युक्रेन का विस्फोट - भाग १

Leonid Kravchukलिओनाईड क्रैवचुक, युक्रेन के पहले राष्ट्रपति

 

’युक्रेन की समस्या की वजह से तीसरा विश्वयुद्ध भडक सकता है।’

- लिओनाईड क्रैवचुक, युक्रेन के स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेता एवं देश के पहले राष्ट्रपति

पहले और दूसरे विश्वयुद्ध के कारणों पर गौर करें तो क्रैवचुक की बात खोखली नहीं लगती। विश्वयुद्ध हो या विश्व में लंबे अरसे तक चलनेवाले अनेक संघर्ष; इनमें से अधिकतम की शुरुआत कुछ विचित्र तथा उस संघर्ष से सीधे संबंध रखनेवाली घंटनाओं से नहीं हुई हैं। युक्रेन की वजह से तो दो प्रबल सत्ताएं, अमेरीका एवं रशिया सीना ताने आमनेसामने युद्ध करने पर तुली हुई हैं। इसलिए अनेक विश्लेषक और विशेषज्ञों का कहना है कि एक छोटीसी चिंगारी भी इन बलशाली देशों में सार्वभौम युद्ध भडका सकती है।

 

Euromaidan 

सीधे तीसरे विश्वयुद्ध के भडकने का कारण बना, ऐसा युक्रेन में हुआ क्या है? भौगोलिक दृष्टिकोन से देखें तो पूर्व युरोप का भाग माना जानेवाला यह देश युरोप में सर्वाधिक क्षेत्रफलवाला देश है। साडेचार करोड की लोकसंख्यावाले इस देश में ’युरेशियन’ (युरोप एवं रशिया) भाग के देशों में दूसरे क्रमांक का लष्कर है। इतना ही नहीं बल्कि अनाज के निर्यात में यह देश विश्व में तीसरे स्थान पर है।

 इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि, आज जिसे युक्रेन के रूप में जाना जाता है वह २०वीं शताब्दी से पहले कभी भी एकसंघ या एक ही सत्तावाला देश नहीं रहा है। आज के युक्रेन का बहुत बडा भाग मूलत: नौवीं शताब्दी में एकसाथ हुआ और वह भी ’रूसी’ नागरिकों द्वारा स्थापन किए गए ’किवन रूस’ नामक संघराज्य तले। पर १३वीं शताब्दी के बाद इन संघराज्यों की शकलें बदलीं। इसके बाद इस पर लिथुआनिया, पोलंड, ऑटोमन साम्राज्य, ऑस्ट्रो-हंगेरी तथा रशिया जैसे विभिन्न सत्ताओं ने राज किया। इसके बाद वास्तव में सन १९१७ में एकसंघ देश बना रशिया में आई साम्य क्रांति के बाद।

 सन १९१७ से सन १९९१ तक रशियन संयुक्त राज्य से विघटित होने तक आज का युक्रेन ’युएसएसाआर’ अर्थात ‘युक्रेनियन सोवियत सोशॅलिस्ट रिपब्लिक’ के नाम से जाना जाता था। रशियन संयुक्त राज्य के पूर्व राष्ट्रपति मिखाईल गोर्बाचेव के उदार धारणा के बाद ‘सोवियत रशिया’ के जो विभाग हुए उनमें से आज के युक्रेन का जन्म हुआ। वह दिन था २४ अगस्त १९९१| इसके बाद आज तक के २३ सालों के दौर में से सन १९९४ से २००४, इन १० सालों के बाद का दौर आंदोलन, राजनैतिक असंतुलन एवं हिंसाचार से भरा रहा।

 आईए देखें वास्तव में इस दौर में हुआ क्या !

Orange-revolution

ऑरेंज रिवोल्युशन

सन १९९४ से सन २००४ इन १० साल के दौर में लिओनाईड कुश्मा युक्रेन के दूसरे राष्ट्रपति के रूप में सत्ता पर थे। इसी दौर में युक्रेन की रशिया से नजदीकी को अधिक घना किया जाने लगा था। इसी दौरान अमेरिका ने भी युक्रेन में ’लोकतंत्र’ को मजबूत बनाने हेतु, देश के बहुसंख्य जनता की युरोप में शामिल होने की इच्छा को पूरा करने हेतु आर्थिक सहायता देना आरम्भ किया था। सन १९९१ से २०१३ तक अमेरिका ने युक्रेन को कुल पांच अब्ज डॉलर्स से अधिक राशि दी थी। मगर यह सारी राशि युक्रेन सरकार को मिली होगी, ऐसा विचार भी मन में न लाना। अमेरिक द्वारा दी जानेवाली राशि वास्तव में जा कहां रही थी और किस कार्य के लिए इसका इस्तेमाल हो रहा था, इसका सन २००४ में हुए ’ऑरेंज रिवोल्युशन’ में पता चला। नवम्बर २००४ में युक्रेन में हुए राष्ट्रपति पद के चुनाव बहुत ही विवादास्पद रही। राष्ट्रपति पद के दो प्रमुख उमेदवारों में से एक थे तत्कालीन प्रधानमंत्री विक्टर याजुकोविच, तो दूसरे थे विक्टर युशेन्को। पहले दौर में किसी भी उमेदवार को आश्वास मत न मिलने की वजह से मतदान के दूसरा दौर हुआ। इस दौर के मतदान में तथा मतगणना अवैध घटनाओं की बात सामने आई और २१ नवम्बर २००४ को इस दूसरे दौर का मतदान समाप्त होते समय ही देशभर में आंदोलनों का दौर शुरु हो गया।

 बाद में इन आंदोलनों ने सरकार विरोधी भव्य आंदोलन का रूप ले लिया और इसे ’ऑरेंज रिवोल्युशन’ का नाम मिला। विश्व के समक्ष ’ऑरेंज रिवोल्युशन’ आंदोलन की शुरुआत २१ नवम्बर को भले ही हुई होगी पर युक्रेन तथा पाश्चात्य देशों में और प्रमुखता से अमेरिका द्वारा इसकी तैयारियां कई सालों से की जा रही थीं। सन २००० में युक्रेन में हुए एक पत्रकार की हत्या के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति कुश्मा के विरोध में आंदोलनों की शुरुआत हुई थी।

 सन २००२ विक्टर युशेन्को के साथ युलिआ तिमोशेन्को, ओलेक्झांडर मोरोझ एवं पेट्रो सिमोनेन्को ने एकसाथ आकर ’सत्ताधारी राज के विरोध में देशभर में क्रांती की शुरुआत कर रहे हैं’ ऐसा संयुक्त निवेदन भी जाहिर कर दिया। राजनीतिक नेतृत्व ’पोरा’ नामक युवा संघटना ने देशभर के विभिन्न लोकतांत्रिक गुटों को एकसाथ करने का कार्य किया और उसे अमेरिका के सरकारी तथा सरकारी सहायता पानेवाले गुटों से बडे पैमाने पर सहायता प्राप्त हुई। अमेरिका के परराष्ट्र विभाग, ‘युएसएड’ इस प्रमुख सरकारी प्रणाली के साथ ’नैशनल डेमोक्रॉटिक इन्स्टिट्यूट फॉर इंटरनॅशनल अफेअर्स’, ‘इंटरनैशनल रिपब्लिकन इन्स्टिट्यूट’, ‘फ्रीडम हाऊस’, ‘ओपन सोसायटी इन्स्टिट्यूट’ तथा नैशनल एन्डौवमेंट फॉर डेमोक्रसी’ द्वारा युक्रेन के गुटों को आवश्यक सारी सहायता प्रदान की थी इसका बाद में पता चला। यह बात भी सामने आई है कि, इनमें से ‘नैशनल एन्डौवमेंट फॉर डेमोक्रसी’ नामक संघटना तो सन १९८८ से युक्रेन में कार्यरत है।

 Soldiers

 

‘ऑरेंज रिव्होल्युशन’ के माध्यम से अमेरिक और युरोप ने उनके इशारे पर चलनेवाली सरकार स्थापन करने में कामयाबी पाई। मगर उनकी यह कामयाबी अधिक समय तक नहीं टिकी। विक्टर युशेन्को के पांच साल के दौर में देश की जनता को राजनीतिक अस्थिरता, इंधन की वजह से रशिया से हुआ विवाद और आर्थिक मंदी जैसे मुश्किलें झेलनी पडीं। इन तकलीफों की वजह से जनता ने सन २०१० में युशेन्को के प्रतिस्पर्धि विक्टर यानुकोविच को चुना और युक्रेन फिरसे रशिया की तरफ झुकने लगा।

 मगर अमेरिका और उसके मित्रदेशों को यह गवारा नहीं था। इसलिए युक्रेन को फिरसे अपनी तरफ झुकाने की योजनाएं बनाई जाने लगीं। अमेरिका और युरोप दोनों युक्रेन को अपने गुट में करना चाहते थे। इसलिए युरोपीय महासंघ ने युक्रेन को अपना सदस्य बनाने की कोशिशें शुरु कर दीं। लोकतंत्र, आर्थिक उन्नति और आधुनिक जीवनशैली हेतु युक्रेन के लिए युरोप के साथ अच्छे संबंध और सहकार्य बनाए रखना हितकारक होगा, ऐसा चित्र निर्माण किया। यह सारी कोशिशें युक्रेन को रशियन प्रभाव से बाहर खींचने के लिए ही थीं।

भाग २

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