आपके हृदय में भक्ति का होना यह आपके लिए आवश्यक है - भाग २

सद्‍गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने ४ फरवरी २०१६ के प्रवचन में ‘आपके हृदय में भक्ति का होना यह आपके लिए आवश्यक है- भाग २’ इस बारे में बताया।

आप टिफीन लेके जा रहे हैं अपनी बॅग में, राईट, उस बॅग में समझो नीचे ऐसी बॅग होती है राईट, तो पीछे ऐसी बॅग है, यहाँ नीचे यहाँ टिफीन रखा हुआ है, ये जो पार्ट है वो अगर समझो टूट गया रास्ते में तो क्या होगा? टिफीन नीचे जायेगा। बेटी को, बेटी ससुराल जा रही है, उसके साथ थैली में माँ ने बहुत सारे गहने दिये, आगे थैली फटी हुई है तो गहने क्या हो जायेंगे? नीचे गिर जायेंगे। आप के दादाजी ने आपको एक करोड़ रुपैये दिये, एक बड़ी थैली दी वो थैली के नीचे क्या है छिद्र है तो क्या होगा? उस वज़न के साथ वो छिद्र और भी बड़ा होता जायेगा और सारे पैसे नीचे जायेंगे, आप के पास कितने रहेंगे? एखाद रुपैया बचा तो बचा राईट। ये जो सारे रास्ते में जो लोग हैं उनकी चाँदी हो जायेगी।

यानी भगवान हमें जो देना चाहता हैं वो अपने पास रखने के लिये, हमारे जीवन में उतरने के लिये, हमारे जीवन में उसका विनियोग करने के लिये, उपयोग करने के लिये हमारी जो थैली है वो फटी न होना आवश्यक हैं और हमारी थैली तो हम लोग ही बार-बार फाड़ते रहते हैं, गलत काम कर कर। फिक्र मत करो। इसी लिये भक्ति करो, इसी लिये भक्ति करना कि मेरी फटी हुई थैली जो है, वो कौन सीले, सीने का काम कौन करे? हम नहीं कर सकते वो ही कर सकता है, उसकी आह्लादिनी शक्ती कर सकती है। ये जानकी करती है, ये रूक्मिणी करती है, ओ.के., ये लक्ष्मीजी करती हैं, ये पार्वतीजी करती हैं, ये सरस्वतीजी करती हैं और वो क्या हैं? क्यों वो सिलाती हैं, सीने का काम वो क्यों करती हैं? तो ये स्टीचींग का काम क्यों करती है आल्हादिनी, क्योंकि वो खुदबखुद भक्तिरूपिणी हैं। हम लोग ज़ानते हैं आल्हादिनी क्या हैं? भक्तिरुपिणी हैं। ये भक्तिरुपिणी होने के कारण जब भी हम भगवान का नाम लेते हैं ये भगवान की जो शक्ति है, जो ये इसकी धर्मपत्नी है, ये क्या करती है? हमारी जो फटी हुई थैली होती है, उसे सीने का काम करती हैं। इसी लिये हमें भक्ति करनी है और ये थैली क्या है? थैली कोई चीज़ नहीं है, ये थैली हमारा खुद का मन है।

हमारा मन फटा हुआ होता हैं चारों बाजू से। हमने गलत काम किया मन फट गया, हमें बहुत बड़ा शोक हुआ, दुख हुआ मन फट जाता है। हम कितने बार बोलते हैं की उस औरत का शोक देखकर मेरा दिल फट गया। ये दिल यानी क्या? अंत:करण, अंत:करण-चतुष्टय, अंत:करण का सबसे बड़ा हिस्सा मन तो है हमारे पास, हमारा चित्त बहोत छोटा होता है, बुद्धि और भी छोटी होती है राईट। एक मानव की बुद्धी कितनी होगी, मन बहुत बड़ा विशाल होता है। तो ये थैली यानी मन, ये थैली फट जाती है तो उस सीने का काम कौन करती हैं? ये भक्तिरूपिणी आह्लादिनी यानी जानकीजी, रुक्मिणीजी, राधाजी। सो इसके लिये हमें भक्ति करनी है।

‘आपके हृदय में भक्ति का होना यह आपके लिए आवश्यक है - भाग २’ इस बारे में हमारे सद्गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने प्रवचन में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।

ll हरि: ॐ ll ll श्रीराम ll ll अंबज्ञ ll