सद्‍गुरु महिमा - भाग २

सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धने १५ अप्रैल २०१० के पितृवचनम् में ‘सद्‍गुरु महिमा’ इस बारे में बताया।

‘करावे मस्तके अभिवंदन’, इसका मतलब हेमापंतजी बता रहे हैं हमें कि एक बार गुरु के चरणों पर मस्तक रख दिया तो पूरी जिंदगी भर हमें इस भावना से रहना चाहिये कि मेरा मस्तक ये जो मेरे शरीर पर है, मेरे गर्दन पर है, ये ऍकच्युअली कहां है? दिखने में तो ऐसा स्ट्रेट है। मैं चल रहा हूँ, बैठ रहा हूँ, सो रहा हूँ, जो भी है, लेकिन है, उसकी जगह कहां है? तो सद्‍गुरु के चरण।

ज्या ज्या ठिकाणी मन जाय माझे.... जो मराठी जानते हैं, त्या त्या ठिकाणी निजरूप तुझे। मी ठेवितो मस्तक त्या ठिकाणी जेथे सद्‍गुरु तुझे पाय दोन्ही, जहाँ भी मेरा मन जाये वहां तुम्हारा निजरूप ही होगा, निजरूप। निजरूप दाखवा हो और जहाँ भी मैं प्रणाम करूंगा वहाँ तो तेरी चरणधूल होगी।

इसका मतलब ये अभिवंदन यानी क्या? कि गुरु के चरणों पर एक बार मस्तक रखा, बस, फुल ठीक हो गया। ये बात वो कहते हैं, इसे अभिवंदन नहीं होता, गुरु को वंदन नहीं करना चाहिये तो क्या करना चाहिये? अभिवंदन करना चाहिये। पूर्ण रूप से वंदन हमेशा के लिये, एक बार उसके चरणों पर सर रखा, इसका मतलब है भाई कि मैं चल रहा हूँ, फिर रहा हूँ, सो रहा हूँ, बात कर रहा हूँ, कुछ भी कर रहा हूँ, ये मेरा मस्तक कहां है भाई? गुरु के चरणों में है, इस भावना को दृढ़ता से धारण करना यही अभिवंदना है। 

आज बापू ये कैसा पॉसीबल है, इट्स व्हेरी डिफिकल्ट, मुशकिल है बहुत ये। हम लोग कुछ काम करते हैं, क्या करते हैं, सोते हैं, सोने के बाद क्या करेंगे? जब हम सोते ही नहीं हैं, पूरे के पूरे कॉन्सीअस है, डेली ऍक्टीवेटेड वुई आर वेक फुल टोटली फिर भी हमारे मन में सौ विचार रहते हैं, सौ कल्पनायें आती जाती रहती हैं। एक विचार, एक नाम भी हम लोग मुँह से बोलना चाहे पूरा दिन राम-राम-राम तो भी बहोत बार बीच में कुछ दूसरी बात आ जाती है तो ये भान कैसा रखेंगे, ये विचार कैसा दृढ़ रखेंगे कि मेरा मस्तक हमेशा सद्‍गुरु के चरणों पे हैं। 

आसान है, आसान है, हमें ये नहीं सोचना हैं कि मेरा मस्तक सद्‍गुरु के चरणों पर है, अगर हम ये सोचना चाहे तो हम कभी इस, ये ग्यानमार्ग हुआ, ज्ञानमार्ग हुआ, इट इज व्हेरी डिफिकल्ट। तो यहां हमें क्या होगा, अगर मेरा मस्तक सद्‍गुरु के चरणों पें है, ऐसा हम सोचेंगे तो कर्ता कौन हुए? हम हुए। कर्तृत्व किसके माथे आया? हमारे माथे आया। हमें क्या कहना चाहिये? कि सद्‍गुरु के दोनों चरण मेरे मस्तक पर हैं, बस अब जिम्मेदारी किसकी है? सद्‍गुरु की। लेकिन इसके लिये क्या करना चाहिये? अभिवंदना करनी चाहिये। 

‘सद्गुरु-महिमा’ इस बारे में हमारेसद्गुरु श्री अनिरुद्ध ने पितृवचनम् में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।

ll हरि: ॐ ll ll श्रीराम ll ll अंबज्ञ ll