भारत ने उसे वित्तीय सहायता देने से इन्कार किया था। लेकिन श्रीलंका के भूतपूर्व राष्ट्राध्यक्ष महिंदा राजपक्षे ने उसके लिए चीन की तरफ माँग करने के बाद आर्थिक सहायता को तुरंत मंजूरी दी गई।

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चीन की तरफ से वैश्विक लोकतंत्र को खतरा है – तैवान के राष्ट्राध्यक्ष की आलोचना

तैपेई: ‘चीन की तरफ से सिर्फ तैवान की सुरक्षा के लिए ही खतरा नहीं है, बल्कि इस क्षेत्र को और इससे भी ज्यादा वैश्विक लोकतंत्र को खतरा है। क्योंकि आज चीन जो कुछ भी तैवान के साथ कर रहा है, वैसा ही दुनिया के अन्य किसी भी देश के साथ हो सकता है। चीन के विस्तारवाद से अन्य देशों को भी उतना ही खतरा है’, ऐसी चेतावनी तैवान की राष्ट्राध्यक्ष ‘त्साई इंग-वेन’ ने दी है। उसीके साथ ही चीन को रोकने के लिए अन्य देश तैवान के साथ एकजुट हो जाएं, ऐसी पुकार तैवान की राष्ट्राध्यक्ष ने दी है।

आजादी की सुरक्षा के लिए चीन के सामने खड़े रहने का समय आ गया है’, ऐसी घोषणा राष्ट्राध्यक्ष ‘त्साई’ ने एक अंतर्राष्ट्रीय वृत्तसंस्था को दिए हुए साक्षात्कार में की है। ‘तैवान की तरह चीन की तरफ से अन्य देशों का लोकतंत्र, स्वातंत्र्य और व्यापारी स्वातंत्र्य अबाधित रह नहीं सकता है। लेकिन अगर समान लोकतंत्र के मूल्यों को संभालकर रखने वाले सभी देश लोकतंत्र और स्वातंत्र्य के बचाव के लिए एक हुए तो चीन का बढ़ता एकाधिकार तंत्र रोका जा सकता है’, ऐसा भरोसा त्साई ने जताया है।

इसके अलावा सोमवार को राजधानी तैपेई में आयोजित ‘ग्लोबल हक सॉलिडेटरी ऑफ़ डेमोक्रेसी’ इस परिसंवाद में बोलते समय भी त्साई ने चीन के खिलाफ अन्य देशों को एक होने का आवाहन किया। 

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