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साईबाबा के नौंवे वचन का महत्व (The importance of the nineth Promise of Saibaba) - Aniruddha Bapu‬

साईबाबा के नौंवे वचन का महत्व (The importance of the nineth Promise of Saibaba) – Aniruddha Bapu‬ परमपूज्य सद्‍गुरू श्री अनिरुद्ध बापू ने अपने ०८ जनवरी २०१५ के हिंदी प्रवचन में ‘साईबाबा के वचन का महत्व’ इस बारे में बताया। साईबाबा बोल रहे हैं कि ‘जान लो यहां है सहायता सभी के लिए, मांगे जो जो मिले वह वह उसे।’ साईबाबा से बताओ संकट आया है उससे मुझे बचाओ। संकट

श्रीशब्दध्यानयोग - ०१

सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी ने १५ अक्टूबर २०१५ के पितृवचनम् में ‘श्रीशब्दध्यानयोग- ०१’ इस बारे में बताया। तो हमारा मूल निवास कहाँ था, हम लोग नहीं जान सकते, ओ.के., ये एक बात है। दूसरी बात क्या होती है, बहुत बार हम लोगों का कुलदैवत कौनसा है, यह भी हमें मालूम नहीं होता। हमारा ग्रामदैवत कौन सा है, हमें मालूम नहीं रहता। ये वास्तुदेवता भी होती है डेफिनेटली। ये सब क्या है?

जिज्ञासा यह भक्ति का पहला स्वरूप

सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी ने ०७ अप्रैल २००५ के पितृवचनम् में ‘जिज्ञासा यह भक्ति का पहला स्वरूप है’ इस बारे में बताया। यह जिज्ञासा जो है, यही भक्ति का पहला स्वरूप है। भक्ति का पहला स्वरूप यानी राधाजी का पहला स्वरूप हर मानव के पास जिज्ञासा के रूप में रहता है। जिज्ञासा, भगवान के प्रति जिज्ञासा नहीं, इस विश्व के प्रति जिज्ञासा। यह सूरज कैसा है? यह पृथ्वी इतनी बड़ी है,

अहंकार हमारा सबसे बड़ा शत्रु है

सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी ने ०५ मई २००५ के पितृवचनम् में ‘अहंकार हमारा सबसे बड़ा शत्रु है’ इस बारे में बताया।   ये महाप्रज्ञा है और दूसरा है महाप्राण, जो उनका पुत्र है, हनुमानजी, वो भी सर्वमंगल है, क्योंकि उनका नाम ही हनुमंत है यानी ‘हं’कार है। ‘अहं’ में जो ‘अ’ है उसे निकाल दो तो हंकार हो गया। मैं बार-बार कहता हूँ अहंकार है यानी हनुमानजी नहीं हैं, हंकार नहीं

'अभिसंवाहन’, Thursday Pravachan

सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी ने १५ अप्रैल २०१० के पितृवचनम् में ‘अभिसंवाहन’ शब्द का अर्थ’ इस बारे में बताया। अभी चरणसंवाहन करना है, अभी क्या कहते हैं, मस्तक, ‘करावे मस्तके अभिवंदन। तैसेचि हस्तांही चरणसंवाहन।’ ‘तैसेचि – तैसेचि’ यानी ‘वैसे ही’।, तैसेचि का मतलब है वैसे ही। यानी जैसे अभिवंदन किया, तो यहाँ संवाहन कैसा होना चाहिए? अभिसंवाहन होना चाहिए। चरणों का संवाहन तो मस्तक का, एक उपचार तो हम जान गए,

सद्‍गुरु महिमा - भाग ३

सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धने १५ अप्रैल २०१० के पितृवचनम् में ‘सद्‍गुरु महिमा’ इस बारे में बताया।   जब भी चान्स मिले उसकी फोटो है, वो प्रत्यक्ष रूप में है या मूर्ती रूप में है, तब उसके चरणों पर जब हम मस्तक रखते हैं, उसकी चरणधूलि में जो हम हमारा मस्तक रखते हैं। हेमाडपंतजी की पहली भेंट कैसी है? हेमाडपंत उनके (साईनाथजी) चरणों को स्पर्श नहीं कर सके, साईबाबा रास्ते से जा

सद्‍गुरु महिमा-भाग १ , Sadguru Mahima-Part 1

सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धने १५ अप्रैल २०१० के पितृवचनम् में ‘सद्‍गुरु महिमा’ इस बारे में बताया।   साईनाथजी की महिमा हेमाडपंत लिख रहे हैं, हम लोग देख रहे हैं। हेमाडपंतजी ने हमें सद्‍गुरु क्या था, क्या होता है, कैसे होता है यह खुद की आँखों से देखा था, महसूस किया था और पूरी तरह से जान लिया था और सिर्फ जाना नहीं बल्कि जानने के साथ-साथ खुद को निछावर कर दिया

नवरात्रीचे महत्त्व  (Significance of Navaratri)

सद्गुरू श्री श्रीअनिरुद्धांनी त्यांच्या २८ मे २०१५च्या मराठी प्रवचनात ‘नवरात्रीचे महत्त्व’ याबाबत सांगितले.   आज आत्ता जे श्रीसूक्त योगिंद्रच्या तोंडून मी ऐकत होतो, माझ्या लहानपणीच्या आठवणी जाग्या झाल्या. तेव्हा माझे वयस्कर मंडळी आजोबा, पणजोबा, आज्या, पण ज्या माझ्या नात्यातली मंडळी उपस्थित असायची नवरात्रीमध्ये दोन्ही नवरात्रांमध्ये. अर्ध्या-अर्ध्या वयातल्या स्त्रिया, अर्ध्या काय सगळयाच्या सगळया त्या स्त्रिया वयातल्या ह्या नऊवारीमध्येच असायच्या. सुंदर खोपा घातलेल्या, नाकामध्ये नथ, सगळ्या दागिन्यांनी मढलेल्या आणि बाजूला पगडी घातलेले किंवा कमीतकमी

स्मरण (The constant remembrance of The God)

सद्गुरू श्री श्रीअनिरुद्धांनी त्यांच्या २० जून २०१३ च्या मराठी प्रवचनात ‘स्मरण(The constant remembrance of The God)’ याबाबत सांगितले. बघा! आपल्याला दोन्ही प्रकारच्या जाणीवा होत असतात. एक जाणीव असते की अरे, अरे ही गोष्ट मला करायलाच पाहिजे. त्याचबरोबर त्याचवेळेस दुसरी जाणीव असते की नाही ही गोष्ट मी करता कामा नये, हा विचार नाही जाणीव असते बरोबर. अगदी साधं उदाहरण घ्यायचं झालं तर बघा आपण जिन्यावरुन पायर्‍या उतरतो, पायर्‍या उतरताना आपलं लक्ष नाही आहे,

खुद के कंधे पर खुद का सर होना चाहिये (Should be the head of self on own shoulder)

सद्‍गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने ९ अक्तुबर २०१४ के प्रवचन में ‘खुद के कंधे पर खुद का सर होना चाहिये’ इस बारे में बताया।   खुद के जिंदगी में इसलिये सिर्फ ये सिखो, कि बाबा जो है वो क्या करता है हमारी अच्छी मूरत बनाना चाहता है। लेकिन हमारा पाषाण जो है, हमारा पत्थर जो है, जब हम लोग सोचेंगे, कि बाबा चाहे तो आप छिन्नी उठाओ, बाबा आप चाहे