विश्व को थर्रानेवाली ‘ आयएस ’ - भाग 3

भाग - १ ​     भाग - २ ​     

यह जस्मिन रिवोल्यूशन या अरब स्प्रिंग देखते ही देखते ट्युनिशिया से इजिप्त, लिबीया, सिरिया इन देशों में तूफान की तरह फैल गया। हालांकि यह बहुत ही भिन्न विषय है, मगर ट्युनिशिया, इजिप्त और लिबिया इन देशों में कई दशकों से जनता को पैरोंतले रौंदनेवाले हुकूमशाहों की सल्तनत इस आंदोलन की वजह से और उसके बाद खूनी संघर्ष की वजह से पलट गई। सीरिया में अस्साद सल्तनत के विरोध में जारी निदर्शन और बाद में आतंक शुरु हो गया। आतंकी और सीरियन फौजों के बीच जारी संघर्ष में अमेरीका और अमेरीका के खाडीवाले सौदी जैसे मित्रदेश आतंकियों की तरफ हो गए, तो ईराण और रशिया ने सीरियन सल्तनत की तरफदारी की। इसकी वजह से चार सालों से जारी संघर्ष में बहुत कुछ उलथपुलथ हो गया, और वह आज भी जारी है। मगर इसमें सबसे महत्वपूर्ण घटना है ’आयएस’ का उदय, क्योंकि ’आयएस’ को सीरिया में नई रणभूमि मिली गई।


आयएस - ‘अरब स्प्रिंग’ के चलते सीरिया में भी अस्साद सल्तनत के विरोध में भारी प्रदर्शन हुए
‘अरब स्प्रिंग’ के चलते सीरिया में भी अस्साद सल्तनत के विरोध में भारी प्रदर्शन हुए[

अस्साद सरकार को गिराने के लिए लडनेवाले आतंकी संघटनों में जबात अल नुस्र और ’आयएस’ का समावेश था। ’आयएस’ की विशेषता यह है कि इस संघटना का सीरिया के साथ ही इराक में भी प्रभावक्षेत्र था। सीरिया और इराक के बीच की सीमारेखा सीरिया में हो रहे संघर्ष की वजह से धुंधले हो गई। ’आयएस’ और अन्य आतंकी संघटनाओं के लिए इन दोनों देशों में आनाजाना आसान हो गया। इराक में कुर्द अपना प्रांत आतंक के जरिए अलग करना चाहते थी। इसकी वजह से निर्माण हुई अराजकता से वे ’आयएस’ के पथ पर हो गए और यह संघटना अपना विस्तार करती रही। यह बात किसी के ध्यान में नहीं आई क्योंकि, सारे विश्व का ध्यान सीरिया में अस्साद सल्तनत की गतिविधियों पर ही केंद्रित था।

इस दौरान ‘इब्राहिम अवाद इब्राहीम अली मुहम्मद अली बद्री अली समाराइ’ की संघटना तेजी से बढने लगी। यह इतना बडा नाम अनेक आतंकियों का नहीं है, बल्कि यह अबू बक्र अल बगदादी का असली नाम है। 2 मई 2011 के दिन अमेरीका ने पाकिस्तान में घुसकर ओसामा बिन लादेन की हत्या कर दी। उसी दिन बगदादी ने क्रूरताभरी कसम खाई कि ओसामा की हत्या का बदला लेने के लिए इराक में 100 भीषण हमले कराए जाएंगे। और उसने अपनी यह कसम सच भी कर दिखाई।

लादेन की हत्या का बदला लेना सबसे बडी कोशिश मानी जाती है। मगर अब लादेन के ’अल कायदा’ का प्रभाव बगदादी के ’आयएस’ ने खत्म कर दिया है। अब अल कायदा अपने अस्तित्व के लिए कोशिश कर रही है, तो ’आयएस’ अपनी खिलाफत का विस्तार करने में जुटी हुई है। और अपनी इस खिलाफत का विस्तार करने के लिए, उसके कारोबार के लिए बगदादी ने समूचे विश्व के इस्लामपंथियों को पुकारा है। डॉक्टरर्स, इंजीनियर्स ’आयएस’ के इस खिलाफत में शामिल हो जाएं और यथशक्ति योगदान करें ऐसी मांग बगदादी ने एक विडियो के जरिए की है। उसकी इस पुकार के बाद और इससे भी पहले ’आयएस’ में शामिल होनेवालों की संख्या बडे पैमाने पर बढ गई। समूचे विश्व से, विशेषकर पश्चिमी देशों से इराक और सीरिया में जाकर ’आयएस’ द्वारा आतंकी ट्रेनिंग लेनेवाले गोरे नौजवान पश्चिमी देशों की खुफिया एजन्सियों के दिल में डर पैदाने करनेवाली बात है।

’आयएस’ का प्रचारतंत्र बहुत ही प्रभावी है। कोई भी अन्य आतंकी संघटना इंटरनेड और सोशल मीडिया का इतने प्रभावीरूप से इस्तेमाल नहीं करती। इसीलिए ’आयएस’ अन्य देशों के नौजवानों को आकर्षित करने में कामयाब हो रही है। अपनी धुन में नौजवान ’आयएस’ में शामिल हो जाते हैं और इस संघटना के लिए अपनी जान गंवा बैठते हैं। यह दिल दहलानेवाली खबर तो सभी ने पढी है। अन्य देशों से आतंकी कारवाईयों के लिए भरती होनेवाले नौजवानों के झुंड ’आयएस’ की ओर बढ रहे हैं। ’आयएस’ के पास इसका सही इस्तेमाल करने की बहुत ही आधुनिक प्रणाली और ट्रेनिंग सेंटर हैं।

आयएस

’आयएस’ के आतंकियों की सेवा के लिए पडोसी देशों से नवयुवतियों के झुंड इराक और सीरिया में हैं, ऐसी भीषण खबर सुनने में आई है। पश्चिमी देशों की युवतियां ’आयएस’ में शामिल अपने पतियों के साथ सेल्फी निकालकर सोशल मीडिया पर पोस्ट करने लगीं। जून में ’आयएस’ ने फर्मान जारी किया कि ’आयएस’ के आतंकियों की ’सेवा’ करके अल्पसंख्यक लडकियां और महिलाएं खुद को शुद्ध कर लें। इसलिए ’आयएस’ के कब्जे में आए हुए इराक में अल्पसंख्यकों के घरों की महिलाएं और लडकियों की सूचि यह संघटना बना रही है। इराकी सैनिकों की बेरहमी से हत्याएं करके ’आयएस’ ने अपनी क्रूरता का प्रदर्शन किया था। इस दहशत की वजह से इराकी सैनिक रणभूमी से भाग निकलने की खबरें भी फैल रही थीं। ऐसी स्थिति में ’आयएस’ ने इराक की राजधानी बगदाद पर कब्जा पाने के लिए कूच कर दी और ’आयएस’ के आतंकवादी बगदाद के पास भी पहुंच गए।

इसके बाद ही अंतरराष्ट्रिय समुदाय जागा। 8 अगस्त 2014 को अमेरीका ने ’आयएस’ के ठिकानों पर हमले करने की घोषणा कर दी। तत्पश्चात फ्रान्स, ब्रिटन, कैनडा और ऑस्ट्रेलिया के साथ खाडी के देश भी इराक में ’आयएस’ विरोधी संघर्ष में शामिल हुए। मगर अब ’आयएस’ को रोक पाना आसान नहीं है। क्योंकि फिलहाल सीरिया के कोबेन में ’आयएस’ से लडनेवाले कुर्द सैनिकों के लिए अमेरीकी विमानों ने शस्त्रास्त्र और मेडिकल सहायता ड्रॉप की। ’यह सबकुछ हम तक अच्छी तरह से पहुंच गया’, ऐसा कहकर ’आयएस’ के आतंकियों ने इसके लिए ’अंकल सैम’ का शुक्रिया अदा किया। अमेरीका अब यह जानकारी हासिल करने में जुटी है कि हमारी भेजी गई सहायता ’आयएस’ के हाथों में कैसे पड गई? तो दूसरी तरफ ’आयएस’ अमेरीकी शस्त्रों का इस्तेमाल करने में लगी है।

’आयएस’ काबू में न आने की वजह इस क्षेत्र में हो रहा संग्राम ही है। अमेरीका सीरिया में अस्साद सल्तनट को पलटना चाहती है। अमेरीका इस बात का फैसला नहीं कर पा रही है कि पहले ’आयएस’ का खात्मा करे या पहले अस्साद सल्तनत को खत्म करे। ईराण और सीरिया ’आयएस’ के विरोध में खडे हैं। सीरिया ने अपनी भूमि में घुसकर अमेरीका को ’आयएस’ पर हवाई हमले करने की अनुमति तो दी, मगर सीरिया को अमेरीका पर शक है। ईराण ने तो इलजाम लगाया था कि अमेरीका और ब्रिटन की वजह से ही ’आयएस’ का जन्म हुआ। ईराण के सर्वोच्च धर्मगुरु आयातुल्लाह खामेनी ने इलजाम लगाते हुए कहा था कि, ’आयएस’ ईराण और सीरिया के विरोध में पश्चिमी देशों द्वारा रचा गया षडयंत्र है। तो इससे भी आगे बढकर इराण के उपराष्ट्रमंत्री अब्दोल्लनियाह ने आरोप लगाया है कि ’आयएस’ के निर्माण में इस्राइल का हाथ है। ’आयएस’ का इस्तेमाल करके इस्राइल इस क्षेत्र में असंतुलन फैलाना चाहता है, और अबोल्लानियाह ने यह ताकीद भी दी है कि, इस्राइल के इस खेल के परिणाम समूचे विश्व को भुगतने पडेंगे।

लगभग 30 करोड डॉलर जितनी मासिक आमदनीवाली ’आयएस’ की सालाना कमाई अब्जों डॉलर है। इस संघटना को मानवबल की कमी महसूस नहीं होगी, इतने बडे पैमाने पर युवा इस आतंकी संघटना की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इसके लिए वह कुछ भी कर गुरने को तैयार है। पश्चिमी देशों में हमले करने की क्षमतावाली ’आयएस’ एकमात्र आतंकी संघटना होगी। अत: ’आयएस’ के पास अपनी भूमि है और इसे कायम रखते उसका विस्तार करना ’आयएस’ के लिए आसान हो रहा है। इराक और सीरिया में अशांति और असंतुलन जल्द खत्म होने की सम्भावना नहीं है। इस आतंकी संघटना का आत्मविश्वास मजबूत है। इसकी वजह से आज तक कोई अन्य संघटना ही क्या बल्कि, किसी भी देश तक के लिए जो सम्भव नहीं हो पाया है वह ’आयएस’ ने कर दिखाया है। ’आयएस’ अपनी खिलाफत में ’दिनार’ का चलन शुरु करने जा रही है। इस में सोने और चांदी के सिक्कों का स्मावेश है। अपना चलन शुरु करनेवाली यह आतंकी संघटना अपनी ’खिलाफत’ का विकल्प जग के समक्ष ला रही है। इस संघटना द्वारा अमानुष क्रूरता और नरसंहार से प्रेरित होकर उनके हिंसक तत्त्वज्ञान को चाहनेवाले कुछ लोग विश्व में हैं। कईयों ने ’आयएस’ का कठोर शब्दों में निषेध और निर्भत्सना की, मगर युवाओं पर इस बात का कोई असर दिखाई नहीं दे रहा है। ’आयएस’ में शामिल हुए युवाओं को पकडा भी गया है, मगर वे सीना तानकर कहते हैं कि, रिहा होने पर हम वही करेंगे। उन्हें किसी बात का डर नहीं है।

इराक, सीरिया के शहरों पर आयएस का नियंत्रण
इराक, सीरिया के शहरों पर ‘आयएस’ का नियंत्रण
 

अर्थात अमेरीका और मित्रदेशों को ’आयएस’ से धोखे का अहसास होने के संकेत मिल रहे हैं। क्योंकि अब ओबामा और उनके रक्षामंत्री कहने लगे हैं कि, ’आयएस’ के विरोध में चल रहा युद्ध लंबे अरसे तक जारी रह सकता है। लंबे समय तक चलनेवाले युद्ध नए युद्धों को कैसे जन्म देते हैं, इसका अनुभव समूचे विश्व ने इराक युद्ध के बाद किया।

ऐसी स्थिति में ’आयएस’ नामक यह संघटना भविष्य में क्या कर सकती है, यह कहा नहीं जा सकता क्योंकि विश्व में सबसे क्रूर, प्रभावी और समृद्ध आतंकी संघटना को रोकने की जिम्मेदारी जिन पर है वे आपस में सहमत नहीं हैं। ’आयएस’ के दुश्मनों का आपस में सहमत न होना उसके बल का सबसे महत्वपूर्ण भाग साबित हो रहा है। क्या इस संघटना पर कारवाई करनेवाले और इस संघटना को दुश्मन माननेवाले जिम्मेदार देश इस बात पर गौर करेंगे?

|| हरि ॐ|| श्रीराम|| अंबज्ञ||

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