सच्चिदानन्द सद्‍गुरुतत्त्व - भाग २

सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी ने ०७ अक्टूबर २०१० के पितृवचनम् में ‘सच्चिदानन्द सद्‍गुरुतत्त्व(Satchidanand Sadgurutattva)’ इस बारे में बताया।

जो-जो अस्तित्व है जिंदगी में, उससे सिर्फ हमें आनंद ही मिले, ये किसके हाथ में हो सकता है? किसकी ताक़त हो सकती है? ‘सच्चिदानंद’ की ही यानी सद्‌गुरु की ही और ये आनंद तभी उत्पन्न हो सकता है, जब संयम है, राईट। एकार्थी - extremes बन जाओ तो आनंद कभी नहीं मिलेगा। संयम यानी balance. ये balance कौन ला सकता है? सद्‌गुरु ही ला सकता है। क्योंकि वो अपेक्षाशून्य है, अपेक्षाशून्य है इसी लिए वो सच्चिदानंद है, सच्चिदानंद है इसी लिए अपेक्षाशून्य है।

उसे दूसरों के आनंद में आनंद है, वो दूसरों को सुख बाँटना चाहता है। क्योंकि वो, ‘दूसरों’ को ये शब्द ही ग़लत है, उसके लिए सभी ‘मेरे अपने’ होते हैं, दूसरे नहीं होते। जो भी उसका नाम लेते हैं, जो भी उसे अपना मानते हैं वो उसके ‘अपने’ होते हैं ‘मेरे अपने’। वो दूसरों की बात जो है, वो उपकार की भावना है। सद्‌गुरु के पास ये उपकार की भावना नहीं। जो भी वो देता है, वो प्रेम से देता है। क्योंकि वो सिर्फ ‘देता’ ही है। इसी लिए गुरुतत्त्व के मूल को क्या नाम दिया गया है - ‘दत्तगुरु’। ‘दत्त’ यानी जो देता है और जो लेता भी है, वो कैसा है? खुद ही देता है, वो ही उससे खुद लेता है, दुगुना करके देने के लिए वो ‘दत्त’ है। ‘दत्त’ नाम के दोनों अर्थ हैं - देनेवाला और लेनेवाला भी। ये कैसे? जो क्या लेता है? जो दिया हुआ है, वो ही लेता है और वही दुगुना करके देता है वो ही ‘दत्त’ है, राईट।

इसी लिए ‘ॲडॉप्टेड’ चाइल्ड को भारतीय भाषा में, क्या कहते हैं संस्कृत में - ‘दत्तक’ पुत्र। जो किसी से लिया गया है, लेकिन गुलाम बनाने के लिए नहीं, तो अपना लाड़ला बनाने के लिए, अपनी लाड़ली बनाने के लिए। ‘ॲडॉप्ट’ नहीं किया उसे, ‘दत्तक’ लिया है। यानी उसे कुछ देना है, उससे क्या लेना है? सिर्फ प्रेम लेना है। उस पुत्र को ‘दत्तक’ पुत्र कहते हैं। तो इसी लिए परमेश्वर का नाम क्या है? ‘दत्तगुरु’ है। सारे सद्‌गुरुओं का वो ‘सद्‌गुरु’ है - दत्त - दत्तगुरु।

‘सच्चिदानन्द सद्गुरुतत्त्व' इस बारे में हमारे सद्गुरु श्री अनिरुद्ध ने पितृवचनम् में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।

ll हरि: ॐ ll ll श्रीराम ll ll अंबज्ञ ll