Sadguru Shree Aniruddha’s Pitruvachan (Part 1) – 07 March 2019

॥ हरि: ॐ ॥ श्रीराम ॥ अंबज्ञ ॥

॥ नाथसंविध्‌ ॥ नाथसंविध्‌ ॥ नाथसंविध्‌ ॥

हररोज कई बार हमारे मन में एक सवाल उठता है - ‘क्यों?’ यह ‘क्यों’ हुआ? ऐसा ‘क्यों’ हुआ? ऐसा ‘क्यों’ नहीं हुआ? 'Why?' 'Why?' 'Why?' Whole life we are facing this problem - 'Why'? पूरी ज़िन्दगी हम लोग इस सवाल के साथ जूझते रहते हैं - 'Why'; and we never get answer. हमें कभी जवाब नहीं मिलता इस 'WHY' का। क्यों? ज्योतिषी के पास जाओ, best counsellor के पास जाइए....Wherever you want to go, go.  लेकिन ‘क्यों’ का सवाल हमेशा अधूरा रहता है, क्यों? और फिर बहुत सारे लोग ज़िन्दगी में खुद को failure मानकर बैठते हैं, अपयशी मानकर बैठते हैं। सचमुच में पराभूत होते रहते हैं इसी एक वजह के कारण। इस ‘क्यों’ में, ‘क्यों’ के ज़ाल में अटके रहते हैं। ‘क्यों’ जानना आवश्यक है, Definitely। लेकिन उसका एक सीमित अस्तित्व है। इस ‘क्यों’ का जो जवाब है....the answer to this 'why' is always incomplete. एक इन्सान क्या जान सकता है ज़्यादा से ज़्यादा? अपनी इस ज़िन्दगी के बारे में जान सकता है। पिछली जिंदगी के बारे में कुछ नहीं जानता। और अगर किसी ने बताया भी, तो भी वह कितने जन्म बतायेगा? कितने जन्मों के हर दिन के बारे में बतायेगा? Impossible! इसीलिए किसी भी ‘क्यों’ का पूरा जवाब, सही जवाब....what we call 'perfect answer', we never achieve.

मेरा कहना यह नहीं है कि ‘क्यों’ सवाल का जवाब ढूँढ़ने की कोशिश मत करो। ‘क्यों’ की अपनी-अपनी एक एहमियत हैं यहाँ।

‘क्यों’ का जवाब मिलना चाहिए; लेकिन ‘क्यों’ से ज्यादा....'why' से ज्यादा, more than 'Why', 'HOW' is more important. Ok, I failed....no problems. But 'how am I going to deal with it' that is more important and the answer is always easy, available at our hand and perfect. ‘क्यों’-'why' and ‘कैसे’-'how' इन दो terms के बीच में - `जीवन successful....यशस्वी है' या 'defeated....पराभूत है' यह सारा निर्भर करता है। हम हमेशा ‘क्यों’ के पीछे दौड़ते रहते हैं और blame हमेशा किसी situation पर ड़ालते हैं, किसी इन्सान पर ड़ालते हैं, खुद पर ड़ालते हैं या परिस्थिति पर ड़ालते हैं या कोई और वजह पर, (जैसे कि) ‘जेनेटीक्स’ पर ड़ालते हैं। लेकिन तब भी, हमारे 'Why' यानी ‘क्यों’ का जवाब, जो भी मिलता है, जहाँ से भी मिलता है, is incomplete and imperfect....always! It can not be perfect. वह perfect हो ही नहीं सकता। इसीलिए हमें ढूँढ़ना चाहिए किस सवाल को? किस जवाब को - ‘HOW’? मैं ‘कैसे’ कर सकता हूँ? अब मैं ‘क्या’ कर सकता हूँ और ‘कैसे’ कर सकता हूँ। Exam में fail हुआ, no problems! अब मुझे क्या करना है? पढ़ाई कैसे करनी हैं? क्या नहीं करना है? कैसे नहीं करना है? कैसे लिखना है? कैसे नहीं लिखना है? सिर्फ़ exam में ही नहीं, ज़िन्दगी की हर एक बात में भी, this 'How' is more important. यह ‘कैसे’ करना है, यह बहुत important है, ये बहुत मायने रखता है।

लेकिन हर कोई 'Why' के पीछे दौड़ता है। ‘क्यों?’ ‘क्यों?’ ‘क्यों?’ ‘क्यों?’ सुबह पती-पत्नी का झगड़ा हो जाता है। ‘क्यों मुझे ऐसा बोली वो?’ वह सोचती है, ‘वो क्यों मुझे ऐसा बोला?’ झगड़ा खत्म ही नहीं होता। झगड़ा ‘कैसे’ खत्म किया जाए, इसके बारे में कोई सोचता नहीं, right? झगड़ा ‘कैसे’ हुआ इसके बारे में सोचो, ‘क्यों’ अपनेआप निकल जाता है। (लेकिन) ‘झगड़ा ‘क्यों’ हुआ? मुझे ऐसे ‘क्यों’ कहा उसने?’ इसके पीछे हम लोग लग जाते हैं। क्योंकि कि जो ‘क्यों’ के पीछे लगता है, वह हमारा ‘इगो’ होता है, Pseudo-self - झूठा ‘मैं’ - अहंकार; और जो ‘कैसे’ के पीछे लगता है, 'How' के पीछे लगता है, वह हमारा True-self होता है। हमारा खुद का जीवात्मा होता है। जीवात्मा ‘कैसे’ के साथ जीता है। आत्मा जो है, वह ‘कैसे’ के साथ जीता है। हमारा जो अहंकार है, जो Pseudo-self है, वह ‘क्यों’ के साथ जीता है। ‘क्यों’ यह एक ऐसा सवाल है, ‘क्यों’ यह एक ऐसा question mark है, जो कभी खत्म ही नहीं होता। ‘क्यों?’ ‘क्यों?’ ‘क्यों?’ ‘क्यों?’ .... चलता ही रहता है। इसीलिए जो इंग्लिश का ‘क्यू' (Queue) है - कतार है, वैसे ही यह ‘क्यों’ की एक कतार खड़ी हो जाती है। ज़िन्दगी भर हम उसके साथ ही जूझते रहते हैं। और इस कारण हम आगे बढ़ ही नहीं सकते। इस ‘क्यों’ को हमें पीछे छोड़ना है। जो हो गया, वह हो गया....ठीक है, एक दिन रो जाओ। (लेकिन) दूसरे दिन सोचो, ‘अब क्या करना है? कैसे करना है? मैं क्या कर सकता हूँ? मैं कैसे कर सकता हूँ? कैसे मुझे मदत मिल सकती है?’ ‘क्यों मुझे मदत मिलनी चाहिए’ इसके बारे में मत सोचो. No, that is not our cup of tea. What we should do? We should run after 'HOW'. How will I manage?

हमारे बच्चों के बारे में भी ऐसा ही है। हम लोग जब बड़े होते हैं,  हमारे बच्चे होते हैं - चार साल के हैं, दो साल के हैं, एक महिने के हैं, बीस साल के हैं, चालीस साल के हैं....जो भी हैं हमारे बच्चे अपने बच्चे होते हैं। उनके बारे में भी हम ‘क्यों’ के पीछे लगे रहते हैं....all parents! 'Why' is he behaving like this? 'Why' has he changed so much? 'Why' doesn't he listen to me? This 'Why' is not going to give you any solutions....anytime. ये कैसे behave कर रहा है? ऐसे behave कर रहा है। मुझे क्या करना चाहिए? मुझे कैसे behave करना चाहिए? यह सोचिए। ‘क्यों’ अपनेआप dissolve हो जाएगा। यह ‘क्यों’ ‘कैसे’ में dissolve हो जाता है। 'Why' gets dissolved into 'How'.  यह ज़िन्दगी का सबसे बड़ा रहस्य है - सुख पाने का, चैन पाने का, शांति पाने का, यश पाने का, यशस्वी होने का। हम ‘क्यों’ के पीछे ज़्यादा नहीं जायें, ‘कैसे’ के पीछे जायें। How will I achive this? What am I supposed to do? What am I not supposed to do? How am I supposed to do? How am I not supposed to do? How will I get it?

Yes....एक simple example हम लोग लेते हैं, एक गधा है। ‘गधा’ यानी ‘सचमुच का गधा’ मैं बोल रहा हूँ। This is not a metaphor for any human being, o.k.? So, एक गधा है। अब गधे पर आपको सवार होना है| तो आप क्या करोगे? Suppose आपको घुड़सवारी नहीं आती, गधा भी आपने पहली बार ज़िन्दगी में देखा है और आपको गधे पर बैठना है। कैसी situation लगेगी आपको?

पहले आप पूछेंगे - ‘बापू, हम क्यों बैठें इस गधे पर?’

देखो, ‘क्यों’ आ गया ना? पहला सवाल क्या आयेगा (मन में) - ‘क्यों बैठें इस गधे पर?’

अरे, बापू ने बोला है ‘बैठना है’, तो बैठना है, simple!

लेकिन हममें से ९०% सोचने लगे - भई, ‘क्यों’ बैठना है गधे पर? ‘क्यों’ बैठने की ज़रूरत है? यहीं के यहीं हमें एक example मिल गया। बस्स, मेरी story खत्म हो गयी। आगे story कुछ है ही नहीं। मैंने सिर्फ इतना कहा - ‘बैठना है’। ९०% के मन में सवाल उठा, ‘क्यों’ बैठना है? Why should I sit on a donkey? I have not even seen a donkey. O.k. नहीं देखा है। लेकिन बापू ने बोला है ना, ‘बैठना है’, तो ‘कैसे बैठना है’ वह सोचेंगे। लेकिन हम लोग किसके पीछे गए? ‘क्यों’ बैठना हैं? ‘क्यों’ बिठा रहे हैं बापू उस गधे पर?

यह ‘क्यों’ is very dangerous. 'Why' is very dangerous, o.k.? बुखार आया है, डॉक्टर के पास जाओ।    क्योंकि ‘क्यों बुखार आया है’ वह ढूँढ़ना आवश्यक है, blood-test करना आवश्यक है। मलेरिया है या टॉयफाईड है, Diagnose करना आवश्यक है। लेकिन ‘उस मच्छर ने मुझे ही क्यों काटा?’ (ऐसा पूछना) this is useless, It's stupidity, यह मूर्खता है। ‘जिस मच्छर ने मुझे काटा, उसीने दूसरे को भी काटा; उसे मलेरिया नहीं हुआ, मुझे क्यों हुआ?’ क्या फायदा है इस सवाल का? अरे भाई मच्छर ने काटा है, मलेरिया हुआ है, Diagnose हुआ है, अब ट्रीटमेन्ट ले लो। ट्रीटमेन्ट कैसी करनी है, कैसी लेनी है कि बाबा मुझे ऍसिडिटी हो रही है दर्द के साथ, टॅबलेट्स के साथ या नहीं? हमें क्या खाना चाहिए? क्या नहीं खाना चाहिए? कितने दिन रेस्ट लेनी है? बस यह आवश्यक है। ‘मच्छर ने मुझे ही क्यों काटा? मच्छर मर क्यों नहीं गया पहले?’ यह सोचने से क्या फायदा है हम लोगों का? कुछ फायदा होगा? नहीं।

अभी देखो, आप कभी ठीक एक घंटा बैठिये। कोई भी एक घटना अपनी ज़िन्दगी की ले लीजिए। उसके पीछे रहनेवाला 'Why', ‘क्यों’ पूछते जाइयें। उसके पीछे और एक ‘क्यों’, फिर और एक ‘क्यों’, और एक ‘क्यों’, 'Why?' 'Why?' 'Why?' 'Why?' अन्त में, आप इस सवाल तक ज़रूर जा पहुँचोगे कि “मैं जन्मा ‘क्यों’? मेरा जन्म ही ‘क्यों’ हुआ?” और वह सवाल तो आप जानते नहीं हो। वह सवाल जो जानता है, उसके हाथ में उस ‘क्यों’ का जवाब रहना चाहिए, छोड़ दीजिए, o.k.?

अब सोचो, हम ट्रेन से कहीं जा रहे हैं, या प्लेन से जा रहे हैं, या कार से जा रहे हैं, या एस. टी. बस से जा रहे हैं। किसी भी व्हेईकल से जा रहे हैं या गधे पर जा रहा हैं, ओ.के. no problems! लेकिन इन सवारियों के पीछे हेतु क्या है? आगे बढना है....अपने डेस्टीनेशन तक, गंतव्यस्थान तक जाकर पहुँचना है और तब तक चलना नहीं है, राईट? Most important thing क्या है? ‘मुझे चलना नहीं है’। चलने से क्या होगा? मैं थक जाऊँगा। गधे पर बैठूँ या घोडे पर बैठूँ, कार में पर बैठूँ, ट्रेन में बैठूँ या प्लेन में बैठूँ, अपना अपना स्पीड अलग होगा, लेकिन मैं थकूँगा नहीं। आजकल मैं देखता हूँ, लोग बोलते हैं - ‘क्या ये मुम्बई की लोकल ट्रेन्स हैं, दो घंटे लोकल से जाता हूँ, तो इतना थक जाता हूँ! अरे, लेकिन ट्रेन में तो खड़े ही रहते हो ना, फिर कैसे थक गये? No doubt, थक जाते हैं। वह पूरी भीड़ इतनी होती है, जो हिलना डुलना पड़ता है, उससे थक जाते हैं। लेकिन सोचो अगर ट्रेन नहीं होती तो एक घंटे का ट्रेन का समय और तुम्हारे चलने का समय कितना होता? कितने घंटे चलना पड़ता? समझो दादर से बोरिवली जाना है आपको चलते चलते, सारी ट्रेन्स बंद हैं, टॅक्सीस भी बंद है, रिक्षा भी बंद है और चलकर जाना ही है। कितना समय लगेगा?

[चार घंटे]

अरे, क्या सोचा है तुमने खुद को? मॅरॅथोन का नंबर वन? कितना किलोमीटर है मालूम है बोरीवली दादर से? १९ किलोमीटर्स। एक घंटे मे इन्सान maximum ३.५ किलीमीटर चलता है। फिर कितने घंटे लगेंगे? कम से कम छ: घंटे लगेंगे और बीच बीच में, बैठ-बैठकर जाना पड़ेगा, राईट? और हम सिर्फ ट्रेन को गाली देते रहते हैं। आप थक जाते हो, मुझे पता है। लेकिन यह भी सोचिये, अगर ट्रेन्स नहीं होतीं तो क्या हालत होती? यह हमें जिंदगी में सीखना चाहिये कि Something is better than nothing.

आजकल बहुत सारे अपने लोग ट्रेन में भी मंत्रगजर करते रहते हैं। उनमें से 90% लोग कहते हैं कि पहले हम लोग जितने थकते थे, उतनी थकान अब महसूस नहीं होती। हमें यही सोचना है कि यह जो मेरी Travel है डेढ़ घंटे की, वह कैसे आसान हो सकती है? यह मुझे क्यों करनी पड़ती है? ऐसा क्यो नहीं कि यह मेरा घर है, उसके बाजू में मेरा ऑफिस है? सुबह उठा 9 बजे, 9:10 को ऑफीस में गया, 8 बजे छूटा, 8:10 को घर आ गया, ऐसा क्यो नहीं है?

आप कहेंगे - ‘बापू, आपकी तो बात अच्छी है....आप ऊपर रहते है छ: माले पर, दूसरे माले पर आपका ऑफीस है....आपके लिए कहना बहुत आसान बात है। क्यों कह रहे हो आप ऐसे?

(यह पुन:) ‘क्यो?’ (आ गया।)

पहले मैं चेंबूर में रहता था, चेंबूर से परेल में आता था, दादर में आता था। मैं भी ट्रेन से Travel करता था। उस जमाने में हम उसको क्या कहते थे मालूम है? आज आप लोग क्या कहते हैं - 'Class'.... First Class और Second Class। तब Third Class भी था ट्रेन में। आजकल Third Class का अर्थ अलग है, उस जमाने में अलग था। लेकिन ट्रेन में Third Class था और उसका कॉलेज से जो पास मिलता था, वह सिर्फ तुम्हारे रहने के स्थान से कॉलेज के स्थान तक होता था। हम लोगों तो उस जमाने में क्या चाहिये था, चर्चगेट से लेकर बोरवली या विरार तक का पास हम लोग लेके रखते थे, कहाँ भी घुमने का रहता था। तब इतनी भीड नहीं होती थी। मतलब भीड़ होती थी, फिर भी हम Enjoy करते थे। क्योंकि उस ज़माने में, हमारे ज़माने में सबकुछ आसान था, सीधा था, पढ़ाई भी थोडी कम थी।

अभी ये जो मेरी Grand-daughters हैं, आठ दिन पहले बोल रही थीं -  Mars क्या है? मंगल क्या चीज़ है? शुक्र Venus क्या चीज़ है? ये Saturn के बाजू में तीन रिंग्स रहती हैं, वे कैसीं बनी होती हैं? I was shocked! यह सब मैंने First Year Science में सुना था, पढ़ा था....यानी 17 साल की उम्र में; और ये 5 साल की उम्र में मुझे बता रहीं है। जीवन Fast हो गया, Knowledge बहुत बढ़ रहा है।

लेकिन यह होता रहता है, क्योंकि जो आपके ज़माने में है, वह हमारे ज़माने में नहीं था। जो कष्ट हम लोगों को उठाने पड़ते थे उस जमाने में, आप लोगों को उठाने नहीं पड़ते....Definitely not! हर ज़माने के अपने अपने प्लस और माईनस पॉईंट्स रहते हैं। उसके हिसाब से हमे जीना है, तो ‘कैसे’ जीना है इस पर Concentrate करना चाहिए, ‘क्यों’ यह नहीं सोचना चाहिए, राईट? ज़िन्दगी में अगर शान्ति पानी है, सुख पाना है, यश पाना है, तो हमें क्या सो़चना चाहिये? - ‘कैसे’ कर सकता हूँ?

‘क्यों’ हो गया? ‘क्यों’ नहीं होता? ये तो सबसे Worst questions हैं।

‘कैसे’ करना चाहिए, यही सोचो, करते रहो। ‘चरैवेति चरैवेति’, राईट? किसने कहा है? हम लोगो ने पढा है अग्रलेख में, यह ‘चरैवेति चरैवेति’ यानी ‘चलते रहो, चलते रहो’। यह उपनिषद् की कथा है, यह भगवान इंद्र ने कहा है, ओ.के.? यह कथा बताने के लिए आज टाईम नहीं है मेरे पास उतना। इंद्र कहता है - ‘चरैवेति चरैवेति’ यानी ‘चलता रहें बेटा चलता रहें....सदैव चलता रहे’। चलते रहना मतलब हररोज़ पूरा दिन चलते चलते विरार तक या बोरवली तक जाकर पहुँचना, ऐसा नहीं है। ‘चलते रहना’ मतलब ‘आगे बढ़ते रहना’, एक एक कदम आगे बढते रहना चाहिये।

और ‘क्यों’ यह सवाल जब मन में उठता है, तो हमारे पैर बँध जाते हैं, राईट? जब ‘कैसे’ चलना है, यह सवाल उठता है, तब हमारे पैर दुगुने स्पीड से आगे बढते हैं।

So आज से कौनसा सवाल हम लोगों ने बाहर फेक दिया? - 'WHY'....‘क्यों’; और कौनसे सवाल का स्वीकार किया? - 'HOW'.... ‘कैसे’।

नक्की? [नक्की]

नक्की? [नक्की]

क्यों?....क्यों?...क्यों?....

नहीं, मुझे सचमुच जवाब चाहिए इस ‘क्यों’ का?

कौनसा हिन्दी गाना याद आ रहा है? जो वादा किया, वो निभाना पड़ेगा...रोके जमाना चाहे, रोके खुदाई तुमको आना पड़ेगा, जो वादा किया, वो निभाना पड़ेगा... ओ.के.?

हम लोगों ने एक-दूसरे से वादा किया है ना, आप लोग ‘नक्की’ बोले ना, तो बस इसीलिए।

तो जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा....और तुम्हारा बाप हर वादा निभाता है....ओ.के.?

हरी ॐ....श्रीराम....अंबज्ञ।