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ॐ   रामवरदायिनी श्रीमहिषासुरमर्दिन्यै नम:। इस महिषासुरमर्दिनी ने ही, इस चण्डिका ने ही, इस दुर्गा ने ही सब कुछ उत्पन्न किया। प्रथम उत्पन्न होनेवाली या सर्वप्रथम अभिव्यक्त होनेवाली वह एक ही है। फिर वह उन तीन पुत्रों को जन्म देती है और फिर सबकुछ शुरू होता है । हमने बहुत बार देखा, हमें यह भी समझ में आया की यह एकमात्र ऐसी है, जिसका प्राथमिक नाम, पहला नाम ही उसका

श्रीसाईसच्चरित पंचशील परिक्षा - पारितोषिक वितरण समारोह (Shree Saisatcharit Panchshil Exam)

गत इतवार अनेक श्रध्दावानों को एक बहुत ही अनोखे समारोह में शामिल होने अवसर मिला। मैं भी उस में शामिल था। यह समारोह था श्रीसाईसच्चरित पर आधारित पंचशील परिक्षा के पारितोषिक वितरण का जिस में श्रीसाईसच्चरित पंचशील परिक्षा (Shree Saisatcharit Panchshil Exam) में Distinction प्राप्त एवं Rank Holder परिक्षार्थियों को पारितोषिक देकर सम्मानित किया गया। इस समारोह में इन परिक्षार्थियों का अभिनंदन करने हेतु श्रीहरिगुरुग्राम में ३००० से अधिक श्रध्दावान

कहे साई वही हुआ धन्य धन्य| हुआ जो मेरे चरणों में अनन्य || (Sai the Guiding Spirit Saisatcharit)

पिछले ड़ेढ दो साल से सद्गुरु श्रीअनिरुद्धजी ‘श्रीसाईसच्चरित’ (Shree Saisatcharit) पर हिन्दी में प्रवचन कर रहे हैं। इससे पहले बापु ने श्रीसाईसच्चरित पर आधारित ‘पंचशील परीक्षा’ (Panchshil Exam) की शुरुआत की और उन परीक्षाओं के प्रॅक्टिकल्स के लेक्चर्स भी लिये। उस समय हम सब को श्रीसाईसच्चरित नये से समझ में आया। 11 फरवरी 1999 में बापु ने पंचशील परीक्षा क्यों देनी चाहिए, यह हमें समझाया। बापु कहते हैं, ‘‘हम सबको

ऑनलाईन डोनेशन अभी सभी जगह उपलब्ध

इन दिनों श्रीवर्धमान व्रताधिराज चल रहा है। व्रत के दौरान श्रद्धावान तीर्थ स्थलों पर दर्शन / उपासना हेतु जाते हैं। साथ ही साथ सभी उपासना केन्द्रों पर जानेवाले तथा न जा पानेवाले श्रद्धावान गुरुपूर्णिमा अथवा अनिरुद्ध पूर्णिमा के समय तो सद्गुरु के दर्शन के लिए आते ही हैं। वे श्रद्धावान उन उत्सवों के समय तहेदिल से बापूजी को कुछ न कुछ देना चाहते हैं। मगर सद्गुरु बापू तो व्यक्तिगत तौर पर कभी भी किसी

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आज बड़े अरसे बाद हम आपस में संवाद कर रहे हैं। पिछले कई दिनों से अपने ही दो प्रोजेक्ट्स में अर्थात जेरियाट्रिक इंस्टिट्यूट तथा श्री अनिरुद्ध धाम के कार्यों में व्यस्त था, तत्पश्चात हर वर्ष की भांति मैं बापूजी के साथ गाणगापुर गया था।  आज नववर्ष की पूर्वसंध्या पर मैं आपको अर्थात बापूजी के सभी श्रद्धावान मित्रों को तथ उनके श्रद्धावान परिवारजनों को नववर्ष की अनिरुद्ध शुभकामनाएं देना चाहता हूँ। आनेवाला

परमपूज्य सद्गुरु श्री अनिरुद्धजी द्वारा श्रद्धावानों के लिए तय किए हुए मानदण्ड

३० अगस्त २००९ के रोज़ दैनिक प्रत्यक्ष में छपे हुए अग्रलेख में परमपूज्य सद्गुरु बापूजी ने उन्हें ‘क्या पसंद है और क्या पसंद नहीं है’ यह स्पष्टरूप में कहा था। इस अग्रलेख के जरिए बापूजी ने ९ मानदण्ड दिए थे जो संस्था से जुड़े हुए प्रत्येक कार्यकर्ता के लिए संचालित किए जाते हैं। संस्था के कार्य में सेवा करनेवाले प्रत्येक कार्यकर्ता के लिए यह मानदण्ड हमेशा लागू रहेंगे। इन मानदण्डों के आधार पर प्रत्येक श्रद्धावान को किसी भी अधिकारपद पर

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भारत सर्वाधिक युवाओं का देश बनता जा है। इसी मात्रा में, इस युवा देश में युवाओं के सर्वाधिक पसंदीदा माध्यमवाले सोशल मीडिया का प्रभाव बहुत अधिक मात्रा में बढ़ता जा रहा है। देश में नेटीजन्स की संख्या करोड़ों में बढ़ रही है, ऐसे में कोई भी सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव को रोक नहीं सकेगा।  टेक्नोलॉजी के विकास के साथ साथ अधिकाधिक व्यापक होता हुआ यह माध्यम आज विश्व पर अपना अधिपत्य जमाए हुए है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र

श्रीश्वासम् (Shreeshwasam)

गुरुवार,दिनांक 07-11-2013 के प्रवचन में सद्गुरु श्रीअनिरुद्धजी ने ‘श्रीश्वासम्’ उत्सव के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण जानकारी दी। जनवरी 2014 में ‘श्रीश्वासम्’ उत्सव मनाया जायेगा। ‘श्रीश्वासम्’ का मानवी जीवन में रहनेवाला महत्त्व भी बापु ने प्रवचन में बताया। सर्वप्रथम “उत्साह” के संदर्भ में बापु ने कहा, “मानव के प्रत्येक कार्य की, ध्येय की पूर्तता के लिए उत्साह का होना सबसे महत्त्वपूर्ण है। उत्साह मनुष्य के जीवन को गति देते रहता है। किसीके

सप्तमातृका पूजन ( Saptamatruka pujan)

    गुरुवार, दि. २४ अक्तूबर २०१३ के दिन परमपूज्य बापूजी ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय पर प्रवचन किया। प्रत्येक माता-पिता की इच्छा होती है कि अपने बच्चे का जीवन स्वस्थ हो और उसे दीर्घ आयु मिले। इस दृष्टिकोन से सदियों से चली आ रही परंपरा अनुसार घर में बच्चे के जन्म के बाद षष्ठी पूजन किया जाता है।  मगर समय के चलते गलत रूढ़ियाँ पड़ती गईं जिनकी वजह से इस