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भक्तमाता राधाजी भक्त का जीवन मंगलमय बनाती हैं (Bhaktamata Radhaji makes devotees life auspicious) - Aniruddha Bapu Hindi Discourse 05 May 2005

Bhaktamata Radhaji makes devotees life auspicious – जीवन मंगलमय बनाना हो तो भगवान के साथ कभी भी अहंकार से पेश नहीं आना चाहिए । राधाजी स्वयं हंकाररूपा हैं, अहंकार कभी राधाजी में होता ही नहीं है । भक्तमाता राधाजी जिसके जीवन में सक्रिय रहती हैं, उसके जीवन में अहंकार का अपने आप ही लोप हो जाता है । राधाजी की कृपा से श्रद्धावान का जीवन मंगल कैसे होता है, यह

अहंकार से पीछा छुडाने का सरल उपाय (An easy way to get rid of the ego) - Aniruddha Bapu Hindi Discourse 05 May 2005

अहंकार (ego) यह इस विश्व की सब से अमंगल बात है । ’मैंने क्या क्या किया’ यह भगवान से कभी मत कहना; ’भगवान ने मेरे लिए क्या क्या किया’ इसे दोहराते रहना । भगवान की भक्ति करते रहने से भगवान मेरे जीवन का केन्द्रस्थान बन जाते हैं, कर्ता बन जाते हैं और अहंकार अपने आप ही छूट जाता है । अहंकार से पीछा छुडाने का सरल उपाय परम पूज्य सद्गुरु श्रीअनिरुद्ध

बुधकौशिक ऋषिंचा महिमा (Greatness of Budhakaushik Rishi) - Aniruddha Bapu Marathi Discourse 14 october 2004

बुधकौशिक ऋषि (Budhakaushik Rishi) हे  रामरक्षेचे विरचनाकार आहेत. त्यांच्याकडे असणारे रामनाम, रामाचे प्रेम, शुध्दता, पावित्र्य आणि भक्तिचे ज्ञान बरसणारे जणू ते मेघच आहेत. बुधकौशिक ऋषिंनी अतुलनीय तपश्चर्या करुन जो भक्तिचा खजिना रामाकडून प्राप्त केला, तो रामरक्षेद्वारे त्यांनी सर्वांसाठी खुला केला, याबाबत परम पूज्य सद्‌गुरु श्री अनिरुद्ध बापुंनी गुरूवार दिनांक १४ ऑक्टोबर २००४ रोजीच्या प्रवचनात मार्गदर्शन केले, जे आपण या व्हिडियोत पाहू शकता. (संदर्भ: सद्गुरु श्रीअनिरुद्ध बापुंचे रामरक्षेवरील पहिले प्रवचन) ॥

रामरक्षारूपी खजिना (Ram-Raksha Stotra - The Treasure) - Aniruddha Bapu Marathi Discourse 14 october 2004

बुधकौशिक ऋषिंनी रामरक्षा (Ram-Raksha) स्तोत्राची विरचना केली. बुधकौशिक ऋषिंकडे असणारा हा रामरक्षारूपी खजिना त्यांनी खुला केला आहे. बुधकौशिक या नामाचा अर्थ सांगून परम पूज्य सद्गुरु श्रीअनिरुद्ध बापुंनी याबाबत गुरूवार दिनांक १४ ऑक्टोबर २००४ रोजीच्या प्रवचनात मार्गदर्शन केले, जे आपण या व्हिडियोत पाहू शकता.  (संदर्भ: सद्गुरु श्रीअनिरुद्ध बापुंचे रामरक्षेवरील पहिले प्रवचन) ॥ हरि ॐ ॥ ॥ श्रीराम ॥ ॥ अंबज्ञ ॥

रामरक्षा-स्तोत्रमन्त्र (Ram-Raksha-Stotra-Mantra) - Aniruddha Bapu Marathi Discourse 14 october 2004

रामरक्षेवरील प्रवचनांमध्ये श्रीअनिरुद्ध बापुंनी सहजसोप्या भाषेत रामरक्षेची गरिमा सांगितली. रामरक्षेच्या सुरुवातीसच ’अस्य श्री रामरक्षा स्तोत्रमन्त्रस्य’ हे शब्द येतात. बुधकौशिक ऋषिंद्वारे विरचित अशा या रामरक्षेला `स्तोत्रमन्त्र’  (Ram-Raksha-Stotra-Mantra) असे का म्हणतात, याबाबत परम पूज्य सद्‌गुरु श्री अनिरुद्ध बापुंनी गुरूवार दिनांक १४ ऑक्टोबर २००४ रोजीच्या प्रवचनात मार्गदर्शन केले, जे आपण या व्हिडियोत पाहू शकता. (संदर्भ: सद्गुरु श्रीअनिरुद्ध बापुंचे रामरक्षेवरील पहिले प्रवचन) ॥ हरि ॐ ॥ ॥ श्रीराम ॥ ॥ अंबज्ञ ॥

सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने। (SahasraNaam Tattulyam RamNaam Varaanane) - Aniruddha Bapu Marathi Discourse 14 October 2004

‘सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने’ (SahasraNaam Tattulyam RamNaam Varaanane) या शब्दांमध्ये रामरक्षा स्तोत्रामध्ये रामनामाची महती शिवाने पार्वतीला सांगितली आहे. रामनामाने नष्ट झालं नाही असं पाप नाही आणि रामनामाने उद्धरला नाही असा पापी झाला नाही, होणार नाही. परम पूज्य सद्‌गुरु श्री अनिरुद्ध बापुंनी गुरूवार दिनांक १४ ऑक्टोबर २००४ रोजीच्या प्रवचनात रामनामाचा महिमा सोप्या शब्दांत सांगितला, जो आपण या व्हिडियोत पाहू शकता. ॥ हरि ॐ ॥ ॥ श्रीराम ॥ ॥ अंबज्ञ ॥

ॐ रां राधायै राधिकायै रमादेव्यै नम: ।(Om Ram Radhayai Radhikayai Ramdevyai Namah) - Aniruddha Bapu Hindi Pravachan

महाभाव-स्वरूपा राधाजी के सहस्र नामों में से प्रत्येक नाम की महिमा स्पष्ट करते हुए सद्गुरु श्रीअनिरुद्ध बापु अपने प्रत्येक प्रवचन में ’भक्तिमार्ग पर भक्तमाता राधाजी अपने बच्चों के लिए यानी श्रद्धावानों के लिए किस तरह सक्रिय रहती हैं’, यह भी विशद करते थे । ’ॐ रां राधायै राधिकायै रमादेव्यै नम:’ इस मन्त्र का जप ’राधासहस्रनाम’ पर आधारित प्रत्येक हिन्दी प्रवचन के बाद सद्गुरु श्रीअनिरुद्ध बापु स्वयं करते थे और श्रद्धावान

समर्पण ही आराधना की आत्मा है (Surrendering to The God is the Core of Worship) - Aniruddha Bapu Hindi Discourse 04 March 2004

मैं भगवान का हूँ, मेरे पास जो कुछ भी है वह भगवान का दिया हुआ ही है, मैं जो भक्ति कर रहा हूँ वह भगवान की कृपा से भगवान को प्राप्त करने के लिए ही कर रहा हूँ, इस समर्पित भाव के साथ श्रद्धावान को भक्तिपथ पर चलना चाहिए । केवल काम्यभक्ति न करते हुए समर्पण भाव से भगवान की आराधना करना श्रेयस्कर है, समर्पण ही आराधना की आत्मा है(Surrendering

एकविधा भक्ति (Ekavidha Bhakti) - Aniruddha Bapu Hindi Discourse 04 March 2004

जीवन में भगवान को प्राथमिकता देनी चाहिए । मैं भगवान के घर में रहता हूँ, यह भाव रहना चाहिए l जो मेरा है वह भगवान ने ही मुझे दिया हुआ है, इसलिए मेरा जो कुछ भी है वह भगवान का है, मैं भगवान का हूँ, इस भाव के साथ श्रद्धावान के द्वारा की गयी भगवद्‍भक्ति को एकविधा भक्ति (Ekavidha Bhakti) कहते हैं, यह बात सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापु ने अपने दि.

एकविध ध्यान (Ekavidha Dhyaan) - Aniruddha Bapu Hindi Discourse 04 March 2004

मानव भुक्ति से लेकर मुक्ति तक कुछ भी यदि भगवान से प्राप्त करना चाहता है, तो उसे भगवान का एकविध ध्यान (Ekavidha Dhyaan) करना चाहिए । ” भगवान, तुम्हारे सिवा मेरा कोई नहीं है, मैं जो कुछ भी कर रहा हूँ तुम्हारे ही आधार से कर रहा हूँ, तुम्हें पाने के लिए कर रहा हूँ ” इस भाव के साथ श्रद्धावान के द्वारा भगवान का किया गया ध्यान ही एकविध ध्यान