“अल्फा टू ओमेगा” न्यूज़लेटर – जून २०१८

  Shree Aniruddha Upasana Foundation  

 

'अल्फा टू ओमेगा' न्युजलेटर - हिन्दी संस्करण

जून २०१८
 

संपादकीय,

हरि ॐ श्रद्धावान सिंह/वीरा,

मानसून की अच्छी शुरुआत हमारे जीवन में ढेर सारी खुशियाँ लाती है, जबकि मानसून देर से आने से सभी लोग चिंतित हो जाते है। आइये, हम सब मिलकर प्रार्थना करें कि हमारे देश में इस मानसून में अच्छी बारिश हो। क्योंकि एक ज़िम्मेदार नागरिक होने के कारण हमें कम वर्षा से होने वाले दुष्प्रभावों से बचने के लिए उचित कदम उठाने की आवश्यकता है। इन समस्याओं से निपटने के लिए सदगुरु श्री अनिरुद्ध हमें विभिन्न उपक्रमों के ज़रिये प्रेरणादायक मार्गदर्शन कर रहे है।

- समिरसिंह दत्तोपाध्ये
 

विषय-सूची

  • संपादकीय
  • श्री वनदुर्गा योजना
  • अनिरुद्ध आपदा प्रबंधन अकादमी
  • यशप्राप्त श्रद्धावान

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अल्फा टू ओमेगा न्युजलेटर - मासिक संस्करण

वर्ष ३ | अंक ७ | जून २०१८ | १

 

अल्फा टू ओमेगा न्युजलेटर - मासिक संस्करण


श्री वनदुर्गा योजना

यह एक ऐसी योजना है जिसके अंतर्गत बहुत बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण किया जाता है। निर्वनीकरण (वनों की कटाई) को रोकना, मिट्टी के कटाव को रोकना, मरुस्थलीकरण को रोकना ये सभी कार्य ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए बहुत प्रभावशाली साबित होते हैं। वृक्ष ऑक्सिजन गैस को उत्सर्जित करते हैं, जो हमारी महत्त्वपूर्ण मूलभूत ज़रूरत है। साथ ही, वृक्ष उस कार्बन डाई ऑक्साईड को ग्रहण कर लेते हैं, जो कि ग्लोबल वॉर्मिंग पैदा करती है। अर्थात् वृक्ष हमें वह देते हैं, जो हमारी ज़रूरत है; और वृक्ष वह ग्रहण करते हैं, जो हमारे लिए हानिकारक है। इस प्रकार वृक्ष मनुष्य के जीवन की मूलभूत अहम ज़रूरतों को पूरा करते हैं। ‘श्री वनदुर्गा योजना’ एक ऐसी ही पहल है, जिससे हमें पर्यावरण में संतुलन बनाये रखने में मदद मिलती है।

पर्यावरण में हो रहा ऱ्हास मानव-जीवन के लिए बहुत बड़ा खतरा बनता रहा है। पर्यावरण संतुलन बनाये रखने के उद्देश्य से ‘श्री अनिरुद्ध उपासना फाउंडेशन’ और ‘अनिरुद्धाज् ऍकॅडमी ऑफ डिझास्टर मॅनेजमेंट’ पूरे महाराष्ट्र के कई भागों में सक्रिय रूप से वृक्षारोपण ड्राइव्ज् आयोजित कर रहे हैं।

कुछ महीने पहले सद्गुरु अनिरुद्ध ने ‘श्री वनदुर्गा योजना’ शुरू की, जिसके अंतर्गत वृक्षारोपण पर ज़ोर दिया गया है। वृक्षों की लगातार कटाई के परिणामस्वरुप एक अत्यंत विपरित पर्यावरण का निर्माण होता जा रहा है। ज़ाहिर है, ‘श्री वनदुर्गा योजना’ एक ऐसी पहल है, जो अपने पर्यावरण को संतुलित बनाने में हमारी मदद करेगी।

पर्यावरण की सुंदरता को बढ़ाने के अलावा, ग्लोबल वार्मिंग को कम करके जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने में भी वृक्ष मदद करते हैं। यह अभियान हमारे पर्यावरण का पुनर्विकास होने में सहायकारी साबित होगा ही; साथ ही, सद्गुरु अनिरुद्ध ने आध्यात्मिकता के महत्व पर भी ज़ोर देकर कहा कि इस उपक्रम के तहत कार्य करते समय मंत्रो का जाप करें (माता जगदम्बा को याद करें), जिससे कि इसमें बहुत ही सकारात्मकता आयेगी।

इस पहल को इन आसान वैज्ञानिक चरणों से पूरा किया जा सकता है।

'हम जैसा बोते है, वैसा ही हम पाते है' यह सिद्धांत हम जानते ही हैं। उसीके अनुसार अहम बात यह है कि फल खाने के बाद हमें उसके बीजों का वृक्षारोपण के लिए उपयोग करना है। फल खाने के बाद उसका बीज फेंक देने के बजाय, उसे धोकर सूखाकर रखा जाता है, ताकि वह अंकुरित होने लायक है या नहीं, यह जान सकें। चीकू या आम जैसे किसी भी फल के बीज, यहाँ तक कि बादाम, काजू जैसे ड्राई-फ्रुट्स के बीज भी इस उद्देश्य के लिए संग्रहित कर उपयोग में लाये जा सकते हैं।

निम्नलिखित वीडियो को और जानने के लिए

https://www.youtube.com/embed/ AF9PiXJQJpE

या

संपर्क करें - 022-26057054/56

सूखे हुए इन बीजों को पानी से भरे कंटेनर में रखें। यदि बीज पानी में नीचे तक डूब जाते हैं, तो ये अंकुरणक्षम हैं। बाक़ी के ऊपर तैरनेवाले बीजों को फेंक दें। वृक्षारोपण का काम मई से जून के महीने की कालावधि में किया जाना चाहिए, ताकि बीजों को सूरज की रोशनी तथा बारिश का पानी पर्याप्त मात्रा में मिल सकें और अंकुरण की प्रक्रिया जल्द ही हों।

 

अल्फा टू ओमेगा न्युजलेटर - मासिक संस्करण

वर्ष ३ | अंक ७ | जून २०१८ | २

 

अल्फा टू ओमेगा न्युजलेटर - मासिक संस्करण


यह गतिविधि व्यक्तिगत स्तर पर भी कर सकते हैं और स्थानीय उपासना केंद्र सामूहिक प्रयासों से भी कर सकते हैं। इस गतिविधि में शामिल होना चाहनेवाला कोई भी व्यक्ति स्थानीय उपासना केंद्रो से विवरण प्राप्त कर सकता है। बापू ने हमेशा सामूहिक उपासना करने के महत्त्व पर ज़ोर दिया है और यह भी कहा है की इस गतिविधि में भाग लेना एक उपासना ही है।

प्रत्येक बीज को बोते समय ‘ॐ नमश्चण्डिकायै' और ‘ॐ श्री वनदुर्गायै नमः’ इस मंत्र का पठन करते रहना आवश्यक है। ‘श्री वनदुर्गा माता’ ‘माँ दुर्गा’ के ही अवतारों में से एक है। जिन्हे प्रकृति और वन के सिलसिले में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है। इसलिए पौधें लगाते समय उसे याद करना पवित्र माना जाता है।

माह के दौरान

२०१८ के जून माह के दौरान अनिरुद्ध अकादमी एवं आपदा प्रबंधन (एएडीएम) की गतिविधियाँ

इसमें सात बेसिक ट्रेनिंग कोर्स आयोजित किए गए, जिसमें उत्साही प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया।

• खारीगांव उपासना केंद्र, गणेश विद्यालय, खारीगांव, ठाणे में दिनांक ०७.०५.२०१८ से १३.०५.२०१८ के बीच आयोजित कोर्स में कुल १३ श्रद्धावान प्रतिभागियों ने भाग लिया।

• आलंदी उपासना केंद्र, पुणे ने आलंदी के आराधना होटल के पास के मोरया मंगल कार्यालय में दिनांक १४.०५.२०१८ से २०.०५.२०१८ के बीच आयोजित किये कोर्स में कुल २७ श्रद्धावान प्रतिभागियों ने भाग लिया।

• कर्वे नगर उपासना केंद्र, सांगली ने दिनांक १४.०५.२०१८ से २०.०५.२०१८ के बीच आयोजित किये कोर्स में कुल ४८ श्रद्धावान प्रतिभागियों ने भाग लिया।

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• मालेगांव उपासना केंद्र ने श्री कृष्णा मंदिर (कलेक्टर झोन, निसर्ग होटल के पीछे, मालेगांव) में दिनांक १८.०५.२०१८ से २०.०५.२०१८ के बीच आयोजित किये कोर्स में कुल १७ श्रद्धावान प्रतिभागियों ने भाग लिया।

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• एएडीएम कार्यालय, मुंबई में दिनांक २१.०५.२०१८ से २७.०५.२०१८ के दौरान आयोजित किये गये कोर्स में कुल ११ श्रद्धावान प्रतिभागियों ने भाग लिया।

• चंदेराई उपासना केंद्र ने चंदेराई, रत्नागिरी के मराठी स्कूल में दिनांक १८.०५.२०१८ से २०.०५.२०१८ के दौरान आयोजित किये कोर्स में कुल १० श्रद्धावान प्रतिभागियों ने भाग लिया।

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अल्फा टू ओमेगा न्युजलेटर - मासिक संस्करण

वर्ष ३ | अंक ७ | जून २०१८ | ३

 
 

अल्फा टू ओमेगा न्युजलेटर - मासिक संस्करण


जगताप बस्ती उपासना केंद्र (प्रायोगिक), पुणे में दिनांक २८.०५.२०१८ से ०३.०६.२०१८ के दौरान आयोजित किये गये कोर्स में कुल ३४ श्रद्धावान प्रतिभागियों ने भाग लिया।

एएडीएम वर्मिकल्चर प्रोजेक्ट :

‘अनिरुद्धाज् ऍकॅडमी ऑफ डिझास्टर मॅनेजमेंट’ (एएडीएम) ने दिनांक १२ मई २०१८ को मरोल पुलिस प्रशिक्षण केंद्र प्रांगण में वर्मिकल्चर (केंचुआ खाद)योजना का प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन में पुरे महाराष्ट्र भर से १० पुलिस प्रशिक्षण केंद्रो के ३० से ३५ सदस्यों ने भाग लिया।

Shree Aniruddha Upasana Foundation

रसायनिक खाद, कचरे का क़लत व्यवस्थापन और मिट्टी की गुणवत्ता में हो रही गिरावट इनसे जो मूक आपदाएँ (साईलेंट डिझास्टर्स) बनती हैं, उनका मुक़ाबला यह वर्मिकल्चर परियोजना किस तरह कर सकती है, इस बारे में इस प्रदर्शन में बहुत ही गहराई से जानकारी दी गयी।

घरेलु तौर पर केंचुआ खाद प्लास्टिक की बाल्टी या ड्रम में कैसे बनाया जा सकता है, इसका प्रदर्शन दिखाने के साथ यह कार्यक्रम संपन्न हुआ।

यशप्राप्त श्रद्धावान

प्राचीवीरा कुर्‍हाडे (महेंद्रसिंह कुर्‍हाडे की सुकन्या) ने ४ विभिन्न प्रतियोगिताओं में प्रथम क्रमांक और पुणे विद्याभवन, घाटकोपर इस स्कूल की एक और प्रतियोगिता में द्वितीय क्रमांक प्राप्त करने पर उसका हार्दिक अभिनंदन!

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