जीवन में अनुशासन का महत्त्व - भाग ७

सद्‍गुरु श्री अनिरुद्धजी ने ०७ अक्टूबर २०१० के पितृवचनम् में ‘जीवन में अनुशासन का महत्त्व’ इस बारे में बताया।

गुरु-आज्ञा-परिपालनं, सर्वश्रेयस्करं। गुरु-आज्ञा का पालन करना ही सबसे श्रेय, श्रेयस्कर चीज़ है। सर्वश्रेय यानी सर्व बेस्ट जो है, वो हमें किससे प्राप्त होता है? गुरु-आज्ञा से प्राप्त होता है, राईट। इसी लिए ‘गुरुचरण पायस’ कहा गया है। ‘The Discipline' बाकी की only they are a Dicipline. ये बाकी के डिसील्पीन्स से ऊपर कौन सी डिसीप्लीन है ‘The Discipline', गुरु जो लाता है, जो उसके चरणों से जो प्राप्त होती है।

गुरु-आज्ञा

अब संयम, संयम तो हम कभी सीखते ही नहीं हैं। पहले इस जबान का संयम, खाने का संयम मालूम नहीं। जानवरों के पास होता हैं खाने का संयम। देखिए, कुत्ता देखिये, गाय देखिये उनके ज़रूरत से ज्यादा कभी नहीं खाते। सिंह देखिये - शेर देखिये, बाघ देखिये, बकरी देखिये अपनी ज़रूरत से ज्यादा कभी नहीं खाती। एक इन्सान ही है, जो ज़रूरत से ज्यादा खाता है, ज़रूरत से ज्यादा थाली में लेता है, उसमें से आधा फेंक देता है। कितने लोग भूखे मर रहे हैं इंडिया में, लेकिन हम लोग आधा खाना लेके फेंक देते हैं, कुछ भी नहीं लगता। एक इन्सान ही जो है, जो पेट से ज्यादा खाता है, राईट! संयम नहीं है।

दूसरी जबान की बात क्या हुई? जीभ की बात क्या हुई? बोलना। जितना कम बोलोगे उतना अच्छा है, कोई कहता है। कोई कहता है जितना ज्यादा बोलोगे अच्छा है, दोनों भी ग़लत। जहाँ ज्यादा बोलने की ज़रूरत है वहाँ ज्यादा बोलिए, जहाँ कम बोलने की ज़रूरत है वहाँ कम बोलिए। जहाँ न बोलने की ज़रूरत है वहाँ न बोलिए। जहाँ प्रार्थना करने की आवश्यकता है, वहाँ गाली मत दीजिए। जहाँ गाली देने की आवश्यकता है, वहाँ प्रार्थना मत कीजिए। I will not teach you wrong अध्यात्म कि अध्यात्म यानी तुम हाथ जोड़कर किसी के भी सामने बैठ जाओ, नहीं। मैं किसी को तकलीफ़ नहीं पहुँचाने जाऊँगा, लेकिन कोई मुझे तकलिफ़ पहुँचाने आए, तो मैं चुप बैठने को नहीं कहूँगा किसी को भी, दॅट इज राँग। अन्याय करने वाले से भी ज्यादा अन्याय सहनेवाला ज्यादा अपराधी होता है। Yes, that is my principle definitely, definitely right.

सो हमें चाहिए कि संयम यानी क्या? समझ में आनी चाहिए ये चीज़। लेकिन हम लोग कुछ हिंदी पिक्चर के हीरो नहीं हैं कि ४० किलो वेट वाला हिरो, ९० किलोवाले तगड़े मस्क्युलर मॅन के जैसे चालीस लोगों के साथ मस्ती करता है, मारामारी करता है, फाईट करता है और जीत जाता है। It is possible for all of you? no, तो ऐसा दु:साहस भी नहीं करना, तो वहाँ संयम चाहिए, भाई अभी तो मुझे चुप बैठना चाहिए। जब समय आए, रिव्हेंज नहीं लूँगा, लेकिन उसे सबक तो ज़रूर सिखाऊँगा, सबक तो ज़रूर सिखाना। नहीं तो क्या होगा भाई, आप आध्यात्मिक हैं इसीलिए, कोई भी आए और आपका फायदा उठाए। वहाँ हम लोग भक्ति करें इसी लिए कोई भी आकर हमारा फायदा उठाए, हमें लुट ले, धिज इज नॉट अध्यात्म।

भारतीय संस्कृति ने सही बातों में कहा गया है, धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारों पुरुषार्थ हैं। अर्थ यानी धन कमाना, पुरुषार्थ है, धन लुटवाना नहीं। धर्म भी पुरुषार्थ है, काम भी पुरुषार्थ है। काम यानी प्रपंच, काम यानी सेक्स नहीं। काम यानी प्रपंच अच्छा करना। ये भी पुरुषार्थ है और ये भी कैसे? वैदिक पुरुषार्थ है, वेदों में जिनका जिक्र हैं स्पष्ट रूप में, ऐसा है। देवताओं ने जिसका जिक्र किया, ऐसे पुरुषार्थ हैं। हम पराक्रम की पूजा करते हैं, इसी लिए वेदों में किसका पूजन है? भगवान इंद्र का पूजन है।

‘जीवन में अनुशासन का महत्त्व' के बारे में हमारे सद्गुरु श्री अनिरुद्ध ने पितृवचनम् में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।

ll हरि: ॐ ll ll श्रीराम ll ll अंबज्ञ ll