सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने २० अप्रैल २०१७ के प्रवचन में ‘अग्नि के महत्त्व(The Importance of Agni)’ के बारे में बताया।
हम लोगों ने, जिन लोगों ने ग्रंथ पढ़े हुए हैं, जानते हैं कि तीन प्रकार के अग्नि हमारे शरीर में, देह में होते हैं। कौन से, कौन से? जाठराग्नि, प्राणाग्नि और ज्ञानाग्नि। जाठराग्नि यानी सिर्फ जठर में यानी पेट में रहनेवाला अग्नि नहीं, जिसे हमें भूख लगती हैं। लेकिन हमारी जो भी भूख हैं, ये जो भी भूख हैं हमारी यानी उसमें हमारी प्यास भी आ गयी, पैसे की भूख है, सेक्स की भूख है, सत्ता की भूख है, नाम की भूख है, प्रशंसा की भूख है जो भी, आधार की भूख है ये सारे जो भूख हैं ये भूख सारी भूख जो हैं इसका कन्ट्रोलर कौन है? तो ये जाठराग्नि हैं। इसका जो स्थूल स्वरूप हम लोग देखते हैं, वो हमारे स्टमक में यानी हमारे जठर में, यानी हमारे पेट में, हम जहां खाते हैं उदर में, जो हमारा पचन करनेवाला अग्नि हैं वो जाठराग्नि हैं।
दूसरा अग्नि है प्राणाग्नि यानी स्वयं प्राण, प्राण का प्रभाव, प्राण का कार्य ये प्राणाग्नि हैं। प्राण के बिना कुछ हो ही नहीं सकता। जब आदमी मृत हो जाता है तो ये प्राणाग्नि बंद हो जाता हैं, राईट। प्राणाग्नि निकल नहीं जाता, प्राणाग्नि बंद हो जाता हैं, ओ.के, पंचप्राण निकल जाते हैं, आत्मा के साथ-साथ। यानी शरीर को छोड़ता कौन है ऍकच्युअली? वो आत्मा छोड़ता है, कैसे? तो मन के साथ और पंचप्राणों के साथ। इसे हम लोग क्या कहते हैं? लिंगदेह, लिंगदेह कि आकृति कितनी होती है? हर एक का अपना जो अंगुष्ठ है, राईट हॅन्ड का उसके साईज़ का उसका लिंगदेह होता है। लिंगदेह उसे छोड़कर जाता है, कहाँ जाता है? अगर आप श्रद्धावान हैं तो आपको स्वर्गनरक की फिकर करने की कोई आवश्यकता नहीं आप कहाँ जायेंगे? भर्गलोक में जायेंगे, ओ.के। लेकिन जो श्रद्धावान नहीं हैं उनके लिये स्वर्ग या नरक उनके-उनके कर्मों के अनुसार डिसाईड़ हो जायेगा।
तो बापू, मेरे को बहोत बार लोग पूछते हैं कि बापू, दो श्रद्धावान हैं एक बहोत अच्छा है और एक थोड़ासा बूरा है तो क्या दोनों को भी भर्गलोक में समान संधी? हां, संधी समान, लेकिन वहां भी जो बुरा है, उसकी बुराई दूर करने के लिये उसे कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी। नरक में सज़ा होती है, यहां सज़ा नहीं होती यहां तुम्हें तुमसे, आप लोगोमें से जो भी जायेगा ऊपर और गलत काम किये है उसे सिख दी जायेगी, सिखाया जायेगा, उसे मेहनत करवाई जायेगी और उसके बदले में उसे फल मिलेगा, राईट ये फरक है। अभी आपको सज़ा चाहिये, या मेहनत चाहिये ये खोज़ लीजिये, राईट। दूसरे के घर में पैर में शृंखला बांधकर, गुलाम जैसे रहकर, राईट, खाना खाने पर, फटे कपड़े मिलने पर, राईट, मार खाते-खाते जि़ंदगी कटती है उसे क्या कहते हैं? गुलामगिरी कहते हैं। ये जो खुद अपने माँ-बाप की सेवा करता है, वो क्या माँबाप का गुलाम होता हैं? नहीं। क्या पुंडलिक माँ-बाप का गुलाम था? नहीं। वो कड़ी मेहनत कर रहा था पिता की। श्रावण बाळ की कथा हम लोग सुनते हैं, राईट दशरथ के चरित्र में, रामायण में, क्या श्रावणबाळ अपने माँबाप का गुलाम था? नहीं। तो ये जो डिफरन्स है, ये जो फरक है, ये जो अंतर है, यही वो नरक में और भर्गलोक के विद्यालय में।
भर्गलोक में हर एक आत्मा को उस सर्वोत्तम विद्यालय में ही दाखिल होना पड़ता हैं और उसके, उसकी जो हैसियत है उसके अनुसार, उसकी उसकी जो, उसका जो अधिकार है, उसके नुसार उसे उस-उस कक्षा में, उस-उस सबजेक्ट में स्टडी करना पड़ता है, अभ्यास करना पड़ता है, बस। लेकिन ये कभी होता है? जब हम श्रद्धावान है तभी। अगर हम श्रद्धावान नहीं हैं तो ये चान्स मिलने के लिये भर्गलोक में जाने का बहोत सारा पुण्य कमाना पड़ता है, ओ.के।
‘अग्नि के महत्त्व’ के इस बारे में हमारे सद्गुरु श्री अनिरुद्ध ने प्रवचन में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।
ll हरि: ॐ ll ll श्रीराम ll ll अंबज्ञ ll