४ सेवाओं का उपहार (The Gift of 4 Yojanas) - Aniruddha Bapu Pitruvachanam

रमपूज्य सद्‍गुरु श्री अनिरुद्ध बापू ने ३० नवंबर २०१७ के पितृवचनम् में ‘४ सेवाओं का उपहार’ इस बारे में बताया।

हर साल, हर दिन, हर पल हर एक श्रद्धावान के मन में, हर एक इन्सान के मन में ये विचार रहता है कि मैं जिस स्थिति में हूं, उस स्थिति से मैं और कैसे आगे चला जाऊं, मेरा विकास कैसा हो जाये, मुझे सुख कैसा प्राप्त हो जाये, मेरे दुख कैसे हरण किये जाये, मेरे दुखों का नाश कैसे किया जाये, ये हर एक के मन की चिंता होती है।

और इसी के लिये, पुण्यप्राप्ति के लिये बहुत सारे मार्ग जो है ढूँढे जाते हैं और पापशमन के मार्ग, पापविमोचन के मार्ग ढूँढे जाते हैं। लेकिन बहुत प्रयास करने के बाद भी हमें कभी कभी कुछ भी हासिल नहीं होता। इसलिये, हमने श्रीगुरुक्षेत्रम्‌ मंत्र, श्रीस्वस्तिक्षेम संवादम्, श्रीशब्दध्यानयोग, गुह्यसुक्तम् ये मार्ग हमारे साथ है। मातृवात्सल्यविंदानम् है, मातृवात्सल्य उपनिषद है, रामरसायन है, श्रीगुरुक्षेत्रम है। लेकिन इसके साथ साथ भी और कुछ होता है, बहुत सारे लोग जो मुझे खत लिखते हैं, चिट्ठी लिखते हैं, हर गुरुवार को, बहुत सारे लोग बताते रहते हैं, बापू हम मंत्र जप करना चाहते हैं, स्तोत्र पठन करना चाहते हैं, लेकिन उसके जो संस्कृत के उच्चार होते हैं, उच्चारण होता है, वो इतना आसान नही होता हमारे लिये। तो इसलिये हम लोगों ने ऐसी योजना बनायी है। ये सारी योजनायें जो मै बतानेवाला हूं, चार योजनायें है कुल करके हित के लिये, अपने हित के लिये, हर एक के हित के लिये और जो अहितकारक चीजें है, उन्हें दूर करने के लिये चार योजनाये हैं। उसमें से पहली योजना जो है, वो है -

१. स्तोत्रपठन और मंत्रपठन पाठशाला -

ये दो जगह चलेगी। ये सिर्फ संडे को होगी, रविवार के दिन होगी। ये क्लासेस होंगे। ये क्लासेस सिर्फ रविवार के दिन होंगे। श्रीक्षेत्र जुईनगर में और श्रीगुरुक्षेत्रम में। दोनो जगहों में। उसके चीफ कन्वेनर होगे, श्री. अजितसिंह पाध्ये और उसके को-कन्वेनर्स होगे, डॉ. केशव नर्सिकर और सचिनसिंह रेगे। और उनके साथ और भी कुछ लोग मिल जायेंगे। हमारे सिनियर वॉलंटियर्स की जो आपको आपके साथ बैठकर, छोटे छोटे समूहों को, आपके साथ स्तोत्रों का पठन भी करेंगे, मंत्रों का पठन भी करेंगे और आपको करेक्ट भी करेंगे। जहां आपकी गलतियाण होंगी वहां सुधारेंगे भी।

और कृपासिंधु में इसका Time-table दे दिया जायेगा। इस रविवार को क्या सिखानेवाले हैं, इस रविवार को क्या सिखानेवाले हैं, एक महिना पहले। और वैसे ही सी.सी.सी. के जरिये, हर केंद्र को भी ये जानकारी जो है वो दी जायेगी। इसे हम हमेशा हमेशा सीखते रह सकते हैं। इस स्तोत्रों का, जो स्तोत्र हम पठन करना चाहते हैं, जिसका पठन करना चाहते हैं, उस स्तोत्र का पठन अच्छे ढंग से, किस रीति से कैसे किया जाता है। कैसे करना चाहिए। क्या गलत है, क्या सही है, ये वो लोग हमे सिखायेंगे।

हमारे महाधर्मवर्मन डॉ. योगीन्द्रसिंह जोशी और डॉ. विशाखावीरा जोशी हैं, ये दोनों भी श्री अजितसिंह पाध्ये और उनके सहकारियों की मदत करेंगे, सहायता करेंगे, उनका मार्गदर्शन करेंगे। ये कबसे शुरु होगा सब? ये शुरु होनेवाला है, २१ जानेवारी से।

चारों योजनायें, जो आगे और भी तीन योजनायें मैं बतानेवाला हूं, ये शुरु होनेवाली हैं २१ जनवरी से। यानी उस दिन क्या है, तो ‘माघी गणेश चतुर्थी’ है। तो ‘माघी गणेश चतुर्थी’ के दिन से इन योजनाओं का आरंभ होनेवाला है। जब हम पठन अच्छे ढंग से कर सकें तब हमारे मन को भी संतोष मिलेगा और भगवान भी और संतुष्ट हो जायेंगे, क्योंकि हम लोगों ने इतने प्रयास किये हैं, सीखने के लिये। भगवान क्या चाहता है हमसे, प्यार चाहता है, भक्ति चाहता है और प्रयास चाहता है, पुरुषार्थ चाहता है।

ये भी एक पुरुषार्थ ही है। भक्ति पुरुषार्थ करने के लिये स्तोत्र पठन अच्छा होना, मंत्र पठन अच्छा होना, उसके उच्चारण बराबर होना ये सब प्रयास में ही आता है। पुरुषार्थ में ही आता है। इसलिये ये opportunity है, मौका है, हम लोगों के लिये कि अच्छे तरीके से, किस तरह से इन मंत्रों का और स्तोत्रों का पठन किया जा सकता है।

सारे के सारे स्तोत्र यहां सिखाये जायेंगे। घोरकष्टोद्धरण से लेकर देवी अपराधक्षमापन स्तोत्र तक, देवी अथर्वशीर्ष से लेकर जो अपने मातृवात्सल्य उपनिषद मे सारी प्रार्थनायें आती हैं, उन सबके उच्चारण सिखाये जायेंगे। दत्तमाला मंत्र भी सिखाया जायेगा। सब कुछ सिखाया जायेगा। और वो भी तुम्हारा हाथ पकडकर, आपको नीचा दिखाकर नहीं। अगर कितनी भी गलतियॉं आप करते हों, फिर भी कोई भी आपको नीचा नहीं दिखायेगा, कोई बात नहीं करेगा, कोई डिसाईज नहीं करेगा, कोई निंदा नहीं करेगा। बडे प्यार से होगा ये सब। ये जो है पहली योजना है।

दूसरी योजना जो है, वो भी क्लासेस ही है।

२. पवित्र मुद्रा क्लासेस -

हम लोगों ने अवधूत मुद्रा आदि सब मुद्रा सीखी हुई हैं, कुछ लोगों ने। जो मुद्रायें हम लोग हाथ से करते हैं और उन मुद्राओं के साथ साथ स्तोत्र पठन करने से, गुह्यसुक्तम्‌ सुनने से हमे जो फायदा होता है, उसका भी अनुभव बहुत लोगों ने किया हुआ है। लेकिन ये जो मुद्राये हैं, सभी जगह सिखाने के लिये, उसकी हम लोग सी.डी बना रहे हैं। मराठी में, हिंदी में और अंग्रेजी में और गुजराती में, कन्नड में, तेलगु में आगे से आ जायेगी। ये मुद्राये जो हैं, ये मुद्रायें, उनके साथ थोडीसी information, जानकारी भी होगी और मुद्रायें सिखायी भी जायेंगी और उसका प्रात्यक्षिक जो है, उसका रेकॉर्डिंग करके सी.डी के जरिये केंद्र पर भी उपलब्ध होगा और हर एक personal व्यक्ति के लिये, हर एक व्यक्ति के लिये भी उपलब्ध होगा। तो हम हमारे घर में भी देख सकते हैं, सीख सकते हैं, किधर जाने की जरुरत नहीं है और अगर हमें खरीदना नहीं है खुद को तो हम केंद्र पर जाकर सीख सकते हैं। केंद्र जो है, इसके लिये सारी योजनाये बनायेंगे कि कौन से दिन वो लोग ये सीडी दिखायेंगे और कोई जानकार व्यक्ति वहां आकर उन्हें वो सब चीजें प्रत्यक्ष रुप से बतलाएगा। अब ये मुद्राओं से क्या होता है? मैने उस समय भी बताया था जब मै पहली बार बोला था कि मुद्राओं के कारण हमारी शरीर की जो नाडियां हैं, यानी ऊर्जा स्रोत है, ये ऊर्जा स्रोत और हमारे सप्तचक्र जो हैं, उनके कनेक्शन्स जो हैं, वो बहुत ही उच्च स्तर पर जाते हैं, अच्छे हो जाते हैं, शांत हो जाते हैं। शांत हो जाने के कारण उनमें जो ऊर्जा का प्रभाव होता है, वो प्रभाव उचित गति से चलता है। यानी ज्यादा भी नहीं और कम भी नहीं। इससे हमारे मानसिक आरोग्य को, शारिरीक आरोग्य को बहुत बडी सहायता मिलती है। इसी मुद्रा के क्लासेस भी उसी दिन से शुरु होंगे। उसकी सीडीयां भी होंगी, सीडीज्‌ होंगी और उसके साथ साथ गाईड करनेवाले लोग भी होंगे, व्हॉलंटियर्स होंगे। लेकिन दोनों के लिये कोई, ये जो पहला क्लासेस हम लोगों ने बताया, स्तोत्र पठन का और मुद्राओं का, कोई भी शुल्क नहीं होगा, बिना शुल्क ही होगा। मूल्य क्या है, तो मूल्य सिर्फ भक्ति है, प्यार है।

 

३. रामनाम के कागजों से समिधा -

तीसरी चीज जो है, वो बहुत ही अलग है। हम लोग यज्ञ करते हैं, रामनवमी के दिन करते हैं, धनत्रयोदशी के दिन करते हैं और कुछ विशेष उत्सव होते हैं तभी करते हैं। लेकिन आजकल क्या हो गया है, ये समिधा कहां से आती हैं? ये यज्ञों की समिधा जो है, कहां से आती है, पेडों से आती है, जंगलों से आती है। ये पेड तोडने पडते हैं। ये समिधायें आती हैं, हम लोग हवन तो जरुर करते हैं, लेकिन कागज जो है हमारे रामनाम वही के वो भी कहां से आते हैं, तो पेडों से ही आते हैं, पेडों को काटने से ही आते हैं। उसके ही कागज बनाये जाते हैं। और पेड इतने काटे जा रहे हैं इस भारत में, शायद पूरे जग में भी ग्लोबल वॉर्मिंग हो रहा है। हम मुंबई मे भी देख सकते हैं कि कैसे बरसात कभी होती है, तो ज्यादा होती है, धुवांधार होती है, नहीं तो होती ही नहीं। कभी आये तो ना आये, पूरे दिन तो गर्मी ही रहती है। यानी कि ग्लोबल वॉर्मिंग जो है, जो तापमान जो बढता जा रहा है, उसके लिये उपाय सिर्फ एक ही है, वृक्षों को बचाये रखना, वृक्षों को बढाना, वृक्षों की संख्या बढाना। इसलिये मैंने निर्णय किया कि अभी आगे से यज्ञ में हमारे लिये समिधायें रामनाम के कागजों से बनायी जायेंगी। और ये रामनाम के कागजों से, पेपर से समिधायें कैसी बनाने की, exactly जैसी मूल समिधायें होती हैं वैसे ही बनायी जाएगी। और ये समिधायें जो हैं, कैसी बनानी है, इसकी भी सीडी तैयार होगी। सेंटर पर केंद्र पर या अपने श्रीहरिगुरुग्राम में यहां आपको कागज मिल जायेंगे, कागज से उसका पल्प कैसे बनाया जाता है, वो सिखाया जाएगा। और उससे कैसे समिधा बनानी है, आप आपके घर बैठकर ये सेवा कर सकते हैं।

यानी ध्यान में रखिये, समझ लीजिये कि क्या होनेवाला है, आपके हाथ से जो समिधायें बनेंगी उनकी आहुति पवित्र यज्ञ मे होनेवाली है। दत्त भगवान के लिये, माँ चण्डिका के लिये, हनुमानजी के लिये, श्रीरामजी के लिये। और वो समिधा बनाने के बाद, सुखाने के बाद आपको वापस लाके देना है केंद्र पर या श्रीहरिगुरुग्राम में। और ये वितरण की सारी जो व्यवस्था है, पूरे ढंग से बाद में बतायी जाएगी। इससे क्या फायदा होगा? रामनाम जैसे पवित्र कागजों से समिधाये बनेंगी तो वो सबसे ज्यादा पवित्र होगी। और पेड कटने से बच जायेंगे। इसलिये हमें पुण्य की भी प्राप्ती होगी और हमारे हाथ से जो कष्ट होनेवाला है, श्रम होनेवाले है, जिसके कारण ये समिधा बनेगी, उन समिधाओं की जो आहुती होगी तो उसका पुण्य हमें भी मिलनेवाला है, जो समिधा बनाएगा। कागज आपको केंद्र पर भी मिलेंगे, सीडी भी केंद्र पर भी दिखाई जायेगी वैसे ही हरिगुरुग्राम में भी दिखाई जाएगी। बार बार दिखाई जाएगी, बार बार सीख सकते हैं। तो २१ जनवरी के बाद जो भी यज्ञ होंगे, इन्हीं समिधाओं का इस्तेमाल मैं करनेवाला हूं। और ढेर सारी समिधायें लगती हैं, आप लोग जानते हैं, आप लोगों ने देखा हुआ है कि रामनवमी के दिन कितनी सारी समिधायें लगती हैं। धनत्रयोदशी के दिन कितनी सारी समिधाये लगती हैं। यानी रामनाम से बनेगी, रामनाम के कागजों से बनेगी, हमें और भी पवित्रता प्रदान करनेवाली है, पुण्य प्रदान करनेवाली चीज है। इसीसे जुडनेवाली चौथी योजना है श्रीवनदुर्गा योजना।

४. श्रीवनदुर्गा योजना -

हम फल खाते है घर में, चिकू, एक उदाहरण के तौर पर। उसके जो बीज है कितने बडे होते हैं, इतने बडे तो होते हैं। और वो जल्दी खराब भी नहीं होते। सीताफल, हम लोग खाते हैं, उसके बीज कैसे होते हैं, बडे होते हैं, खराब नहीं होते। वैसे जो फल हम लोग खाते हैं जिनके बीज बडे होते हैं और खराब नहीं होते, वो हम इकट्ठा करेंगे घर में और वो लाकर अपने केंद्रों पर दे देंगे, डोनेट करेंगे, उनका दान करेंगे। हरिगुरुग्राम में उनका दान करेंगे। बाद में केंद्र या हरिगुरुग्राम जो लोग वृक्षों को लगाना चाहते हैं, पौधे लगाना चाहते हैं, वो क्या करें, ये बीजों को लेकर घूम सकते हैं। जो लोग पिकनिक के लिये या अपने वीकेण्ड के लिये, saturday, Sunday किसी जगह जा रहे हैं, रास्ते पे जहा जगह दिखे कि ये जगह खाली है, वहां कोई पेड पत्ता नहीं है, तो वहां हम लोग इन बीजों को बो सकते हैं। क्या करना है हमें? थोडा सा जमीन के अंदर ढंक देना, ऊपर से थोडासा पानी डाल देना बस इतना ही काम। सौ बीज गये अंदर उसमें से समझो ५० भी ऊपर निकल के आये तो भी हमारे लिये अच्छा होगा। और जहां भी हम जा सकते हैं, जहां भी हम जायेंगे वहा हम लोग ये चीज कर सकते हैं। और ये बीज बोते समय हमे क्या कहना है? या तो ‘ॐ नमश्चण्डिकायै’ कहना है क्या कहना है, ॐ नमश्चण्डिकायै या ‘ॐ श्री वनदुर्गायै नमः।’

हम लोग ने गुह्यसुक्तम् का जब, श्रीश्वासम् का जब कार्यक्रम किया था, तब हम लोगों ने जो २४ रूप देखे थे माँ के, उसमे से एक रुप अवतार था वनदुर्गा का। वनदुर्गा ये माँ का बहुत शक्तिशाली अवतार है। यानी जिसे हम कहते हैं, नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः। नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियतः प्रणतः स्म ताम्। प्रकृत्यै भद्राय, भद्रा प्रकृति यानी कल्याण करनेवाली प्रकृति यानी कल्याण करनेवाला निसर्ग, ये भी माँ का ही रुप है। मेरी माँ का ही एक रुप है। माँ जगदम्बा का एक रुप है, वनदुर्गा। अगर हम ये ऐसे पौधे लगायेंगे, ऐसे बीज बोते जायेंगे तो कभी ना कभी तो उसमें से कुछ तो पेड उगेंगे। ये उपासना रुप में ही हमें करनी है। कि जब ये बीज बोते समय हम ये कहेंगे, अभी चलो वीकेण्ड के लिये हम गये हुए हैं, कोई जंगल है, कोई फॉरेस्ट है, थोडीसी अलग जगह है, अब शहर में तो जाते नहीं, शहर के बाहर ही जाते हैं, तो हम लोगों ने दस बीज बो दिये, थोडा पानी डाल दिया, तो क्या होगा? उसमें से कम से कम दो बीज तो पौधे बनेंगे। पौधों से बाद में पेड बनेंगे। उससे वनदुर्गा संतुष्ट होनेवाली है, प्रसन्न होनेवाली है। इसलिये मै चाहता हूं ये वनदुर्गा प्रसन्न हो।

अगर आप लोग चाहते हैं हम फल खाये घर में और जाकर लगा दे, केंद्र पर लाकर नही दे, तो भी चलेगा, कोई वांदा नही, कोई प्रॉब्लेम नही। वो भी कर सकते हैं। घर में फ्रुट्स खाये और उसके बीज जो है, हमने डायरेक्ट जा करके भी बो दिये। वो भी चलेगा। वो भी हम लोग कर सकते है क्योंकी वो भी उपासना है कि बीज बोते समय ‘ॐ नमश्चण्डिकायै’ और ‘ॐ श्रीवनदुर्गायै नमः।’ इसमें से कोई एक जप करें या दोनों भी जप करें, एक ही माँ के जप है। ये वनदुर्गा योजना के कारण प्रकृत्यै भद्रायै, हम निसर्ग को, निसर्ग के शक्ति को हमारे लिये हितकारक बना सकते हैं, अनुकूल बना सकते हैं। निसर्ग में जो जीवनीय शक्ति रहती है, वो हमारे अंदर बहुत जोर से आ सकती है। जीवनीय शक्ति किसको नहीं चाहिये? जीवनीय शक्ति जो होती है, निसर्ग मे भरी होती है, उससे क्या होता है? हमारी बुद्धी तेज होती है। उससे हमारे जो इंद्रिय है वो सशक्त होते हैं, बलवान होते हैं, उससे ही जो है हमारी आयु बढती है। इसलिये वनदुर्गा योजना जो है, उसका बीजों का वितरण और बाकी सारे कार्य भी २१ जनवरी से शुरु होनेवाले हैं। आप सोचेंगे वनदुर्गा का और गणेशजी का क्या संबंध है? ये मूलार्क गणेश जो हम लोग देखते हैं गुरुक्षेत्रम में वो कहां से आया है? वो मांदार वृक्ष के मूल से ही आया हुआ है। मांदार वृक्ष जो २५ साल के ऊपर जिसका उम्र है, पानी की जगह से बहुत नजदीक है, पूर्व दिशा में स्थित है ऐसे वृक्ष के मूल से ही एक मांदार गणेश एक मूलार्क गणेश तयार होता है। उसके लिये आराधना करनी पडती है। ऐसी आराधना करके हमने मूलार्क गणेश की स्थापना की है। यानी ये भी क्या है? प्रकृती का पुत्र ही है। माँ वनदुर्गा का पुत्र माना जाता है। वनदुर्गा योजना में हम माँ दुर्गा के साथ साथ उसके पुत्र के भी यानी गणपति की भी आराधना करनेवाले हैं। उसका भी फल हमें मिलनेवाला है।

ये चार योजनायें जो हम लोगों ने बनायी हैं, मैने बनायी हैं। वो सिर्फ इसलिये है कि हम अपना हित चाहते हैं, मेरे श्रद्धावान बच्चे जो अपना विकास करना चाहते हैं, पुण्य कमाना चाहते हैं, अहितकारक चीजों को छोडना चाहते हैं उनके लिये चारों के चारों योजनाये जो हैं ये बहुत ही सहाय्यकारी और बल देनेवाली हैं। मुझे पूरा भरोसा है कि आज तक जितनी भी योजनाये मैंने आप लोगों के सामने रखीं, सभी लोगों ने बडे जोर से उस समय हिस्सा लिया।

इस चार योजानाओं मे भी मेरे सारे बच्चे साथ देंगे। अपना हिस्सा जो है निभायेंगे। और मेरा साथ देंगे। २१ जनवरी के बाद से ये चारों योजनायें शुरु होनेवाली हैं। अभी समझो ऐसा है कि पाठशाला में क्लासेस में मंत्रपठन के कुछ फिक्स नंबर होता है, ३० या ४० या १०० जो भी हो, उनके बाद अगर कोई ज्यादा लोग आ गये तो उनके लिये सेकंड क्लास भी लिया जाएगा। ऐसा नही है कि चलो एक घंटा खत्म हो गया तो वहां नही आये जल्दी तो आप भाग जाओ। नहीं। टाईम तो फिक्स होगा, एक टाईम, लेकिन उस टाईम के दरम्यान अगर समझो ४० लोगों के बैठने की व्यवस्था है और पाँच लोग ज्यादा आ गये तो उनको बाद में अंदर लिया जायेगा, उनको सिखाया जायेगा। लेकिन जो लोग आधे घंटे के बाद में आयेंगे यानी जो क्लास का समय है वो क्लास शुरु होने के बाद आधे घंटे के बाद आयेंगे, तो उन्हें अंदर नही लिया जायेगा। ये टाईम लिमिट हम लोग जरुर रखनेवाले है। क्योंकि नहीं तो क्या होगा, पूरा दिन चलता ही रहेगा।

हम लोगों को बाकी भी सारे काम रहते हैं, तुम लोग को भी बाकी काम रहते हैं। जगह भी है, वहा भी दूसरे काम होनेवाले होते है। तो डिसिप्लिन के साथ जैसा हमारे संस्था में चल रहा है, ये क्लासेस भी चलेंगे मुद्रा के क्लासेस भी चलेंगे, मुद्रा की सीडी भी मिलेगी। समिधा भी आप लोग ही बनाये होंगे और आपकी ये समिधाये जो हैं, ये समिधाये हम अर्पण कर सकते हैं, यज्ञ में। कर सकते हैं नही, करने वाले ही हैं और इन समिधाओं का इस्तमाल मैं करनेवाला हूं। ये बनाने कैसे उसका पूरा टेक्‌निक तैयार है, उसकी सीडी बनाने के बाद आपको दिखलाई जायेगी। इतनी सारी ४ बातें जो मैने कही हैं आपको, आपके दिल में आ गयी हैं, आपके मन में बैठ गयी हैं, आपकी बुद्धि में बैठ गयी हैं। और अगर आपको ऐसा लग रहा है कि हमारा ये बापू जो है, हमारे लिये उपहार लेके आया है, भेंट लेके आया है, कुछ खास चीज लेके आया है तो जरुर इसे अपनाईये। जो अपनाना चाहते हैं उनके साथ साथ मैं भी खडा हो जाऊंगा, उनका हाथ बटाने के लिये। जो नहीं चाहते है मै कोशिश करुँगा कि उनके मन में ये इच्छा पैदा हो जाये इन योजनाओं का वो भी लाभ उठाये। जो भी इसमें हिस्सा लेना चाहता है उसके लिये मेरे आशीर्वाद, बहुत बहुत आशीर्वाद। ४ सेवाओं का उपहार, इस बारे में हमारे सद्गुरु अनिरुद्ध बापू ने पितृवचनम् में बताया, जो आप इस व्हिडिओ में देख सकते हैं।

॥ हरि ॐ ॥ ॥ श्रीराम ॥ ॥ अंबज्ञ ॥

My Twitter Handle