भक्ति हमारा शुद्ध भाव बढाती है (Bhakti increases our shuddha bhaav) - Aniruddha Bapu‬

परमपूज्य सद्‍गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने ५ फरवरी २००४ के हिंदी प्रवचन में ‘भक्ति हमारा शुद्ध भाव बढाती है’ इस बारे में बताया।

 

परमपूज्य सद्‍गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने ५ फरवरी २०१५ के हिंदी प्रवचन में ‘भक्ति हमारा शुद्ध भाव बढाती है’ इस बारे में बताया।
भक्ति हमारा शुद्ध भाव बढाती है (Bhakti increases our shuddha bhaav) - Aniruddha Bapu‬
Hindi‬ Discourse 05 Feb 2004

 

हिरन और शेर का उदाहरण देते हुए अनिरुद्ध बापू ने भय और निर्भयता ये शुद्धता और अशुद्धता से ही आते हैं, यह समझाया। हिरन के पास भय है और यह भय (डर, Fear) यह सब से बुरी अशुद्धता है। यहॉ अशुद्धता के बारे में नही सोच रहे हैं। बल्कि मूल सामर्थ्य, मूल रूप के बारे में सोचना चाहिए। जितने हम शुद्ध हैं उतने ही हम निर्भय हैं।

जितने हम हमारी अपनी जिंदगी में ज्यादा शुद्ध बनने की कोशिश करेंगे, उतना ही वह हमारे मन, शरीर, प्रारब्ध के सेहत के लिए अच्छा होगा। इसके लिए एक ही मार्ग है - आराधना मार्ग। भगवान की आराधना शुद्ध भाव से करनी चाहिए। क्योंकि राधा, जो आराधना शक्ति है, वह शुद्ध भाव से ही होगी। जब तक हम किसी भी भगवान की आराधना शुद्ध भाव से नहीं करते, तब तक वह आराधना आराधना ही नहीं है। वो सिर्फ राधना होती है, लेकिन आराधना होनी चाहिए।  

इस कलियुग में तपश्चर्या की कोई आवश्यकता नहीं है तो आवश्यकता है सच्ची भक्ती की। हरिगुरुस्मरण, हरिकथास्मरण, हरिनामसंकीर्तन इन्हीं से सारे पापों का नाश हो सकता है। लेकिन कब ?जब मेरा थोडा तो शुद्ध भाव है। यह भक्ति हमारा शुद्ध भाव बढाती है। जितनी शुद्धता बढती है उतना ही मेरा भय कम होता है, उतनाही मेरा सामर्थ्य बढता है। जितना सामर्थ्य ज्यादा उतनी अडचनें कम।

इसीलिए कलियुग में हर व्यक्ति के लिए इस युगल-सरकार की बहुत आवश्यकता है। चाहे किसी भी रूप को देखें लेकिन राम नाम और राधा नाम के लिए कोई विधिनिषेध नहीं है, इसके बारे में हमारे सद्गुरु अनिरुद्ध बापू ने प्रवचन में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।

॥ हरि ॐ ॥ ॥ श्रीराम ॥ ॥ अंबज्ञ ॥