Search results for “आज्ञा का पालन”

जीवन में अनुशासन का महत्त्व - भाग १०

सद्‌गुरु श्री अनिरुद्धजी ने ०७ अक्टूबर २०१० के पितृवचनम् में ‘जीवन में अनुशासन का महत्त्व’ इस बारे में बताया। भाई जीवन में सबसे important क्या है? तुम्हारी कॉम्पीटन्स – सक्षमता और वो कहाँ से आती है? मैथुन केन्द्र से उत्पन्न होती है और वो कैसा केन्द्र है? ‘उष्ण-स्निग्ध-गुरु’ केन्द्र है। उसीकी सहायता के लिए कौन सा केन्द्र चाहिए? ‘सौम्य-स्निग्ध-गुरु’। ये कहाँ से आता है? सद्‌गुरु के दो चरणों से –

गुरु-आज्ञा

सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी ने ०७ अक्टूबर २०१० के पितृवचनम् में ‘जीवन में अनुशासन का महत्त्व’ इस बारे में बताया। गुरु-आज्ञा-परिपालनं, सर्वश्रेयस्करं। गुरु-आज्ञा का पालन करना ही सबसे श्रेय, श्रेयस्कर चीज़ है। सर्वश्रेय यानी सर्व बेस्ट जो है, वो हमें किससे प्राप्त होता है? गुरु-आज्ञा से प्राप्त होता है, राईट। इसी लिए ‘गुरुचरण पायस’ कहा गया है। ‘The Discipline’ बाकी की only they are a Dicipline. ये बाकी के डिसील्पीन्स से

गुरुत्वाकर्षण

सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी ने ०७ अक्टूबर २०१० के पितृवचनम् में ‘जीवन में अनुशासन का महत्त्व’ इस बारे में बताया। गुरु के साथ चलना यानी क्या? उसकी आज्ञा का पालन करना, राईट! और जो गुरु की आज्ञा का पालन करता है, छोटी से छोटे। तो उस गुरु के चरण हमेशा उसे डिसीप्लीन प्रदान करते हैं। क्योंकि गुरु के चरण, ‘गुरु’ शब्द में ही क्या है? हम लोग क्या कहते हैं, अर्थ

जीवन में अनुशासन का महत्त्व - भाग ५

सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी ने ०७ अक्टूबर २०१० के पितृवचनम् में ‘जीवन में अनुशासन का महत्त्व’ इस बारे में बताया। ये कुम्हार है बेसिकली। ये सद्‌गुरु कैसा होता है? he is potter, कुम्हार है। हर इन्सान का जो मिट्टी का गोला है, मिट्टी का, उसे इस कालचक्र के नेमी पर रखकर उसे उचित शेप भी देता है, आकार भी देता है उचित। वो भी कैसे? अपना हाथ उस पर, उसके बाहर

Pravachan, God, vedic, prayer, Lord, devotion, faith, teachings, Bapu, Aniruddha Bapu, Sadguru, discourse, Bandra, Mumbai, Maharashtra, India, New English school, IES, Indian Education Society, भक्ती, विश्वास, Aniruddha Bapu, अनिरुद्ध बापू, Bapu, बापू, Anirudhasinh, अनिरुद्धसिंह, अनिरुद्ध जोशी, Aniruddha Joshi, Dr. aniruddha Joshi , डॉ. आनिरुद्ध जोशी, सद्‍गुरु अनिरुद्ध, संसार, अवघाचि संसार सुखाचा करीन, संवाद, प्रपंच, घर, रेल्वे, बस, क्लब, प्रश्न, मन, उत्तर, लोभ, मोह, मत्सर, व्यक्ती, मित्र, नोकर, चालक, गोष्टी, अपवाद, कपट, चुका, मालक, नातं, पती, पत्नी, मुलगा, प्रेम, अपेक्षा, friends, bhagwan, parmeshwar, thought, think, ghar, bus, train, answer, conversion, home, club, mind, person, friend, Shreeshwasam

हरि ॐ, श्रीराम, अंबज्ञ! पहले हमें अब श्रीसूक्त सुनना है। श्रीसूक्त… वेदों का यह एक अनोखा वरदान है जो इस… हमने उपनिषद् और मातृवात्सल्यविंदानम् में पढ़ा है कि लोपामुद्रा के कारण हमें प्राप्त हुआ है…महालक्ष्मी और उसकी कन्या लक्ष्मी… इस माँ-बेटी का एकसाथ रहनेवाला पूजन, अर्चन, स्तोत्र, स्तवन… सब कुछ… यानी यह ‘श्रीसूक्तम्’। तो आज पहले… स़िर्फ आज से हमें शुरुआत करनी है। ‘श्रीसूक्तम्’ का पाठ हमारे महाधर्मवर्मन् करनेवाले हैं।

सच्चिदानन्द सद्गुरुतत्त्व - भाग ३

सद्‍गुरुश्री अनिरुद्धजी ने ०७ अक्टूबर २०१० के पितृवचनम् में ‘सच्चिदानन्द सद्‍गुरुतत्त्व(Satchidanand Sadgurutattva)’ इस बारे में बताया। तो ये सद्‍गुरुतत्त्व क्या है? सच्चिदानंद स्वरुप है। क्योंकि उसके पास कोई एक्सपेक्टेशन नहीं है, सिर्फ एक इच्छा रखता है, जो मेरा नाम ले, जो मुझसे प्रेम करे, जो मेरी आज्ञा का पालन करे, वो मेरे अपने हैं और उनकी जिंदगी में कैसे ज्यादा से ज्यादा आनंद से भरपूर कर दूँ। कुछ नहीं चाहता

चरणसंवाहन  (Serving the Lord’s feet)

सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी ने १५ अप्रैल २०१० के पितृवचनम् में ‘चरणसंवाहन’ के बारे में बताया। बस्‌, उसके चरणों में सर रखेंगे ही, उसके पैर दबायेंगे। जहाँ मिले चान्स तो, उसके चरणधूली में खुद को पूरा का पूरा स्नान करायेंगे ही। लेकिन उसकी आज्ञा का पालन करने की कोशिश, पूरी की पूरी कोशिश करते रहेंगे। ये हुई – ‘तैसेचि चरणसंवाहन।’ ‘तैसेचि हस्ते चरणसंवाहन। हस्तांही चरणसंवाहन।’  अब यहाँ कह रहे हैं कि

नामस्पर्श

हरि ॐ, श्रीराम, अंबज्ञ, नाथसंविध्‌, नाथसंविध्‌, नाथसंविध्‌. हम यह जो मंत्रगजर करते हैं – ‘रामा रामा आत्मारामा….’, वह कहाँ जाकर पहुँचता हैं? क्या हवा में घूमता रहता है इधर कहाँ? या पूरे ब्रह्मांड में या हवा में जाकर पहुँचता है? कहाँ जाता होगा? There is a definite place, where it goes….where it reaches….where it is absorbed….where it is pulled. Only one place. कौनसी जगह हैं वह? त्रिविक्रमनिलयम श्रीगुरुक्षेत्रम्‌॥ हम लोग

ll  अवधूतचिंतन श्रीगुरुदेवदत्त ll ll ॐ नमश्चण्डिकायै ll Sadguru Mahima अन्य सभी देवी-देवता तो भ्रमित करने वाले हैं; केवल गुरु ही ईश्‍वर हैं l एक बार अगर तुम उन पर अपना विश्‍वास स्थिर कर लोगे तो वे पूर्व निर्धारित विपदाओं का भी सामना करने में सहायता करेंगे l – अध्याय १० ओवी ४ सद्‍गुरु  की महती बयान करनेवाली अनेक ओवीयाँ श्रीसाईसच्चरित में आती रहती है। लेकिन मेरे मन में मात्र

चरणसंवाहन - भाग ४ (Serving the Lord’s feet - Part 4)

सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी ने १५ अप्रैल २०१० के पितृवचनम् में ‘चरणसंवाहन’ के बारे में बताया। तो, ‘करावे मस्तकी अभिवंदन। तैसेचि हस्तांही चरणसंवाहन।’ दोनों साथ करने का भी एक मतलब है कि, भाई बिल्वपत्र जिसे हम कहते हैं, बेल का पान। किसने देखा है? किसने नहीं देखा है? सभी ने देखा है, राईट। वहाँ क्या होता है? तीन पत्ते होते हैं ना! एक बीच में और दो बाजू में। ये क्या